दर्द के 35 साल ,भोपाल गैस त्रासदी

 इतिहास में दर्ज हर तारीख की तरह तीन दिसम्बर के खाते में भी कुछ अच्छी बुरी घटनाएं दर्ज हैं, लेकिन इस दिन एक ऐसी घटना भी हुई, जो मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के लोगों को सदियों तक सालने वाला दर्द दे गई। 



भोपाल ,35 बरस पूरे हो गए हैं विश्व की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी यानि भोपाल गैस त्रासदी, भारतीय इतिहास में दर्ज वो त्रासदी जिसने चंद मिनटों में हजारों जिंदगियां लील लीं. आज भी लोगों के दिलों में इस त्रासदी के जख्म ताजे हैं. 2-3 दिसंबर 1984 की दरम्यानी  वो काली रात जो आज भी लोगों के रोंगटे खड़े कर देती है.भोपाल में यूनियन कार्बाइड के कारखाने से निकली प्राणघातक गैस के नासूर को रिसते अर्सा बीत गया है, लेकिन तंत्र की तंद्रा अब तक भंग नहीं हुई है.यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ था. इसकी वजह थी टैंक नंबर 610 में ज़हरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का पानी से मिल गई. जिसके बाद हुई रासायनिक प्रक्रिया की वजह से टैंक में दबाव पैदा हो गया और टैंक खुल गया और उससे रिसी गैस ने हज़ारों लोगों की जान ले ली. सबसे बुरी तरह प्रभावित हुई कारखाने के पास स्थित झुग्गी बस्ती. वहाँ हादसे का शिकार हुए वे लोग जो रोज़ीरोटी की तलाश में दूर-दूर के गाँवों से आ कर वहाँ रह रहे थे. अधिकांश व्यक्ति निद्रावस्था में ही मौत का शिकार बने. लोगों को मौत की नींद सुलाने में विषैली गैस को औसत तीन मिनट लगे. ऐसे किसी हादसे के लिए कोई तैयार नहीं था. यहाँ तक कि कारखाने का अलार्म सिस्टम भी घंटों तक बेअसर रहा, जबकि उसे बिना किसी देरी के चेतावनी देना था. हाँफते और आँखों में जलन लिए जब प्रभावित लोग अस्पताल पहुँचे तो ऐसी स्थिति में उनका क्या इलाज किया जाना चाहिए, ये डॉक्टरों को भी  मालूम ही नहीं था.कुछ अस्थाई अंधेपन का शिकार थे, कुछ का सिर चकरा रहा था और साँस की तकलीफ तो सब को थी. एक अनुमान के अनुसार पहले दो दिनों में क़रीब 50 हज़ार लोगों का इलाज किया गया. शुरू में डॉक्टरों को ठीक से पता नहीं था कि क्या किया जाए क्योंकि उन्हें मिथाइल आइसोसाइनेट गैस से पीड़ित लोगों के इलाज का कोई अनुभव जो नहीं था. हालांकि गैस रिसाव के आठ घंटे बाद भोपाल को ज़हरीली गैसों के असर से मुक्त मान लिया गया था.लेकिन 1984 में हुए इस हादसे से अब भी शहर उबर नही पाया है ,गैस त्रासदी की जहरीली गैस से प्रभावित लोग अब भी कैंसर, ट्यूमर, सांस और फेफड़ों की समस्या जैसी बीमारियों से ग्रसित हैं। भोपाल में यूनियन कार्बाइड का कचरा भूजल के रास्ते शहर की ज़मीन में ज़हर घोल रहा है. लाखों लोगों की ज़िंदगी दांव पर लगी है उन्होंने कहा, प्रभावितों के पास पैसा नहीं होने के कारण उन्हें उचित इलाज भी नहीं मिल पा रहा है। इसी बीच, गैस पीड़ितों के हितों के लिये लंबे समय से काम करने वाले संस्थाओ ने आरोप लगाया कि केन्द्र एवं राज्य सरकार गैस-पीड़ितों की उपेक्षा कर रही है। अपने संयुक्त बयान में उन्होंने कहा कि हाल के वैज्ञानिक अध्ययन यह बताते हैं कि यूनियन कार्बाइड के गैसों की वजह से भोपाल में मौतों और बीमारियों का सिलसिला जारी है, पर आज तक भोपाल गैस पीड़ितों के इलाज की निगरानी के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित समिति की 80 प्रतिशत से अधिक अनुशंसाओं को अमल में नहीं लाया गया है। दुर्भाग्यवश, इतने सालों में घटना को हर बार बरसी के याद कर लिया जाता है, दोषी को सजा दिलाने और अतिरिक्त मुआवजा दिलाने के तमाम वादे किए जाते हैं। लेकिन दिन गुजरते ही वादों को घटना की तरह दफन कर दिया जाता है। 


 


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