लगातार बढ़ती तेल की कीमतें और भारतीय अर्थव्यवस्था


विनोद पांडेय........... ✒️


कोरोना संकट के बीच भारत में तेल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं.क्युकी लॉक डाउन में आर्थिक गतिविधियां बंद होने और सरकारी का खजाना खाली हो जाने से, रेवेन्यू के लिए सरकार को पेट्रोल और डीज़ल के टैक्स पर  निर्भरता आन पडी, लेकिन सरकार का ध्यान पेट्रोलियम पदार्थों के दाम को कम कर अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए मांग में ब्रद्धि करने के रास्ते भी तलाशने होंगे! 


देश में कोरोंना महामारी के बीच पिछले दिनों लगातार तेल के दाम बढ़े हैं। लॉकडाउन के दौरान आर्थिक गतिविधियों के बंद हो जाने के बाद अब पेट्रोल-डीजल की बेतहाशा बढ़ती महंगाई मध्यम वर्गीय परिवार और आम आदमी की जिदगी को और निचोड़ने का माध्यम बन रही है। लॉकडाउन मे व्यावसायिक गतिविधियां बंद हो गई, लाखों लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा। उनकी अच्छी-खासी जिदगी पटरी से उतर गईं। इस बीच अधिकांश जनता अर्थिक रूप से पूरी तरह से टूट गई प्रथम अनलॉक शुरू होने के बाद लगा था कि जल्द ही हालात सुधरने शुरू होंगे। लेकिन इससे पहले कि हालात सुधरने का विश्वास लोगों में पैदा होता पेट्रोल-डीजल के लगातार बढ़ते दामों ने उनके इस विश्वास को हिलाकर रख दिया। पिछले दिनों पेट्रोल-डीजल के दाम लगभग 12 प्रातिशत तक बढ़ गए।यह सीधा-सीधा महंगाईं बढ़ने का इशारा है क्योंकि इससे परिवहन खर्च में बढ़ोतरी होगी। वस्तुएं महंगी होंगी जिसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने में मुश्किल होगी जोकि इस समय सबसे आवश्यक है। यदि लग्जरी वस्तुएं एक बार को महंगी हो जाएं तो ज्यादा फर्व नहीं पड़ता परन्तु यदि खाने-पीने की वस्तुएं जैसे आटा, दाल व चावल, फल, सब्जियां और दूध आदि महंगा हो जाए तो गरीब के लिए जिदगी मुश्किल हो जाएगी। पिछले एक साल के दौरान कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत बीस से लेकर चालीस डॉलर प्रति बैरल रहा है, फिर भी यह 2014 के 107 डॉलर प्रति बैरल के मुकाबले काफी कम है, लेकिन पिछले छह सालो मे अन्तरराष्ट्रीय तेल की कम कीमतों का फायदा देश के उपभोक्ताओं को नहीं मिला! दरअसल सरकार अपनी आमदनी के लिए तीन प्रामुख श्रोतों पेट्रोल-डीजल पर टैक्स, शराब पर टैक्स और स्टैंप ड्यूटी से मिलने वाली कमाईं पर निर्भर होती है लेकिन लॉक डाउन के चलते तीनों गतिविधियां लगभग बंद रहीं नतीजतन ख़ज़ाना खाली हो गया जिसकी कमी को पूरा करने के लिए पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य बढ़ाई जा रही है तेल की खुदरा कीमतों का दो तिहाई हिस्सा केन्द्र व राज्य के टैक्स मे चला जाता है, साधारणतया हम जिस कीमत पर तेल खरीदते हैं उसमें 50 प्रातिशत से ज्यादा टैक्स होता है। हमें मिलने वाली पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमत में कच्चे तेल का दाम, रिफायनरी का खर्च, कंपनियों का लाभ और सरकारी टैक्स के रूप में एक्साइज व वैट शामिल होता है। इसके अलावा भारत पेट्रोल डीजल का निर्यात भी करता है. इन बढ़े हुए मुल्य का ज्यादा लाभ केंद्र सरकार को मिला है, लॉक डाउन मे राजस्व वसूली की गतिविधियों पर रोक लगने से धन की कमी से जूझ रही केंद्र सरकार, राजस्व बढ़ाने के लिए पेट्रोलियम उत्पादों के मुल्य. ब्रद्धि को ही आसान रास्ता मान लिया है! 2012 से 2014 तक की अवधि में तेल की कीमतें आसमान छू रही थी. लेकिन तब जिस तरह से तेल की बढ़ी कीमतों का विरोध कर आम जनता की समस्या को सरकार तक जिस मजबूती और आक्रमकता से लोगों ने और देश की मीडिया ने पहुंचाया था वह आज के समय में कहीं दिखाई नहीं देता! आज के हालात में जब लाखों लोगों का रोजगार छिन चुका है परन्तु उनके पारिवारिक खच्रे बदस्तूर जारी हैं। ऐसे में पेट्रोल-डीजल महंगा होने के चलते उनकी जेब से ज्यादा पैसा जाएगा तो उन्हें मुश्किल होगी। इसलिए अभी सरकार का ध्यान पेट्रोलियम पदार्थों के दाम को कम कर अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने पर होना चाहिए यह ठीक है कि हम पेट्रोल-डीजल के लिए विदेशों पर निर्भर हैं। यदि हम इसकी कम खपत करेंगे तो इससे हमारी विदेशी मुद्रा की बचत होगी। लेकिन इसके साथ-साथ यह भी सही है कि हमें अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए मांग में वृद्धि करने के रास्ते भी तलाशने होंगे।


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