मजदूर दिवस मे मजदूर कितने मजबूर 


विनोद पांडेय:-


आज एक मईं है आज के दिन अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में जाना जाता है।हम बचपन से ही सुनते आये है की किसी भी देश की अर्थ व्यवस्था मजदूरों के बदौलत ही खड़ी  होती है लेकिन  भारत जैसे विकासशील देश बढ़ते श्रम बल के साथ श्रमिकों को बेहतर जीवन देने में नाकाम दिखाई दे रहा हैं के बाद से ही देश की सरकारों द्वारा कल्याणकारी योजनाओं और सुधारात्मक कानूनके जरिये कृषि श्रमिकों, बाल श्रमिकों, महिला श्रमिकों एवं संघटित क्षेत्रके श्रमिकों के जीवन स्तर को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन अब तक कोई क्रांतिकारी बदलाव देखने को नहीं मिला है। कृषि-श्रमिकों की ही बात करें तो यह वर्ग भारतीय समाज का सबसे दुर्बल अंग बन चुका है। यह वर्ग आर्थिक दृष्टि से अति निर्धन तथा सामाजिक दृष्टि से अत्यंत शोषित है। इनकी आय बहुत कम है। वह गरीबी रेखाके नीचे जीवन गुजारने को अभिशप्त हैं।  एक वेब साइट के आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग 50 करोड़ मजदूर हैं। इनमें से सिर्फ 10% संगठित क्षेत्र में हैं। शेष असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। उनकी सही तादाद और काम तथा आय की बाबत पक्के आंकड़े सरकार के पास भी ठीक तरह से नहीं मिलेंगे। क्योंकि इनमें से 24.6 करोड़ गांवों के कृषि क्षेत्र में मौसमवार दिहाड़ी पर काम करते हैं, 4.4 करोड़ शहरी निर्माण कार्य से जुड़े हैं जिनके  उत्थान के लिए श्रम  मंत्रालय ने असंघटित क्षेत्र में आने वाले श्रमिकों के कल्याण के लिए श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम 2008  अधिनियमित किया है। लेकिन जबतक सरकार अधिनियम के प्रावधानों को कड़ाई से क्रियान्वयन नहीं करायगी तब तक उसका लाभ श्रमिकों को नहीं मिलेगा। सख्त कानून के बावजूद  बड़े कल-कारखाने, कम्पनियां उद्योग समूह में मशीनीकरण और नई तकनीकी बढ़ा रहे हैं  वैसे ही  अपने कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं।ओर रही-सही कसर थी वो कोरोना वायरस के हमले और अनिवार्य लॉकडाउन ने पूरी कर दी।जिसके  चलते मजदूरों की जिंदगी बेपटरी हो गई है। लॉकडाउन के चलते करोडो श्रमिक देश के विभिन्न जगहों पर फंसे हैं।  जिंदगी चौराहे पर है। काम बंद हैं, लेकिन पेट में भूख की आग जल रही है। भूख मिटाने के लिए कोई नई राह निकाल रहा है, तो कोई हारकर भूखे पेट ही सो रहा है...इस इंतजार में कोई सामाजिक संगठन आएगा और खाने का पैकेट दे देगा, लॉकडाउन के दौरान मजदूरो के  जिंदा रहने की स्थिति दिन-ब- दिन बदतर होने के बाद पैदल ही अपने घरों को निकले ऐसे सैंकड़ों लोगों के मन में  जल्द से जल्द अपने घर पहुंचने की उम्मीद है  इन लोगों को कभी आधा पेट तो कभी दो-दो दिन तक भूखे पेट ही सफर तय करना पड़ रहा है।लेकिन कई ऐसे थे  जो निकले तो घर को थे लेकिन हजारो  किलोमीटर चलने के बाद घर नहीं पहुंच पाए रस्ते में ही उन्हें अपनी जान गवानी पड़ी ,मजदूर दिवस पर यह किसी ने न सोचा था की आज के परिवेश में उनकी जिंदगी इस तरह चलेगी  ऐसा नहीं की  इनके साथ सब कुछ गलत ही हो रहा है लेकिन कुछ स्थाईत्व  भी नहीं देखने को मिल रहा है ,अच्छी खबर है की केंद्र और प्रदेश की सरकार ने लॉक डाउन में फंसे मजदूरों को उनके घर वापस भेजे जाने की कवायद तो शुरू कर दी है,परंतु आगे का जीवन यापन उनके बच्चों की शिक्षा दीक्षा स्वास्थ्य पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो चुका है शोषित होने का एक नया पन अब चालू होगा सरकारी योजनाओं की घोषणा करेंगी और उनके नुमाइंदे इन घोषणाओं से अपने अपने आपूर्ति को पूरा करेंगे खजानो  को भरेंगे और मजदूरों के नाम से फिर एक बार भ्रष्टाचार शोषित पान और उनके साथ छलावा का एक नया दौर फिर शुरू होगा। लेकिन इस सब से परे आने वाले समय में हम सबको उनके बारे में गहराई  से सोचने और जरूरी कदम उठाने के लिए आगे आना होगा महामारी के दौरान देश के उत्पादन तंत्र में भारतीय मजदूरों के  महत्व के साथ उनके निजी जीवन और स्वास्थ्य का भी विशेष ख्याल रखना होगा तभी देश की तरक्की की धुरी मजदूर खुशहाल होगा तदुपरांत  देश खुशहाल हो सकेगा।



Comments
Popular posts
अनूपपुर थर्मल एनर्जी की पर्यावरणीय लोक सुनवाई सफलता पूर्वक संपन्न, मिला सामुदायिक समर्थन
Image
विश्व पर्यावरण दिवस पर उद्योग ने तालाब गहरीकरण वृक्षारोपण एवं प्राकृतिक जल स्रोतों किया संचयन।
Image
विजय के शिखर पर ठहराव और भारत की वैश्विक छवि
Image
मजदूरों के सम्मान में भगवा पार्टी मैदान में — मंडीदीप के सफाई कर्मियों को न्याय दिलाने का संकल्प
Image
अस्मिता पर सुनियोजित प्रहार, मजहबी चक्रव्यूह के शिकंजे में बेटियां
Image