जिला जनसंपर्क अधिकारी की चल रही मनमानी के चलते अनिवार्य सेवानिवृत्त देने की मांग

जनता दवरा जिला जन संपर्क अधिकारी के खिलाफ नो वर्क - नो पे करके अनिवार्य सेवानिवृत्त करने की मांग



अनूपपुर /जनसंपर्क का क्षेत्र आज बेहद बड़ा गया हो गया है।जनसंपर्क विभाग और इनके अधिकारी जनता व सरकार के मध्य एक कड़ी होती है, इसके अंतर्गत नए नए प्रयोग हो रहे है और इससे जनसंपर्क के उद्देश्यों का दायरा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। जनसंपर्क एक कार्य विशेष न रहकर एक विशेष कला होती जा रही है,लेकिन इसके ठीक विपरीत अनूपपुर जनसम्पर्क विभाग में पिछले 12 अक्टूबर से जो अधिकारी कार्य भार सम्हाले हुए है , वो मानों जिले में आकर अनूपपुर की जनता, यहाँ के प्रशासन, यहाँ के पत्रकारों पर एक अहसान सा करते हुए दिखाई दे रहे  हैं।  वर्तमान समय  के   जनसम्पर्क अधिकारी  अपना मूल काम शासकीय खबरें जारी करने तक का काम नहीं कर रहे। पत्रकारों की पीडा है कि अक्टूबर से मध्य नवम्बर के बीच इनके द्वारा एक भी खबर जारी नहीं की गयी।वे अपने विभाग और पद के लिए गंभीर नहीं हैं और साथ ही  वह अपनी मनमानी भी करते रहते  है।  इनके कार्यालय में इनकी इच्छा के बिना इनसे कोई मिल नहीं सकता। जनसंपर्क विभाग, अनूपपुर जिले में जनसंपर्क करने में विफल हो रहा है। सूत्रों के अनुसार कुछ पत्रकार आम दिनों की तरह अचानक इनके कमरे में इनसे समाचारों के सिलसिले में मिलने पहुंचे तो यह जानकार गहरा धक्का लगा कि ये महोदय सोशल मीडिया व्हाट्सएप ट्विटर फ़ेसबुक जैसे प्लेटफार्म का स्तेमाल नहीं करते जिसका की  प्रदेश ही नही देश की सरकार द्वारा अनिवार्यता से किया जाता है और जनसंपर्क विभाग मध्यप्रदेश का आदेश भी है कि इन प्लेटफॉर्मो के अनिवार्य से सक्रिय होना चाहिए ऐसा लगता है कि जिले से जनसंपर्क विभाग सबसे बड़े अधिकारी है  जनसम्पर्क अधिकारी जिले के  पत्रकारों को अपना फोन नंबर देना भी उचित नहीं समझते ,इस लिए की कहीं  उनके नींद में खलल न पड़ जाये , जब भी यह पूछा जाता है आपसे कैसे बात होगी तो जवाब है कि आफिस में कार्यरत एक कर्मचारी को अपना सेक्रटरी बता कर उनसे बात करने को कहा जाता है ,खुद बात करना या स्वयं कोई सुचना देना ये आवश्यक नहीं समझते। आश्चर्य की बात तो यह है की इनके पास अपना स्वयं का मोबाइल नम्बर तक नहीं है।ऐसी स्थित में कैसे जन आकांक्षाओं को जानने,जनसेवाओं की उपलब्धियों को बताने ,लोक सेवा के अनुकूल जनमत तैयार करने,प्रशासनिक सुधार से सम्बन्धित सुझाव प्राप्त करने,सरकार की व्यथा और असमर्थता को बताने,जनता को अफवाहों और गलतफहमियों से दूर रखने,सेशन प्रशासन के कार्यक्रमों एवं नीतियों की सफलता के लिए इसका प्रचार भला कैसे हो सकता है यह विचारणीय है।  जिले को ऐसे सोते, ऊंघते  अधिकारी की जरुरत क्या है , जो ना तो पत्रकारों से मिलना पसंद करता ना ही समाचारों को जारी करने मे जिसकी कोई रुचि ही है ? लगभग डेढ माह से इन महोदय की कलम से शासकीय योजनाओ, गतिविधियों, चुनाव  की एक भी खबरें जारी ना होना बहुत से सवाल खडे करता है। एक ओर जिले के मुखिया कलेक्टर चन्द्रमोहन ठाकुर , उनके अधीन अन्य विभाग चुनाव के साथ अन्य कल्याणकारी रुटीन गतिविधियों में व्यस्त रहे हैं। लेकिन उसे प्रचारित - प्रसारित करने का दायित्व जिसके कन्धों पर है वह अपने दायित्यो का निरवहन करने में विफल हो  गया है। सरकार तथा प्रशासन को चाहिए कि ऐसे अधिकारी को नो वर्क - नो पे करके अनिवार्य सेवानिवृत्त कर दे।


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