वृक्षों को बचाने के लिये धेनु सेवा संस्थान ने दिखाई नई राह. लकड़ी का बेहतर विकल्प बन रहा है गोबर से बना गौकाष्ठ . शवदाह के लिये हमेशा उपलब्ध है सूखी गौकाष्ठ


अनूपपुर / क्या आप जानते हैं कि अनूपपुर जिला अन्तर्गत अमरकंटक के तीस से अधिक छोटे - बड़े आश्रमों तथा पचास से अधिक छोटे - बड़े होटलों में प्रतिमाह हजारों क्विंटल लकड़ियाँ जलाई जा रही हैं ? क्या आपको यह पता है कि एक शवदाह के लिये यदि बारिश के मौसम में गीली लकड़ियाँ टाल से मिल जाए तो अंतिम संस्कार में कितनी परेशानी होती है ? क्या आप यह जानते हैं कि ईंधन के लिये लकडियों की वैध - अवैध आपूर्ति के कारण तेजी से वृक्ष काटे जा रहे हैं। जिसके कारण हमारे आसपास के जंगल तेजी से सिकुड़ने लगे हैं।     ऐसे ही प्रश्नों का हल निकालने के लिये शहडोल के सतगुरु परिवार की धेनु सेवा संस्थान ने बीड़ा उठाया है। घायल, बीमार ,भूखी - प्यासी गायों की सेवा के लिये विख्यात यह संस्थान अब गौ पालन को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ने का सफल प्रयास कर रहा है। धेनु सेवा संस्थान अब गाय के पवित्र गोबर से लकड़ी का अधिक बेहतर विकल्प तैयार कर रहा है। गाय के गोबर से बने कंडों से आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में भोजन बनाया जाता है। हवन आदि तमाम शुभ कर्म गाय के गोबर से बने कंडों को जला कर किया जाता है।   अब सतगुरु परिवार का यह प्रयास है कि धेनु सेवा संस्थान लोगों को यह सुविधा उपलब्ध कराये कि लोग शवदाह लकड़ियों से ना करके गाय के गोबर से बने गौ काष्ठ से करें। अमरकंटक के आश्रमों में जंगल की लकडियों की जगह गोबर से बनी गौ काष्ठ का प्रयोग करें। यदि समाज तथा प्रशासन लकडियों की जगह गौ काष्ठ की स्वीकार्यता बनाले तो आश्रम - होटलों की धूनी एवं भट्ठियों में जंगलों की बेशकीमती लकडियों की जगह गौ काष्ठ का उपयोग होने लगेगा। इससे प्रतिवर्ष हजारों पेड़ों को जीवनदान मिलने से पर्यावरण अधिक स्वच्छ, अधिक स्वस्थ हो जाएगा ।   सतगुरु परिवार के धेनु सेवा संस्था से जुड़े आनंद मिश्रा , अरिमर्दन द्विवेदी, विनय पाण्डेय, वसुराज शुक्ला, अमन द्विवेदी, श्रेष्ठा द्विवेदी, शौर्य तथा सुबोध मिश्रा की टीम गोबर गौ काष्ठ बनाने मे मदद कर रही है।   यह संस्थान शहडोल में गोबर से गौकाष्ठ बनाने का पुनीत काम कर रहा है। आनंद मिश्रा कहते हैं कि लकडियों की तुलना में गौकाष्ठ उसके बराबर या उससे थोड़ी मंहगी लग सकती है लेकिन ऐसा है नहीं । लकडियों की तुलना मे गौकाष्ठ से कम धुंआ निकलता है ,जिसका लाभ व्यक्ति के स्वास्थ्य तथा पर्यावरण को संरक्षित करने में होता है। वातावरण भी पवित्र रहता है। बारिश के दिनों में जब लकड़ियाँ गीली होती है तो उसे जलाने में भी परेशानियों का सामना करना पडता है। जबकि गौ काष्ठ सूखी होने के कारण तेजी से आग पकडती है तथा तेज गर्मी पैदा करती है। गौ काष्ठ भविष्य में लकड़ी की कमी को देखते हुए शवदाह तथा अन्य तरह की ऊर्जा का बेहतरीन, सुलभ विकल्प बन सकता है। इसके कारण गोबर की कीमत बढने से गौपालक गायों को सड़कों पर आवारा नहीं छोडेगें। अभी वर्तमान में यह शहडोल,अनूपपुर सहित चुनिंदा स्थानों पर उपलब्ध है।


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