अस्मिता पर सुनियोजित प्रहार, मजहबी चक्रव्यूह के शिकंजे में बेटियां


मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हाल ही में सामने आया संगठित लव जिहाद और बलात्कार कांड केवल एक आपराधिक मामला नहीं है, यह भारतीय समाज के ताने-बाने पर एक गहरी चोट है। जो एक बार फिर समाज की उस स्याह हकीकत को उजागर कर दिया है, जहां मजहबी उन्माद और अपराध की साजिशें, मासूम बेटियों की अस्मिता को रौंदती हैं।जिस तरह मुस्लिम युवकों ने संगठित गिरोह बनाकर हिंदू छात्राओं को प्रेमजाल में फंसाया, उनके साथ दुष्कर्म किया और फिर अश्लील वीडियो के ज़रिए ब्लैकमेलिंग करते हुए उनकी सहेलियों तक को अपना शिकार बनाया, वह किसी फिल्मी कहानी जैसी नहीं, बल्कि समाज के भीतर पनप रहे सुनियोजित जिहादी मानसिकता का घिनौना प्रदर्शन है।भोपाल की इस घटना ने न केवल स्थानीय जनमानस को झकझोर दिया है, बल्कि समूचे देश को एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया है , क्या हमारी बेटियां सुरक्षित हैं? क्या धर्म और मज़हब के नाम पर चल रही यह सांस्कृतिक आक्रामकता अब सामाजिक विनाश की दिशा में नहीं जा रही?

भोपाल की घटना की तुलना यदि किसी पुराने मामले से की जाए तो अजमेर का 1992 का गैंगरेप कांड इसके सबसे करीब है। दरगाह से जुड़े दो प्रभावशाली मुस्लिम युवकों ने अजमेर के सोफिया कॉलेज की कई हिंदू लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाकर पहले उनके साथ बलात्कार किया, फिर अश्लील तस्वीरें खींचीं और उन्हें ब्लैकमेल कर उनकी सहेलियों तक को इस नरक में धकेल दिया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस मामले में करीब 100 से ज्यादा लड़कियां शिकार बनीं थीं, और इनमें से अधिकतर ने कभी सामने आने की हिम्मत तक नहीं की। केरल लव जिहाद की प्रयोगशाला के रूप में सामने आया जहां विगत वर्षों में लव जिहाद के कई गंभीर मामले सामने आए हैं। नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) ने भी इसकी जांच की। हदिया केस इसका एक प्रसिद्ध उदाहरण है, जहां एक हिंदू लड़की को मुस्लिम युवक ने इस्लाम में परिवर्तित कर निकाह किया। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। भले ही कोर्ट ने विवाह को वैध ठहराया, लेकिन जांच एजेंसियों की रिपोर्ट ने ऐसे सैकड़ों मामलों की ओर इशारा किया, जिनमें उद्देश्य केवल विवाह नहीं, बल्कि मतांतरण और मानसिक नियंत्रण था।उत्तर प्रदेश में बलरामपुर, बरेली और मेरठ जैसे जिलों से लगातार ऐसी घटनाएं सामने आईं, जहां मुस्लिम युवक हिंदू नाम रखकर लड़कियों से संबंध बनाते हैं, फिर जबरन धर्मांतरण की कोशिश करते हैं। मेरठ में तो 'लव जिहाद' की आड़ में चल रहे धर्मांतरण गिरोह का भंडाफोड़ हुआ, जिसमें विदेशी फंडिंग होने की भी बात सामने आईं ।हरियाणा में भी कई मामलों में पीड़ित लड़कियों की आत्महत्या तक की घटनाएं हुईं। राजस्थान , पश्चिम बंगाल में भी कई रिपोर्ट्स ने सांप्रदायिकता और मजहबी कट्टरता की आड़ में लव जिहाद के मामलों का खुलासा किया है।

यह मुद्दा केवल अपराध नहीं, सांस्कृतिक आक्रमण है,इन सभी घटनाओं को यदि एक साथ रखा जाए तो साफ हो जाता है कि यह महज प्रेम-प्रसंग में धोखा नहीं है। यह एक बड़े उद्देश्य के तहत लड़कियों को फंसाने, उनके आत्मसम्मान को तोड़ने और उन्हें अपनी संस्कृति, धर्म और पहचान से दूर करने की साजिश है। इस पूरे नेटवर्क के पीछे कौन लोग हैं? क्या इन युवकों को ट्रेनिंग दी जाती है? क्या यह किसी वैश्विक कट्टरपंथी एजेंडे का हिस्सा है? यह जांच का विषय है, लेकिन जब समाज आंख मूंद ले, तब सत्य सामने आने में वर्षों लग जाते हैं ।हालांकि कई राज्य सरकारों ने "लव जिहाद" के खिलाफ कड़े कानून बनाए हैं लेकिन ज़मीनी स्तर पर प्रक्रियाओं की जटिलता और पीड़िताओं के समाज से मिल रहे दबावों के कारण सजा की दर बेहद कम है।भोपाल में पुलिस ने भले ही आरोपियों को गिरफ्तार किया हो और SIT गठित की हो, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कार्रवाई पर्याप्त है? क्या कॉलेज प्रबंधन, स्थानीय प्रशासन, और सोशल मीडिया मॉनिटरिंग एजेंसियां इस गिरोह के बनने से पहले जागी थीं?आज जब हम वैश्विक मंच पर एक सशक्त राष्ट्र बनने की दिशा में अग्रसर है, तब हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि हमारी बेटियां एक स्वतंत्र और सुरक्षित वातावरण में जी सकें। इसके लिए केवल कानून नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना और पारिवारिक संवाद की अत्यंत आवश्यकता है।माता-पिता को चाहिए कि वे अपनी बेटियों के साथ खुलकर संवाद करें। स्कूल और कॉलेज प्रशासन को प्रेम-जाल के मामलों में संवेदनशील दृष्टिकोण के साथ साइकोलॉजिकल काउंसलिंग की व्यवस्था करनी चाहिए। समाज को भी सांप्रदायिकता के डर से ऊपर उठकर सच को स्वीकार कर, सही-गलत में स्पष्ट अंतर करना होगा।यह समय मौन रहने का नहीं है। भोपाल की बेटियों की चीखें केवल एक शहर की नहीं, पूरे देश की चेतना को झकझोरने वाली हैं। यदि आज हम चुप रहे, तो कल यह चक्रव्यूह आपके-हमारे घरों तक पहुंच सकता है। बेटियों को बचाना है तो लव जिहाद जैसे सुनियोजित षड्यंत्रों को पहचानना और उसका प्रतिकार करना ही होगा।हमारी बेटियां हमारी शक्ति हैं। उनकी सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए समाज, परिवार, और सरकार को एकजुट होकर काम करना होगा।भारत की संस्कृति नारी सम्मान की प्रतीक रही है। उस संस्कृति की रक्षा, अब केवल भाषणों से नहीं, सजगता, शिक्षा और संगठन से ही होगी।

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