कोरोना के साथ जीना ही उसका इलाज है - पं अजय मिश्र


जिस बीमारी का इलाज न हो, लोग उसके साथ जीना सीख लेते हैं, जैसे समाज मे जब एड्स आया तो उसने समाज में बड़े परिवर्तन किए। सैलून में उस्तरे की जगह नए ब्लेड का इस्तेमाल होना शुरु हो गया। ये बड़ा बदलाव था, जो अब सामान्य लग रहा है। इंजेक्शन नए सिरिंज से ही लगने लगे, उबलते हुए सिरिंज का जमाना रवाना हो गया। इंजेक्शन के साथ, सिरिंज, खरीदना नार्मल हो गया है, और तो और रेडलाइट क्षेत्रों के शौकीन भी सावधान हो गए। स्वाईन फ्लू ने भी नई जीवन पद्धति से रूबरू कराया और लोगो ने छींकते-खाँसते वक्त रूमाल लगाना शुरु कर दिया। ऐसा नहीं संभव हो पाया तो सामने वाले से सॉरी कहना भी हमारी आदत में आ गया।


सारा प्रोटोकॉल अपने हिसाब से -
बर्डफ्लू में लोग शाकाहारी हो जाते हैं जैसे उसका असर कम हुआ कि माँसाहार फिर शुरु हो जाता है, मतलब, सारा प्रोटोकॉल अपने हिसाब से। यदि रोग का इलाज नहीं तो उसके साथ जीना सीख लीजिए। कोरोना भी हमें  कुछ नई जीवन शैली के साथ देखना चाह रहा होगा, जैसे शादी-ब्याह और समारोहों में न्यूनतम लोग हों। अंतिम संस्कार में कम से कम लोग जाएं, मार्केटिंग-बैंकिंग ब्यवहार नए स्वरूप में जनता के सामने आए। फल, सब्जी को किस तरह बेचा-खरीदा जाए इसके स्वनिर्मित और स्व-नियंत्रित प्रोटोकॉल बनें। ऑफिस बिहेवियर अलग तरीके से परिभाषित होगा। यात्रा-पर्यटन का एक नया स्वरूप नजर आएगा। शिक्षा छेत्र में भी टीचर की भूमिका बदलेगी। दूरवर्ती शिक्षा अनिवार्य होगी। थिएटर, सिनेमा और कला नए आयामों की ओर बढ़ेंगे।


यकीन मानिए ये बड़ा बदलाव है -
खेल मैदान और स्टेडियम के व्यवहार में बदली हुई तसवीर होगी। सबसे बड़ा बदलाव तो राजनीतिक जीवन में देखने को मिलेगा राजनीति के प्रोटोकॉल बदलेंगे। मॉस्क, दस्ताने और सेनेटाइजर दैनिक उपयोग की चीजें हो जाएंगे। किराने के सामान म़े सेनेटाइजर भी लिखा जाएगा। मॉस्क नहीं होने पर लोगों को दिक्कत होने लगेगी। मॉस्क न होने पर लोग, पड़ोसी से शक्कर की जगह, उधार में मॉस्क मांगने जाएंगे और भी बहुत सी बातें होंगी। इनमें से बहुत सी बातें नहीं भी होंगी पर बड़ा बदलाव तो होगा ही। हम नहीं जानते थे, इन सब बातों से परिचित नही थे इसलिए सरकार ने लॉकडाउन के जरिए कोरोना को साधने की विधि हमें बता समझा दी है। अब हमें इसे प्रैक्टिस में लाना है और अब तो डब्लूएचओ ने भी कह दिया है कि हमे इसी के साथ जीने की आदत डालनी होगी।


जनता के साथ छुपाछूपी का खेल -
सरकार लाख छुपाछूपी का खेल खेले, कोरोना अब बिना किसी हिस्ट्री के समाज में फैल रहा है, कोरोना के साथ जीने की आदत डाल दीजिए। सारे महानगर आज बेबस नज़र आ रहे हैं सरकार आप लोगों को कितने महीने घरों में कैद रख सकते हैं.? लोग कोरोना से कम और घरों में कैद रहकर अधिक मरने लगेंगे। लोग घरों में कैद कई दूसरी गंभीर बीमारियों से ग्रस्त होने लगे हैं, इसे वक्त रहते समझना चाहिए। सरकार चाहे कोई भी हो, किसी की भी हो, अब जो भी आम जनता के साथ छुपाछूपी का खेल खेलेगी, उसे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।


देश अहिंसक है और अहिंसक ही रहना चाहिए -
आज यह लिखते समय मेरा मन द्रवित हैं। अब लोकडाउन बेमानी है, इससे जनता दोहरी मार मर रही है। ज्यादा अच्छा होगा कि लोकडाउन खोलकर आम आदमी को कोरोना और ऐसे ही भविष्य के अन्य वायरस व आपदाओं के साथ लड़ते हुए जीना सिखाइए। व्यावहारिक कदम उठाइए, लोगों का मनोविज्ञान समझना इस समय सबसे ज्यादा जरूरी है। लोग दुःखी हैं, आक्रोशित हैं, यह आक्रोश कई बार सड़कों पर  मजदूरों के पलायन के रूप में दिख चुका है। यह हिंसक मोड़ नहीं लेना चाहिए, आप जनरल डायर, हिटलर आदि नहीं बन सकते। यह देश अहिंसक है और इसे अहिंसक ही रहना चाहिए।कृपया भूल न करें, क्योंकि उस भूल की भारी कीमत पूरे समाज को चुकानी पड़ सकती है और ये चीखें ताउम्र हमारा पीछा करती रहेंगी


Comments
Popular posts
विश्व पर्यावरण दिवस पर उद्योग ने तालाब गहरीकरण वृक्षारोपण एवं प्राकृतिक जल स्रोतों किया संचयन।
Image
अनूपपुर थर्मल एनर्जी की पर्यावरणीय लोक सुनवाई सफलता पूर्वक संपन्न, मिला सामुदायिक समर्थन
Image
मजदूरों के सम्मान में भगवा पार्टी मैदान में — मंडीदीप के सफाई कर्मियों को न्याय दिलाने का संकल्प
Image
अस्मिता पर सुनियोजित प्रहार, मजहबी चक्रव्यूह के शिकंजे में बेटियां
Image
पहलगाम हमला ,पर्यटन की धरती पर खून की बारिश
Image