विनोद पान्डेय ✒:-
स्वतंत्र भारत का सबसे पुराने केस में से एक अयोध्या विवाद का फैसला आ गया है। भारत के चीफ जस्टिस रंजन गागोई की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संवौधानिक पीठ ने अपना फैसला सुनाकर देश में आस्था व धर्म के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेकने वाले को एक करारा जवाब देकर, देश के सबसे बड़े धार्मिक व राजनीतिक मुद्दों को हमेशा के लिये समाप्त कर दिया व साथ ही देश की जनता ने व सभी धर्म को मानने वाले लोगों ने 70 साल तक चली कानूनी लड़ाई 40 दिन तक लगातार मैराथन सुनवाई के बाद अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खुले दिल से स्वीकार किया। तथा कोर्ट के इस ऐतिहासिक निर्णय ने अविश्वास और अलगाव की दीवार को गिरा कर फिर से गंगा जुमना की तहजीव को एक नई दिशा और ऊर्जा से ओतप्रोत कर दिया है। कोर्ट ने बेहद सूझबूझ तरीके से इस धार्मिक विवाद बनने से बचाया साथ ही पूरे मामले में आस्था की राजनीतिक उन्माद फैलाने के गुुंजाईशों पर नकेल कसना भारतीय न्याय व्यवस्था को सर्वोपरि दर्शाती है। साथ ही यह भी दिखाती है कि न्याय हमेशा निर्विकार होता है। अतीत के बात करें तो 90 के दशक में उक्त विवाद को भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पहचान के रूप में अपनाया था। देश ने ढांचे के विध्वंस के बाद देश ने एक अराजकता का दौर भी देखा था। इसी से डर कर देश निर्णय को लेकर भयभीत था, परन्तु आस्था व्यक्तिगत होती है और इसमें हिंसा का उन्माद का कोई स्थान नहीं होता है जैसा कि कोर्ट के निर्णय के बाद देश की जनता ने दिखा दिया। साथ ही केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों ने साथ ही पुलिस प्रशासन ने भी अपनी भूमिका को पूरी मुस्तैदी व सतर्कता से निरवाह करते हुये कार्य किया। यह सब इस हेतु बधाई के पात्र भी हैं। आशा करते हैं यह समय आगे बढ़ने और सद्भाव को सुदृढ़ करने का है और इस निर्णय के बाद हिन्दुस्तान में आने वाले बदलाव सकारात्मक व विकास की कसौटी पर मील का पत्थर साबित होंगे ।