राजनैतिक परिपक्वता दिखाती राहुल की प्रेस कॉन्फ्रेंस


चैतन्य मिश्रा :-


अभी आपस में लड़ने का नहीं एकजुट होकर कोरोना से लड़ने का समय है


भारत में कोरोनावायरस  का कहर लगातार बढ़ रहा है इंडियन मेडिकल रिसर्च काउंसिल और स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट देखी जाये तो, प्रत्येक 24 लोगों की जांच में एक लोग पॉजिटिव मिल रहे हैं. मौत का आंकड़ा देखें तो भारत में अभी तक कोरोना से 480 लोगों की मौत हो गयी और संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़कर 14,000 के पार पहुंच गई है,इस संकट से निपटने के लिए सरकार  अपना काम कर रही है वही विपछ भी सकारात्मक भूमिका में है ,इसी बीच कोरोना संकट पर गुरुवॉर को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए पत्रकार सम्मेलन में समर्थन औऱ सहयोग के बहाने हो या फिर शुक्रवार को ट्वीट के माध्यम से केंद्र सरकार को घेरने के बाद राहुल गांधी अब फिर केंद्रीय भूमिका के लिए तैयार होते नज़र आ रहे हैं। कोरोना संकट में  जब देश के सभी राजनीतिक दल और उनके नेता खामोशी से सरकार की हां में हां मिला रहे हैं तब वह बेहद सियासी चतुराई और सावधानी से सरकार का समर्थन करते हुए भी वो मुद्दे उठा रहे हैं ,जिन्हें हर दल और हर मुख्यमंत्री उठाना चाहता है।गुरुवार को पत्रकारों के सवालों के जवाब में जिस बेबाकी और परिपक्वता से अपनी बात कही, इससे तो यही संकेत मिलता है। राहुल ने न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक शब्द बोला न ही केंद्र सरकार पर हमला बोला।साथ ही उन्होंने यह भी संदेश नहीं दिया कि वह आंख मूंदकर प्रधानमंत्री की हां में हां मिला रहे हैं और सरकार के पिछलग्गू बने हुए हैं। कोरोना संकट पर प्रेस कांफ्रेंस के जरिए देश को संबोधित करके राहुल गांधी सरकार के सामने विपक्ष की आवाज उठाने वाले पहले नेता बन गए हैं।कोरोना संक्रमण के विरुद्ध प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार की नीति को लेकर पूछे जाने वाले हर सवाल के जवाब में राहुल गांधी ने एक ही जवाब दिया कि अभी आपस में लड़ने का नहीं एकजुट होकर कोरोना से लड़ने का समय है।जानकारी के लिए बता दू की राहुल गाँधी ही वो पहले नेता थे जिन्होंने देश में कोरोना संक्रमण के संकट को समझने  और सावधान  करने के लिए सोशल मीडिया के जरिए 31 जनवरी को इस बीमारी को लेकर पहला ट्वीट किया, हालांकि उनका यह ट्वीट चीन के लिए  था, लेकिन 12 फरवरी को राहुल ने भारत पर मंडराने वाले कोरोना संकट की तरफ सीधे तौर पर चेताया था ,लेकिन सत्ता पछ द्वारा अनदेखा  किया गया और सोशल मीडिया में उनका जमकर मज़ाक उडाया गया। जब तक स्थित समझ में आती तब तक बहुत देर हो चुकी थी। राहुल गाँधी अपनी पुरानी  गलतियों को न दोहराते हुए बेहद सियासी समझदारी से सरकार को घेरना शुरु कर दिया है। वह पहले की तरह सरकार के सीधे विरोध की गलती न दोहराकर सुझावों के रूप में अपनी बात कहते हुए सरकार की कमजोरियों की तरफ इशारा कर रहे हैं।पत्रकार सम्मेलन में  राहुल गांधी ने सधे हुए अंदाज में सरकार का सहयोग की बात करते हुए भी यह कह दिया कि अकेले लॉकडाउन के भरोसे कोरोना से निबटना मुमकिन नहीं है।लॉकडाउन को महज पॉज बटन है  हमें  कोरोना जांच का दायरा बढ़ाना , डाक्टरों और चिकित्सा स्टाफ को ज्यादा बेहतर सुरक्षा किट देने, बीमारी से लड़ने के लिए केंद्र सरकार द्वारा ज्यादा से ज्यादा संसाधन और छूट राज्यों को देने, प्रवासी मजदूरों और गरीबों के लिए सरकारी गोदामों में भरे अनाज को खोल देने, किसानों को राहत देने जैसे कदम उठने जैसे सुझाव केंद्र सरकार  को दिए.जिस तरह उन्होंने राज्यों और मुख्यमंत्रियों को ज्यादा स्वतंत्रता देने और संसाधन देने की वकालत की है, उससे गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री असहमत नहीं हो सकते।और साथ ही हाल ही में अमेठी में जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए पांच ट्रक चावल, पांच ट्रक आटा, गेहूं और एक ट्रक दाल के साथ तेल मसाला एवं अन्य खाद्य सामग्री भेजी जिससे जरुरत मंद लोगो को मदद मिल सके। एक तरह से राहुल ने इस संकट कल में बिपच्छ की भूमिका में रहते हुए सहयोग एवं सकरात्मक राजनीती कर अपनी नई  छवि जनता के सामने प्रस्तुत किया है आने वाले समय में निश्चित ही कांग्रेस के लिए सकरात्मक पहलू हो सकता है। 



 


 


 


 


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