मणिपुर में सियासत की विसात, राजा गया पर खेल अभी बाकी है

 

मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच की असहमति का इतिहास कई दशकों पुराना है। पिछले 21 महीनों में, यह संघर्ष हिंसक रूप ग्रहण कर चुका है, जिसमें 250 से 500 लोगों की जानें गई हैं और लगभग 60,000 लोग अपने घरों से बेघर हो गए हैं। यह केवल एक राज्य की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर में उग्रवाद की वापसी के खतरे की ओर भी इशारा करता है। गृह मंत्रालय की रिपोर्टों में खुलासा हुआ है कि इस स्थिति ने गवर्नेंस की कमजोरी को उजागर किया है।मुख्यमंत्री का इस्तीफा तब आया जब उनकी पार्टी के कुछ विधायक और राज्य इकाई बगावत कर अविश्वास प्रस्ताव लाने पर उतारू हो गए थे। यह स्थिति न केवल उनके व्यक्तिगत नेतृत्व को चुनौती देती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि केंद्र सरकार किन निर्णयों का सामना कर रही है। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में, जब गवर्नेंस प्रणाली चरमरा जाती है, तो यह केंद्र के लिए चिंताजनक होता है। ऐसे में मुख्यमंत्री का इस्तीफा यह सवाल उठाता है कि क्या केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारियों को सही ढंग से निभा रही है।सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए मुख्यमंत्री के विवादास्पद ऑडियो टेप की जांच के आदेश दिए हैं। यह ऑडियो टेप उस समय के बयान को लेकर है जब मुख्यमंत्री ने अपनी स्थिति को एक समुदाय के प्रति पक्षपाती ढंग से प्रस्तुत किया। इस तरह का पक्षपात न केवल संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह राजनीतिक संतुलन को भी बिगाड़ता है। यह स्थिति दर्शाती है कि मुख्यमंत्री ने गवर्नेंस के मूल सिद्धांतों को समझने में असफलता दिखाई है।संविधान केंद्र सरकार को यह अधिकार और जिम्मेदारी देता है कि वह सुनिश्चित करे कि राज्यों में शासन संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार चल रहा है। मणिपुर की वर्तमान स्थिति में, जहां से आपातकाल की स्थिति में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है, केंद्र सरकार को स्पष्ट रूप से कार्रवाई करनी चाहिए थी। लेकिन मुख्यमंत्री के पक्षपात की रिपोर्टों को नजरअंदाज कर दिया गया, जो कि गवर्नेंस के प्रति एक और संकेत है।वोट की राजनीति ने भी इस समस्या को बढ़ाया है। कुछ विधायक मुख्यमंत्री के साथ खड़े रहे, लेकिन विवाद बढ़ने के बाद उन्होंने अपना समर्थन वापस ले लिया। यह दिखाता है कि राजनीतिक स्वार्थ शांति और स्थिरता के लिए खतरा बन गया है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि राजनीतिक नैतिकता की अनुपस्थिति ने स्थिति को और अधिक जटिल बना दिया है।भविष्य में, मणिपुर की यह स्थिति अन्य राज्यों के लिए एक चेतावनी बन सकती है। राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक कटुता को एक साथ मिलाकर लाना कठिन हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश से यदि निष्कर्ष निकलता है तो यह केंद्र सरकार पर न केवल दबाव डालेगा बल्कि इससे सामाजिक असमानताओं को संबोधित करने की आवश्यकता भी बढ़ेगी मणिपुर के मुख्यमंत्री का इस्तीफा कई स्तरों पर सवाल खड़े करता है। यह राजनीतिक नेतृत्व की विफलता, सामुदायिक संघर्ष और संविधान के प्रति केंद्रीय सरकार की जिम्मेदारियों को समझने में असमर्थता का प्रतीक है। भविष्य में, यह स्थिति केवल मणिपुर के लिए नहीं, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर भारत के लिए गंभीर परिणाम ला सकती है। यदि सही कदम नहीं उठाए गए तो यह स्थिति नए संघर्षों को जन्म दे सकती है और सामाजिक ताने-बाने को और कमजोर कर सकती है।

Comments
Popular posts
अनूपपुर थर्मल एनर्जी की पर्यावरणीय लोक सुनवाई सफलता पूर्वक संपन्न, मिला सामुदायिक समर्थन
Image
विजय के शिखर पर ठहराव और भारत की वैश्विक छवि
Image
विश्व पर्यावरण दिवस पर उद्योग ने तालाब गहरीकरण वृक्षारोपण एवं प्राकृतिक जल स्रोतों किया संचयन।
Image
मजदूरों के सम्मान में भगवा पार्टी मैदान में — मंडीदीप के सफाई कर्मियों को न्याय दिलाने का संकल्प
Image
अस्मिता पर सुनियोजित प्रहार, मजहबी चक्रव्यूह के शिकंजे में बेटियां
Image