मज़दूरों के सामूहिक पलायन से टूट रहा सोशल डिस्टेंसिंग का सुरक्षा कवच 


चैतन्य मिश्रा:-  


सामूहिक पलायन की स्थिति कोरोना के साथ हो रही लड़ाई को कमजोर बना रही है।देश में संक्रमण का खतरा मंडराने लगा है ।लॉकडाउन में सोशल डिस्टेंसिंग तोड़ने के अच्छे नतीजे नहीं मिलेंगे। मजदूरों का सामूहिक पलायन खतरे की घंटी बजा रहा है। अगर ऐसी भीड़ में चार पांच व्यक्तियों को भी कोरोना का संक्रमण है तो वह आगे चलकर चेन बनाते हुए हजारों लोगों को अपनी चपेट में ले सकता है।


कोरोना वायरस के रोकने के लिए पूरे देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा की साथ ही  सरकारों ने भी इस पर कड़ाई से पालन  कराने के लिए अलग-अलग तरह के प्रयास भी कर रही है।लेकिन लॉकडाउन की घोषणा  के बाद से पिछले चार दिनों में देश के अलग अलग हिस्सों में एक नया संकट उभरा है।  और संकट ऐसा  हुआ, दिल्ली मुंबई छत्तीसगढ़ व अन्य राज्यों के  महानगरों से  दिहाड़ी मजदूर, कारखाना श्रमिक और अन्य अनेक लोग जिस तरह अपने घर-गांव जाने के लिए उमड़ पड़े ,भीड़ के सामूहिक पलायनऔर सोशल डिस्टेंसिग तोड़ने  की  स्थिति कोरोना के साथ हो रही लड़ाई को कमजोर बना रही है।देश में संक्रमण का खतरा मंडराने लगा है ।सोशल डिस्टेंसिग तोड़ने का नतीजा ही है की राजधानी दिल्ली केंद्र में स्थित निजामुद्दीन इलाके में हुए धार्मिक जलसे में शामिल होने वाले 24 लोगों में कोविड-19 के इंफेक्शन की पुष्टि होने के बाद हड़कंप मचागया है । करीब 350 लोगों में इसके लक्षण मिले हैं और उन्हें अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती कराया गया है।यह स्थिति और भी भयावह हो सकती है। जानकारों  का कहना है कि कोरोना लॉकडाउन में सोशल डिस्टेंसिंग तोड़ने के अच्छे नतीजे नहीं मिलेंगे। मजदूरों का सामूहिक पलायन खतरे की घंटी बजा रहा है। अगर ऐसी भीड़ में चार पांच व्यक्तियों को भी कोरोना का संक्रमण है तो वह आगे चलकर चेन बनाते हुए हजारों लोगों को अपनी चपेट में ले सकता है।  सोशल डिस्टेंसिंग का सुरक्षा चक्र टूटने से कोरोना का संक्रमण कितना बढ़ता है, यह देखने वाली बात होगी,लॉकडाउन का मतलब लोगों को अपने घरों से बाहर नहीं निकलना है।लोगों के बीच कम से कम छह फुट की दूरी रहे। कोरोना संक्रमण को आगे फैलने से रोकने के लिए यह सबसे अधिक कारगर तरीका माना जाता है। लेकिन इन सबको अनदेखा   कर  हजारों की संख्या में लोगों का सड़कों पर आना और पैदल ही अपने गांव की ओर चल पड़ना अपने आप में कई सवाल लिए हुए  है।और इस पलायन से  राज्य सरकारों के साथ केंद्र सरकार के समक्ष भी यकायक यह चुनौती आ खड़ी हुई कि इन सबको राहत देने के साथ ही उनके बीच कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से कैसे रोका जाए, यह संतोषजनक है कि केंद्र एवं राज्य सरकारें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के इन लोगों को सुरक्षित ठिकानों पर ठहराने और उनके खाने-पीने की उचित व्यवस्था करने में जुटी हुई हैं। इस व्यवस्था में समाज के सक्षम तबके की ओर से बढ़ चढ़कर जिस तरह योगदान दिया जा रहा है वह समस्या की गंभीरता को कम करने वाला तो है ही, राष्ट्रभाव को बल देने वाला भी है। महानगरों से हजारों लोगों का पलायन एक मानवीय त्रसदी के अलावा और कुछ नहीं। इस पर गंभीरता से विचार होना चाहिए कि आखिर लॉकडाउन की घोषणा के एक-दो दिन बाद अचानक ऐसा क्या हआ कि महानगरों से हजारों लोग अपने गांव जाने के लिए निकल पडे? जब बार-बार यह कहा जा रहा था कि जो जहां है वह वहीं रहे तो फिर ऐसी नौबत क्यों आई कि हजारों-हजार लोग अनजानी आशंका से घिर गए और अपना ठौर-ठिकाना छोड़कर निकल लिए?आखिर इस सवाल ने  राजनीतिक वर्ग को कहीं अधिक गहनता से विचार करने के लिए मज़बूर कर दिया है । क्योकि यह वही  वर्ग है जो दिन-रात गरीबों-मजदूरों के हित की बातें करता है। यह अच्छा हुआ कि मजदूरों और कामगारों की पलायन की त्रसदी का अहसास खुद प्रधानमंत्री ने किया। उन्होंने मन की बात कार्यक्रम के जरिये इस त्रासदी से दो-चार हो रहे लोगों से माफी मांगकर अपने बड़प्पन का परिचय दिया। लोगों को लॉकडाउन के दौरान हिम्मत, भरोसा और धैर्य रखना होगा ,और इसे गंभीरता और कड़ाई से पालन करना  होगा तब कही जा कर इसके परिणाम बेहतर दिखाई दे सकते है । जरुरी है की  ये लोग जहां भी जाएं, वहां का प्रशासन इन सभी को जांच और  क्वारंटीन की सुविधा दे तो कुछ हद तक कोरोना संक्रमण से बचा जा सकता है।


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