अनुपपुर। केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोध छात्र, अभाविप विश्वविद्यालय खंड के पूर्व अध्यक्ष तथा स्वावलंबी भारत अभियान के शहडोल जिला युवा आयाम प्रमुख चिन्मय पांडे ने पीएचडी शोध में हिंदुओं तथा मुसलमानों की जनसांख्यिकीय कुल प्रजनन दर (टीएफआर) की डाटा को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मशीन लर्निंग टेक्निक के माध्यम से एनालाइज करते हुए नया खुलासा किया है की समय रहते हुए पूर्वजों के जानने का अधिकार कानून नहीं बना तो भारत के हिंदुओं का अस्तित्व 21वीं शताब्दी में संकट में आ सकता है। अखंड भारत में रहने वाले लोग सामान पूर्वजों के वंशज है तथा उनके डीएनए में समानता भी है। विदेशी आक्रांताओं द्वारा भारत के पूर्वजों पर किए गए घोर प्रताड़ना, अपहरण, बलात्कार, जबरन धर्मांतरण जैसे अत्याचारों की छोटे-छोटे वीडियो क्लिप, अत्याचारों की इतिहास की पाठ्यक्रम सामग्री तथा पूर्वजों की वंशावली की जानकारी बताया जाना अत्यंत अनिवार्य हो गया है ताकि संयुक्त भारत में रह रहे धर्मांतरित लोग अपने पूर्वजों पर हुए अत्याचार को ध्यान में लाया जा सकें। इसके लिए पूर्वजों को जानने का अधिकार के लिए कानून बनाने तथा ओम परिवार के अधिकृत सोशल मीडिया लांच करना समय की आवश्यकता है। चिन्मय पांडे के शोध निदेशक आचार्य (डॉ) विकास है।
इतिहास और दस्तावेज के अनुसार अखंड भारत में शून्य से 50 करोड़ मुसलमान बने
सातवीं शताब्दी की शुरुआत से पहले भारत भूटान, भारत, मालदीव, म्यान्मार, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश लंका और तिब्बत में हिंदू, बौद्ध, जैन धर्म के लोग ही निवास करते थे। तब भारत की आबादी में एक भी मुसलमान नहीं था। 636 ईस्वी में भारत में पहले मुसलमान का आगमन हुआ, 712 ईस्वी में मोहम्मद बिन कासिम यमन से संयुक्त भारत के सिंध क्षेत्र में पहुंचा। सिंध प्रांत (पाकिस्तान और अफगानिस्तान) में शुरुवात में मुसलमानों का विस्तार हुआ, वर्ष 1192 में तराइन की दूसरी लड़ाई में मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराया तब दिल्ली में गुलाम वंश की स्थापना हुआ। 1000 वर्षों तक आक्रांताओं की आक्रमण कालखंड में भारत में मुसलमान की संख्या चार लाख से साढ़े तीन करोड़ हो गई। 1200 इस्वी में केवल चार लाख मुसलमान से 1400 इस्वी में 32 लाख हो गए। वर्ष 1535 में एक करोड़ 28 लाख हो गए। वर्ष 1800 इस्वी में 5 करोड़ मुसलमान तथा 2023 में 50 करोड़ मुसलमान संयुक्त भारत में हो गए है।
भारत में मुस्लिम आबादी में जबरदस्त वृद्धि हो रही है
यदि 1991 से 2011 के बीच देखा जाए तो 20 साल में हिंदू आबादी में महज 20% बढ़ोतरी हुई, जबकि मुस्लिम आबादी 36% तक बढ़ी। जबकि 1991 से 2023 के बीच 33 साल में हिंदू आबादी में महज 18% बढ़ोतरी हुई, जबकि मुस्लिम आबादी 46% तक बढ़ी, 14.2 फीसदी के समान अनुपात को लागू करने पर 2023 में मुसलमानों की अनुमानित जनसंख्या 19.75 करोड़ होगी। आंकड़ा दर्शाता है कि देश में मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ रही है। दुनिया के 94 फीसदी हिंदू भारत में ही रहते हैं प्यू रिसर्च सेंटर की स्टडी में अनुमान लगाया गया है कि हिंदुओं में फर्टिलिटी में आ रही गिरावट के कारण 2055 से 2060 के बीच करीब 3.3 करोड़ कम बच्चे पैदा होंगे जिससे हिंदुओं की जनसंख्या में अचानक गिरावट आएगी। 2055 से 2060 के बीच मुस्लिम महिलाएं 23.2 करोड़ बच्चों को जन्म देंगी इसकी वजह से 2075 तक मुस्लिम दुनिया में सबसे ज्यादा होंगे।
2060 तक विश्व का सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश बन जाएगा भारत
अमेरिकी थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर ने वैश्विक मुस्लिम आबादी पर नए आंकड़े पेश किए हैं। प्यू रिसर्च के मुताबिक, 2060 तक भारत इंडोनेशिया को पीछे छोड़ते हुए सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश भारत बन जाएगा। वर्तमान में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया है जहां 219960,000 (2015 के आंकड़ों पर आधारित) मुसलमान रहते हैं. मुस्लिम आबादी के मामले में दूसरे स्थान पर भारत (194,810,000) और तीसरे स्थान पर पाकिस्तान (184,000000) है।
पाकिस्तान, बांग्लादेश में तेजी से घट रही है हिंदु आबादी वैश्विक चिंता का विषय
पाकिस्तान की नेशनल डेटाबेस ऐंड रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी द्वारा जारी नए आंकड़ों के मुताबिक पाकिस्तान में महज 1.8 प्रतिशत से कम हिंदु बचे हैं। गौरतलब है कि 1947 में पाकिस्तान में हिंदू आबादी 20.5 प्रतिशत थी, 1951 आते जो 13 प्रतिशत और अब पाकिस्तान में 1.8 % प्रतिशत से कम हिन्दू बचे है। बांग्लादेश में 1974 में साढ़े 13 प्रतिशत हिन्दू आबादी थी। दस साल पहले हुए जनगणना में यह आंकड़ा घटकर महज 8 फीसदी रह गया। कहां गए ये सभी हिंदू? या तो उनका जबरन धर्मांतरण हुआ या उन्हें मार दिया गया या भगा दिया गया या भारत आ गए। अविभाजित भारत में 1901 में हुई जनगणना में बांग्लादेश में कुल 33 फीसदी हिंदू आबादी रहती थी अब हिंदू आबादी की बात करें तो इन 5 दशक में इनकी संख्या तेजी से घटी है। भारत के हिन्दुओं द्वारा इस मामले में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ा पहल आवश्यक है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, साधु-संतों तथा संसद सदस्यों को प्राइवेट बिल का ड्राफ्ट दिया गया*
पूर्वजों को जानने का अधिकार कानून संसद के दोनों सदनों से पारित हो इस हेतु चिन्मय पांडे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा, राष्ट्रीय संगठनमंत्री बी एल संतोष, शिव प्रकाश, वी सतीश, देश के साधु-संतों सहित संसद सदस्यों डॉ स्वामी साक्षी जी महाराज, राम चंदर जांगड़ा, सुशील कुमार मोदी, राम शकल, डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी, सुधांशु त्रिवेदी, बिजी रॉय, आदिया प्रसाद, विवेक ठाकुर, डॉ. भगवंत कराड, अनिल अग्रवाल, लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) डीपी वत्स, राजेश चुडासमा, वी. निवास प्रसाद, रवि किशन शुक्ल, हरीश द्विवेदी, संगम लाल गुप्ता, राजकुमार चाहर, इरन्ना कडाडी, मती दर्शना सिंह, दिनेश लाल यादव "निरहुआ", बसंत कुमार पांडा, कराडी सांगन्ना, सुधाकर तुकाराम श्रंगारे, सुनील कुमार सोनी, डॉ. उमेश जी जाधव, बाचे गौड़ा बी.एन., गोपाल जी ठाकुर, मती हेमा मालिनी, धर्मेन्द्र कुमार कश्यप, घनश्याम सिंह लोधी, जनार्दन मिश्रा, रणजीतसिंह नाइक निंबालकर, जामयांग त्सेरिंग नामग्याल जी, विष्णु दयाल राम, तीरथ सिंह रावत, मती अपराजिता सारंगी, राजेंद्र अग्रवाल, पर्वतगौड़ा चंदनगौड़ा गद्दीगौदर, कनकमल कटारा, मती रक्षा निखिल खडसे, डॉ. प्रीतम गोपीनाथ राव मुंडे, डॉ. के.सी. पटेल, ज्ञानेश्वर पाटिल, सुनील कुमार सिंह, विजय बघेल, सुभाष चन्द्र बहेरिया, रमेशभाई लवजीभाई धाडुक, सनी देयोल, संगमलाल कड़ेदीन गुप्ता, मनोज किशोरभाई कोटक, रवीन्द्र कुशावाहा, विद्युत बरन महतो, डॉ. सुकांत मजूमदार, कृपानाथ मल्लाह, अजय निषाद, संतोष पांडे, गजेंद्र सिंह पटेल, आर.के. सिंह पटेल, संजय (काका) रामचन्द्र पाटिल, अशोक कुमार रावत, अरुण कुमार सागर, चुन्नी लाल साहू, विष्णु दत्त शर्मा, राजबहादुर सिंह, रामदास चंद्रभानजी तडस, दुर्गा दास उइके, प्रदान बरुआ, रामचरण बोहरा, सैकिया दिलीप, राजवीर दिलेर, पल्लब लोचन दास, संगन्ना अमरप्पा कराडी, कौशल किशोर, मती. मीनाक्षी लेखी, एस मुनिस्वामी, बसंत कुमार पांडा, मती. केशरी देवी पटेल, सुरेश कुमार पुजारी, महेंद्र सिंह सोलंकी, रेबती त्रिपुरा, देवेन्द्रप्पा वाई सहित अनेक संसद सदस्यों को प्राइवेट बिल का ड्राफ्ट सौंपा है।शोध में संयुक्त रूप से चिन्मय पांडे, डॉ. सविता राय, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, मती वर्षा जायसवाल, ऋतुराज सोंधिया, मनीष शुक्ला, गोविंद पांडे, डॉ राकेश शर्मा ग्वालियर, अधिवक्ता सुदेश सैनी, पंकज बाजपेयी, आनंद तिवारी, सौम्य मिश्रा (डीयु), विनीत राय (समाजसेवी नईदिल्ली), बाल्मिकी जायसवाल, वन्दे महाराज, शिवम मिश्रा बलिया, सहित अनेक सुधरता शामिल है।