भारत ने बार-बार यह सिद्ध किया है कि वह न तो आक्रांता है, न पलायनवादी। लेकिन जब देश की सीमाएं, सैनिकों का बलिदान और नागरिकों की सुरक्षा का प्रश्न उठे, तब भारत को निर्णायक और आत्मनिर्भर बनकर खड़ा होना होगा।
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ सुनियोजित आतंकी हमला एक बार फिर यह स्पष्ट करता है कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद आज भी भारत की अखंडता और संप्रभुता को चुनौती देने का दुस्साहस करता है। किंतु इस बार भारत ने जिस तरह का जवाब दिया, वह केवल प्रतिक्रिया नहीं, एक निर्णायक रुख था।ऑपरेशन सिंदूर भारत की निर्णायक चेतावनी भारतीय सेना द्वारा चलाया गया ऑपरेशन सिंदूर इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों से दर्ज किया जाएगा। यह केवल एक सैन्य ऑपरेशन नहीं था, यह भारत की राजनीतिक इच्छाशक्ति, सामरिक दूरदर्शिता और आत्मनिर्भर रक्षा नीति का प्रतीक था। रावलपिंडी के निकट चकराला एयरबेस, झंग-शेखूपुरा तथा बलूचिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों की लैंडिंग स्ट्रिप्स पर लक्षित हमले ने पाकिस्तान के सैन्य ढांचे की नींव हिला दी।इस अभियान में 'राफेल' स्क्वाड्रन की सटीक बमबारी और स्वदेशी 'प्रचंड' अटैक हेलिकॉप्टर की दक्षता ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत अब रोकथाम की नीति से निर्णयात्मक कार्रवाई की नीति पर आ चुका है।जब पाकिस्तान की सेना का मनोबल चूर-चूर हो चुका था, और भारत सामरिक रूप से पूर्ण नियंत्रण में था, उसी समय अमेरिका की ओर से पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा सीजफायर की घोषणा और भारत की उस पर सहमति कई मूलभूत प्रश्नों को जन्म देती है।भारत ने युद्ध विराम स्वीकार कर एक बार फिर 'विश्वशांति' को प्राथमिकता दी, परंतु यह भी सोचने योग्य है कि क्या इस निर्णय से हमारी निर्णायक क्षमता कमजोर संदेश तो नहीं दे रही? क्या हम एक निर्णायक विजय को अधूरा छोड़ने को बाध्य हुए?ऑपरेशन सिंदूर ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की सैन्य प्रतिष्ठा को नई ऊंचाई दी, लेकिन युद्धविराम की असमय घोषणा से एक विरोधाभासी छवि भी बनी। अमेरिका की भूमिका ने यह आभास कराया कि हमारी रणनीतिक स्वायत्तता अब भी वैश्विक शक्तियों के हस्तक्षेप से पूर्णतः मुक्त नहीं है।BRICS में रूस के साथ बनते-बिगड़ते समीकरण, यूक्रेन युद्ध में हमारी सतर्क नीति और पश्चिम के साथ बढ़ती निकटता इन सभी का समग्र प्रभाव यह रहा कि भारत की कूटनीतिक स्थिरता पर प्रश्नचिन्ह खड़े हुए।हम मानते हैं कि भारत ने नैतिक दृष्टिकोण से एक उच्च भूमि ली विश्व को यह दिखाया कि भारत युद्ध का पक्षधर नहीं, शांति का अग्रदूत है। परंतु हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आज की भूराजनीति में नैतिकता तभी सम्मान पाती है जब उसके पीछे ठोस सामरिक और रणनीतिक ताकत हो।क्या हम अपने निर्णायक क्षणों में बार-बार वैश्विक दबावों के आगे झुकेंगे?क्या हमारी सैन्य सफलताओं का राजनीतिक लाभ सीमित ही रहेगा?और क्या हमारी विदेश नीति केवल 'घटनाओं की प्रतिक्रिया' तक सिमटी रहेगी, या रक्षात्मक रणनीति अपनाई जाएगी?भारत ने बार-बार यह सिद्ध किया है कि वह न तो आक्रांता है, न पलायनवादी। लेकिन जब देश की सीमाएं, सैनिकों का बलिदान और नागरिकों की सुरक्षा का प्रश्न उठे, तब भारत को निर्णायक और आत्मनिर्भर बनकर खड़ा होना होगा। हम भारत की विदेश नीति और सुरक्षा नीति में स्वायत्तता, स्पष्टता और दृढ़ता के पक्षधर हैं। हम यह भी अपेक्षा करते हैं कि भारत अपने सामरिक लाभ को अंत तक लेकर जाए, न कि उसे वैश्विक मंचों पर नर्मी की प्रतीक बनाकर छोड़ दे।आज आवश्यकता है स्पष्ट दृष्टिकोण की, आत्मविश्वास की और एक ऐसी विदेश नीति की जो केवल प्रतिक्रियात्मक न हो, बल्कि भविष्यद्रष्टा हो।
भारत विजयी था, है और रहेगा किंतु अब निर्णय भी भारत के होंगे।
जय हिंद 🚩🚩