राजीव खण्डेलवाल :-
शिक्षा हमें सभ्य बनाने समष्टि का बोध कराने, एवं हमारे ज्ञान के नेत्रों को खोलने के लिए अति आवश्यक है। ‘‘नास्ति विद्या समम् चक्षु’’ इसीलिए हमारे देश में शुरू से ही शिक्षा को प्राथमिकता दी गई है। ‘‘गुरूकुल’’ में शिक्षा प्रणाली सरल लेकिन बहुत अनुशासित थी। परन्तु वर्तमान में शिक्षा को चुनौती पूर्ण और कॉपिटिशन बेस्ड (प्रतिस्पर्धा पर आधारित अनुस्पर्धा पर नहीं जिसकी चर्चा आगे होगी) बना दिया गया है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सामान्यतः पर्सेंटेज को ज्यादा महत्व दिया जाता है। अब पर्सेंटेज की जगह ‘‘ग्रेड़’’ आ गया है। इससे छात्रों पर अच्छा प्रदर्शन और टाप करने का हमेशा दबाव रहता है। इसे शैक्षणिक तनाव के रूप में जाना जाता है। जिसमें ‘‘परीक्षा का तनाव’’ भी शामिल है। परीक्षा को लेकर तनाव व घबराहट आम बात है। चाहकर भी बच्चे इस स्ट्रेस को अपने से अलग नहीं रख पाते है।
दसवीं से बारहवीं कक्षा के बीच के छात्रों के लिए पढ़ाई व परीक्षा के होने वाले तनाव और उनके अभिभावक (पेरेंट्स) मे भी इन परीक्षाओं के कारण होने वाले तनाव को दूर कैसे किया जा सकता है। मुख्य रूप से आगे इसी पर ही विचार किया जा रहा है।
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत एक है। एक राष्ट्र, एक निशान, एक झंडा, एक राष्ट्र भाषा, एक कर की नीति को आगे बढ़ाते हुए एक राष्ट्रीय शिक्षा नीति जो पूरे देश में लागू हो, इस दृष्टि से भारतीय शिक्षा मंडल का गठन हुआ है। जिसने समय-समय पर कॉफी अन्वेषण विचार-विमर्श व लगातार अध्ययन करने के बाद इस उद्देश्य हेतु ‘‘रिसोर्स पर्सन‘‘ की कल्पना की जो अभिभावकों और छात्रों दोनों को पढ़ाई व परीक्षा के तनाव को दूर करने के लिए विद्यार्थी अथवा उनके माता-पिता फोन करके उनसे कुछ इनपुट्स व टिप व्हाट्सएप के माध्यम से देकर उन्हें कम करने में सहायक सिद्ध होगा। इसके लिए ‘‘रिसोर्स पर्सन‘‘ को क्या करना होगा और वह क्या ‘‘टिप व इनपुट‘ आपको देगा, इसकी भी चर्चा आगे की जा रही है। छात्रों के लिये जितना जरूरी पढ़ाई करना है, उससे भी कहीं ज्यादा जरूरी है, पढ़ाई व परीक्षा के स्टेªस दूर करना।सामान्यतया जब भी ‘‘परीक्षा के तनाव‘‘ की चर्चा होती है तो, हम सिर्फ छात्रों के तनाव की बात ही करते हैं। लेकिन वास्तव में आज के युग में परीक्षा का तनाव ‘‘परीक्षा से संबंधित‘‘ ‘‘तीनों लोगों‘‘ में होता है।
1. छात्र :- जो एक परीक्षार्थी के रूप में परीक्षा में बैठा है।
2. शिक्षक :- जिसने छात्रों को शिक्षा देकर उसे परीक्षा देने के योग्य बनाया है।
3. अभिभावकः- जिसे इस परीक्षा में उसके ‘‘लाडले का भविष्य‘‘ नजर आता है।
इन तीनों के तनाव ‘‘नदी नाव संयोग की भाँति’’ कभी कुछ पारस्परिक संबंध लिए होते हैं तो, कुछ एक दूसरे के पूरक होते हैं। और कुछ एक दूसरे के विपरीत दिशा के भी होते हैं। साथ ही सबसे महत्वपूर्ण बात यहाँ पर यह है कि इन तीनों के स्वयं के तनावों के स्वयं के कारण तो होते ही है, लेकिन ये तीनों अपनी डयूटी, दायित्व व कर्त्तव्य निभाते समय परस्पर एक दूसरों के लिये भी तनाव पैदा करने के कारक बन जाते हैं।
इन सबसे हटकर अलग एक और तनाव छात्रों में आजकल स्कूलों के व्यवसायीकरण होने के कारण उत्पन्न होने लगा है। वह, हमारा स्कूल सर्वश्रेष्ठ 100 प्रतिशत परिणाम के विज्ञापन के आने से असफल छात्र के मन में स्कूल से निकाले जाने के तनाव का उत्पन्न होना है।
अतः उपरोक्त तीनों श्रेणियों के तनाव की अलग-अलग चर्चा करके ही हम संपूर्ण स्थिति का सही आकलन कर सकते हैं। एक जमाने में शिक्षक जिन्हें समाज में ‘‘गुरु‘‘ का सम्मान प्राप्त था, तब वह सबसे ज्यादा तनाव लेने वाले वाला वर्ग था। परंतु आज स्थिति विपरीत हो गई है। आज तनाव के लिए जिम्मेदार ‘‘गुरु-शिक्षक शब्द‘‘ की जगह ‘‘सहयोगी मैत्री शिक्षक‘‘ ने ले ली है, जहां गुरु के ‘‘डर के प्रेम‘‘ की जगह ‘‘मुस्कुराहट की प्रेम‘‘ ने ले ली है।
विद्यार्थीयों का तनाव
विद्यार्थीयों में मुख्य रूप से निम्न तरीके के या कारणों से तनाव उत्पन्न होता है
1. परीक्षा के ड़र के कारण तनाव।
2. परफॉरमेंस का तनाव।
3. अभिभावक की अपेक्षा के कारण तनाव।
4. ‘‘तुलना’’ किये जाने के कारण तनाव।
5. शिक्षक के कारण तनाव।
6. वर्तमान परीक्षा पद्धित के कारण तनाव।
7. नकल के कारण उत्पन्न तनाव।
सर्वप्रथम आप इस बात को ध्यान में जरूर रखिये कि परीक्षा आपके लायक या नालायक़ होने को नहीं दर्शातीं है। निश्चित रूप से इस सोच से ही इससे आप अनावश्यक तनाव से मुक्त हो जायेगें। यद्यपि परीक्षा का थोड़ा तनाव के पढ़ने के लिये जरूर प्रेरित करता है, लेकिन इसकी अधिकता नुकसानदायक हो सकती है।
तनाव के लक्षणों की जानकारी होने पर उनसे तनाव को बेहतर तरीके से सामना किया जा सकता हैं। ये लक्षण हैः-
सरदर्द और माइग्रेन, मांसपेशियों में तनाव और शरीर का दर्द, भूख में बदलाव दिखना, पेट में दर्द, कब्ज या दस्त, नींद की परेशानी, चिड़चिड़ापन बढ़ जाना, और मूड में बदलाव और ध्यान एकाग्र करने में परेशानी। ये कुछ आम लक्षण है, जिनके लम्बे समय तक जारी रहने पर वे परेशानी का सबब बन सकते है।
दसवीं से बारहवीं के बीच का छात्र ‘‘टीनएजर‘‘ (किशोर) होता है, जो बचपन से युवा स्थिति में ट्रांसमिट (प्रवेश) करने की अवस्था में होता है। वह अपने जीवन के भविष्य की दिशा तय करने की अवस्था में भी प्रवेश करता होता है। इस अवस्था में वह प्रथम बार कुछ स्वविवेक का उपयोग कर कुछ उपयोग कर निर्णय लेनी की मनोस्थिति लिये होता है। वास्तव में एक अध्ययन के अनुसार मानव के जीवन की वृद्धि के विकास में वह प्रत्येक 7 वर्ष में एक महत्वपूर्ण परिर्वतन की ओर दृष्टिगोचर होता है। इसलिए 10वीं 12वीं छात्रों का बायोलाजिकल ग्रोथ (परिर्वतन) होने के कारण वह एक द्वंद (डुयूलिटी) की स्थिति में होता है। इस कारण से तनाव को झेल न पाने के कारण विद्यार्थी या तो डिप्र्रेशन (निराशा) में या फिर अभिभावक या कभी कभी शिक्षक के प्रति आक्रमक हो जाता है। इसलिए इन वर्गों के छात्रों का तनाव निश्चित रूप से अन्य वर्गों की तनाव की तुलना से अलग लिए हुए होता है। इसीलिए परीक्षा की तैयारी से उत्पन्न समस्त तनाव ‘‘हानिकारक‘‘ होते हैं, ऐसा नहीं है। कुछ तनाव ‘‘सकारात्मक परिणाम‘‘ देते हैं तो, वही परीक्षा में ‘‘अच्छे प्रदर्शन‘‘ के लिए जरूरत से अधिक तनाव (स्ट्रेस) का विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
परीक्षा के ड़र से तनाव
सर्वप्रथम तो परीक्षा के ‘‘डर‘‘ व ‘‘भय’’ से ही तनाव उत्पन्न हो जाता है। जिसे ‘‘एक्जाम फोबिया’’ भी कहा जाता है। परीक्षा के ड़र से उत्पन्न यह तनाव संपूर्णता में नुकसानदायक या गलत होता हो, ऐसा नहीं है। एक सीमा तक यह तनाव छात्र को सफल प्रतियोगी बनने में सहायक होता है। लेकिन एक सीमा के बाद तनाव को कम किया जाना भी जरूरी है। इसके लिए आपको तीन कदम उठाने आवश्यक होंगे।
1.पहला परीक्षा की तैयारी करना।
2.दूसरा आत्मविश्वास का होना और।
3.तीसरा सबसे अहम है, नतीजों के प्रति सकारात्मक अपेक्षा रखना।
परीक्षा की तैयारियों को लेकर कुछ बातें जो हर विद्यार्थी को याद रखना चाहिये और अपनाना चाहिये, पर चर्चा जरूरी हैं।
छात्र अक्सर पूरी रात बैठ कर पढ़ते रहते हैं, परीक्षा की पढ़ाई के दौरान दिमाग को आराम देने के लिये कम से कम 6-7 घंटे की नींद लेना बहुत जरूरी है। पर्याप्त नींद तनाव को दूर करती है।
फिजिकल एक्टिविटी बढ़ाने से तनाव कम करने में मदद मिलती है। नियमित योग व ध्यान, टहलना, सैर करना, दौड़ना, पसंद का म्यूजिक सुनना, या डांस करना, बहुत लाभदायक होता है।परीक्षा की तैयारियों के दौरान अपने आहार पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। फल सब्जियों का पर्याप्त मात्रा में सेवन करें। पानी खूब पीयें। तले हुए खाद्य-पदार्थों से बचें। अपना एनर्जी लेवल बनाये रखने के लिये हैसियत के मुताबिक हैल्दी स्नैक्स जैसे बादाम, मखाने, किशमिश आदि लें। चीनी युक्त या अधिक कार्बोहाइड्रेट युक्त खाद्य पदार्थ लेने से बचें। खाने में लिक्विड (तरल पदार्थ) की मात्रा पर्याप्त रखें।ग्रुप बना कर या अपने घनिष्ठ मित्र के साथ पढ़ाई करने के बहुत फायदे होते हैं। अपने सवालों और समस्याओं को एक दूसरे के साथ साझा करने से उन्हें हल करने में बहुत मदद मिलती है। अपने विषयों के नोट्स बना कर एक दूसरे के साथ शेयर करें।नियमित रूप से पढ़ने की आदत ड़ाले तथा परीक्षा की तैयारियों के लिये टाइम टेबल बनाकर पढ़ाई करें। इस प्रकार सही समय प्रबंधन करेें। हर विषय पर अलग से ध्यान देने की जरूरत होती है। उन्हे चुनौती के रूप में ले। कमजोर अध्यायों पर विशेष ध्यान दें। ‘‘सेम वाज नॉट बिल्ट इन ए ड़े’’ इसीलिये पढ़ाई के बीच बीच में छोटे ब्रेक लेना चाहिये। इन ब्रेक्स में अपनी पसंद की गतिविधियों को करें।
आत्मविश्वास के लिये नालेज़ व स्वयं की क्षमता पर विश्वास होना चाहिये।‘‘प्योर गोल्ड़ डज़ नॉट फियर द फलेम’’। छोटे-छोटे संकल्प लेने से आत्मविश्वास बढ़ता है। छोटे लक्ष्यों को बाद में धीरे-धीरे बड़े लक्ष्यों में परिवर्तित करें। याद रखें ‘‘जहाँ चाह होती है, वही राह होती है’’।
सकारात्मक सोच रखना बहुत जरूरी है जो आपको नकारात्मक विचारांे से बचायेगा ही और आपको पढ़ाई के तनाव से भी दूर रखेगा।
तनाव को दूर करने का दूसरा तरीका 4ए फॉमूला अपना कर सकते है।
यदि उपरोक्त चर्चा के संक्षिप्त किया जाए तो पूरी चर्चा को आप 4ए फॉमूला में सीमित कर तनाव को मैंनेज कर सकते है। ये चार ए है अवाईड, आल्टर, एडैप्ट व एक्सेप्ट है। जब भी ऐसी परिस्थिति हो जिसे बदला जा सके या जिसके रेस्पॉन्स को चेंज किया जा सके तो इन 4ए को ध्यान में रखें।
परफारमेंस का तनाव।
अन्य तनावों की तुलना में परफॉरमेंस (प्रदर्शन) का तनाव विद्यार्थी पर सबसे ज्यादा होता है। इसके लिये उन्हे यह बतलाना आवश्यक है कि परीक्षा की सफलता या असफलता जीवन की सफलता या असफलता नहीं है। परीक्षा में सफलता को अपने जीवन मरण का सवाल न बनायें।
‘‘गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ्ल क्या गिरे जो घुटनो के बल चले’’।बहुधा असफलता, सफलता की जननी सिद्ध होती है। उन्हें बतायें कि हर महान योद्धा अपने जीवन में कुछ न कुछ युद्ध हारता भी है। ‘‘पसमवोअप्युत्सब एवं मनिशाम्ं’’ महानतम वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन जिन्हे उनके एक शिक्षक ने तो उन्हें स्कूल छोड़ने तक की सलाह दे डाली थी।
अभिभावक की अपेक्षा के कारण तनावः-
आज के इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में अक्सर देखा गया है कि अभिभावक गण ही जाने अनजाने अपने बच्चों के तनाव को बढ़ावा देने का कारण बनते हैं।वे अपने बच्चों से परीक्षा में श्रेष्ठ प्रदर्शन की अपेक्षा ही नहीं करते, बल्कि उनके कोमल मनोमस्तिषक पर इसके लिये दबाव भी बनाते हैं, जिससे बचा जाकर उन्हे छोटे-छोटे लक्ष्य देवें। क्षमा करें ऐसे अभिभावक अपने बच्चों अपने बच्चों के शत्रु न बनें। अपने बच्चों को अवसाद की ओर न ढकेलें। अपने बच्चों के दिमाग में नकारात्मक सोच को न पनपने दें, बल्कि उसकी जगह सकारात्मक प्रवृत्तियों को उभारने का कार्य करें।माता-पिता बच्चों को डाटने की बजाए उनके दोस्त बनकर परीक्षाओं की तैयारी में सहयोग देकर बच्चों की सहायता कर सकते हैं। क्योंकि न केवल वे बच्चों के प्रेरणा स्रोत होते हैं बल्कि उनके प्रथम गुरू भी होते है। ‘‘नास्ति मातृपित् समो गुरूः’’।
तुलना किये जाने के कारण तनाव
बच्चों की अपने भाई- बहनों एवं दूसरे बच्चों से तुलना न करें, उनसे सर्वोच्च परिणाम की अपेक्षा न दर्शायें।
शिक्षक के कारण तनाव
शिक्षा के लगातार कड़क होने के कारण वे बीच बीच में दोस्त बनकर तनाव दूर न करने की स्थिति में शिक्षक को तनाव का कारक हो जाता है। अन्य तनावों की तुलना में परफॉरमेंस से (प्रदर्शन) का तनाव विद्यार्थी पर सबसे ज्यादा होता है। इसके लिये उन्हे यह बतलाना आवश्यक है कि अन्य तनाव की तुलना में परीक्षा की सफलता या असफलता जीवन की सफलता या असफलता नहीं है। परीक्षा में सफलता को अपने जीवन मरण का सवाल न बनायें।
वर्तमान परीक्षा पद्धति के कारण उत्पन्न तनाव भविष्य में परीक्षा पद्धति प्रकृति में परिवर्तन होने पर कम व उसकी प्रवृति बदल सकती है। अर्थात किताबों के साथ उत्तर पुस्तिका लिखने की सुविधा (जैसे विश्व के कुछ देशों में वर्तमान में हैं) मिलने पर। इसी से जुड़ी नकल से उत्पन्न तनाव है। क्योंकि नकल को रोकने में असफल होने के कारण उससे निपटने के लिये ही संबंधित विषय की पुस्तके देने का एक सुझाव विचाराधीन है।
नकल के कारण एक मेहनती छात्र के दिमाग में नकलची छात्राओं को ज्यादा सफलता के मिलने की आशंका का तनाव बराबर बना रहता है।