शराब नीति,आधी बंदिश, पूरी रणनीति?

 












 मप्र के खरगोन जिले के महेश्वर में मोहन यादव कैबिनेट ने नई शराब नीति पर मुहर लगा दी है ,राज्य में 17 धार्मिक स्थलों पर शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया गया है.मध्यप्रदेश सरकार द्वारा धार्मिक स्थलों पर शराबबंदी का यह निर्णय स्वागत योग्य है। यह निर्णय सामाजिक, सांस्कृतिक,और नैतिक दृष्टिकोण से और महत्वपूर्ण होता जब शराब पीने और रखने पर भी  रोक लगाई होती  ,मध्य प्रदेश की नई शराब नीति को लेकर सरकार ने एक ऐसा संतुलन साधने का प्रयास किया है, जो दिखावे में धार्मिक भावनाओं का सम्मान और व्यावहारिक रूप से राजस्व बढ़ाने की कवायद लगती है। नई नीति के अनुसार, 17 धार्मिक स्थलों पर शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया गया है, लेकिन उपभोग और रखने पर कोई रोक नहीं है। इसके साथ ही, रेस्टोरेंट्स में बीयर और वाइन परोसने की अनुमति दी गई है।यह नीति समाज को दो स्तरों पर सोचने के लिए मजबूर करती है।पहला, क्या यह वास्तव में शराबबंदी की दिशा में उठाया गया कदम है, या केवल राजस्व वृद्धि का नया तरीका? और दूसरा, क्या धार्मिक भावनाओं की आड़ में शराब को बढ़ावा देने की प्रक्रिया चल रही है? धार्मिक स्थलों पर शराब की बिक्री पर रोक लगाना निश्चित रूप से एक सकारात्मक कदम है, लेकिन यह प्रतिबंध केवल सतही प्रतीत होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि शराब का सेवन, उसके प्रभाव, और उसके सामाजिक परिणामों पर कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है। क्या धार्मिक स्थलों से कुछ किलोमीटर दूर शराब बिकने से उस स्थान की पवित्रता पर कोई असर नहीं पड़ेगा? इसके अलावा, शराबबंदी को धार्मिक भावनाओं के साथ जोड़ना, एक प्रकार से इन स्थलों पर आने वाले श्रद्धालुओं की भावनाओं का व्यावसायिक उपयोग करने जैसा है। यह स्पष्ट करता है कि सरकार एक ऐसा मॉडल तैयार करना चाहती है, जिसमें धार्मिक प्रतिष्ठा के नाम पर भी राजस्व का प्रवाह सुनिश्चित किया जा सके।सरकार का यह कदम आर्थिक दृष्टिकोण से स्पष्ट है। राज्य का लक्ष्य है कि शराब के माध्यम से राजस्व को बढ़ावा देना भी है। नई नीति में 20% कम दरों पर विदेशी शराब और छोटे रेस्टोरेंट्स को बीयर-वाइन बेचने की छूट, सीधे तौर पर इस योजना का हिस्सा हैं। लेकिन, क्या यह राजस्व वृद्धि समाज पर होने वाले दीर्घकालिक दुष्प्रभावों से अधिक मूल्यवान है? देश के अन्य राज्यों में जहां शराबबंदी लागू की गई, वहां भी अवैध कारोबार और काले बाजार का उभरना देखा गया है। मध्य प्रदेश में ऐसी आंशिक नीति केवल शराब के उपयोग को नई दिशा में ले जाने का माध्यम बन सकती है, न कि समाज को इसके दुष्प्रभावों से बचाने का।अगर राज्य सरकार वास्तव में शराबबंदी करना चाहती है, तो इसे आधे-अधूरे निर्णयों के बजाय पूर्णता की ओर बढ़ना होगा। शराब के खिलाफ कोई भी नीति तभी सफल होगी, जब इसका क्रियान्वयन सख्ती और ईमानदारी से किया जाए। साथ ही, अवैध कारोबार, नकली शराब, और काले बाजार पर लगाम लगाने के लिए एक मजबूत तंत्र तैयार करना होगा।एक ओर, यह धार्मिक स्थलों पर शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाकर आदर्श प्रस्तुत करने का प्रयास करती है। वहीं दूसरी ओर, रेस्टोरेंट्स और छोटे लाइसेंसधारकों को बीयर-वाइन बेचने की अनुमति देकर शराब के कारोबार को बढ़ाने का रास्ता भी खोलती है।अगर यह कदम वाकई समाजहित के लिए है, तो इसे आर्थिक लाभ और धार्मिकता के नाम पर सीमित नहीं किया जाना चाहिए। पूर्ण शराबबंदी की दिशा में ठोस कदम उठाना ही समाज और सरकार, दोनों के लिए लाभकारी होगा।

Comments
Popular posts
इंगांराजवि प्रशासन के घोटाले,भ्रष्टाचार एवं जनजातीय समुदाय के विरुद्ध षड्यंत्र के संबंध में सौंपा गया ज्ञापन
Image
दिल्ली में भाजपा की प्रचंड जीत पर राजेंद्रग्राम में कार्यकर्ताओं ने मनाया जश्न
Image
बरगवां अमलाई नगर परिषद् के वार्ड एक में रामजानकी मंदिर निर्माण की मांग, 14 पार्षदों की सहमति के साथ रहवासियों ने सौंपा ज्ञापन
Image
कांग्रेस जिलाध्यक्ष ने गुड्डू चौहान को बताया निष्काशित नेता
Image
मणिपुर में सियासत की विसात, राजा गया पर खेल अभी बाकी है
Image