मंत्री बिसाहू लाल के लिए गले की फांस बनी सीतापुर की बदहाल सड़क सैकड़ों वोट और मंत्री जी की साख लगी दांव पर... सोसल मीडिया में छिड़ी जंग ट्विटर और फेसबुक में चल रही "रोड नही तो वोट नही" की मुहिम

अरविंद द्धिवेदी :-


जिला मुख्यालय से महज 1 किलोमीटर दूर ग्राम सीतापुर की सड़क अब मंत्री जी के विकास की पोल खोलती नजर आ रही है, वही सोशल मीडिया में स्थानीय लोगों द्वारा रोड नहीं तो वोट नहीं की मुहिम छेड़ दी गई है। जो कि उपचुनाव की दृष्टि से मंत्री जी के लिए हानिकारक साबित हो सकता है, वही आजादी के 74 साल बाद भी ग्राम सीतापुर को एक अच्छी सड़क ना मिलना एक अरसे से क्षेत्र के विधायक रहे मंत्री जी की साख पर बट्टा का कार्य कर रहा है। जो मुकाबला चुनाव में कांग्रेश बनाम भाजपा होना था अब विकास बनाम जनता में तब्दील हो चुका है।



अनूपपुर /"सबका साथ सबका विकास" का नारा बुलंद करने वाले प्रधानमंत्री की सकारात्मक सोच को अधिकारी और जनप्रतिनिधि किस तरह पलीता लगाने में जुटे हुए है। इसका जीता जागता उदाहरण जिला मुख्यालय स्थित कलेक्ट्रेट, जिला पंचायत, माईनिंग विभाग व जिले के अन्य अधिकारियों के निवास से महज 1 किलोमीटर की दूरी पर अनूपपुर-कोतमा मुख्य मार्ग से लगी सड़क जो ग्राम सीतापुर को जाती है, जहाँ जिले का इकलौता शा. वृद्धाश्रम भी बना हुआ है। जिसे जिलेवासी मेलरोड के नाम से जानते हैं, को देखकर अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि विकास अपने चरम पर है। यहां आजादी के 74 साल भी सड़क नहीं पहुंच सकी है, जो पंचायती राज व्यवस्था के साथ इस जिले के लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं।


बदहाल सड़क में विकास की झलक -
स्वर्ग और नरक की कहानी हर जगह लगी रहती है, बहरहाल ग्राम सीतापुर में भी एक नरक है। यहाँ के रहिवासियों के मन में एक ही सवाल है कि अगर जिस नर्क की बात की जाती है, क्या वह यही है.? जब गांव-गांव सड़कों का जाल बिछ रहा है, ऐसे में इस गाँव को जिले की मुख्य धारा से जोड़ने वाली सड़क का निर्माण ही नहीं हुआ। तब भी उपयोग में आने वाली इस सड़क पर कीचड़ के साथ बड़े-बड़े गड्ढे भी बन गए है, जिस कारण राहगीरों को यहां से गुजरने के समय भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और कई बार तो वह दुर्घटनाओं का शिकार भी हो जाते है।


नाराज ग्रामीणों ने कहा "रोड नही-तो वोट नही" -
ग्राम सीतापुर की सड़क (मेला रोड़) को मुख्य सड़क (अनूपपुर-कोतमा मार्ग) से मेन रोड तक, लगभग 02 किमी सड़क निर्माण के लिए संघर्ष कर रहे ग्रामीणों का धैर्य अब जवाब दे चुका है। क्योंकि जनप्रतिनिधियों व विभागीय अधिकारियों से अब तक झूठे आश्वासनों के सिवाय कुछ नहीं मिला। गांव की सड़क को मुख्य सड़क से जोड़ने के लिए कई बार सर्वे भी हो चुका है, लेकिन सड़क निर्माण की दिशा में कई दशकों बाद भी कोई कार्य नहीं हो सका है। अतएव सड़क की मांग कर रहे ग्रामवासियों ने यह फैसला लिया है कि "रोड नही तो वोट नही"।


सत्ता में होने के बाद भी नहीं मिली सड़क -
एक ओर सरकार विकास की बात करती है तो दूसरी ओर जनता अपनी समस्याओं से उबर नहीं पा रहा है। ऐसे में जनता और जनप्रतिनिधि के बीच विश्वास की डोर लगातार कमजोर होती जा रही है। जनप्रतिनिधियों के द्वारा किये गये वादे और विकास पर कितनी सत्यता है यह तो जमीन पर उतर कर ही देखा जा सकता है। ऐसे में अगर जनता के लिये चलने हेतु सड़क ही न हो तो विकास की गंगा कैसे बहेगी, यह तो जनप्रतिनिधि ही बता सकते हैं।


जिले के भविष्य एवं विकास पर प्रश्न चिन्ह -
सतही तौर पर आप जिले के विकास का, किसी भी मंच से दंभ भरने वालों के भाषणों व उनके स्वघोषित विकास पुरुष होने का अंदाजा गाँव की सड़कों व अन्य मूलभूत व्यवस्थाओं को देखकर लगा सकते हैं। फिर चाहे बात भाजपा की हो या कांग्रेस की.! सब के सब का विकास यहाँ आकर धरासाई हो जाता है। ग्रामीणों के द्वारा इस खस्ताहाल सड़क मार्ग को लेकर विभाग व जनप्रतिनिधियों से शिकायत की जा चुकी है। लेकिन आज तक इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। ऐसे में आमजनों के अंदर इस बात को लेकर रोष भी व्याप्त है कि बार-बार अधिकारियों को सूचना देने के बाद भी इस 02 किलोमीटर लंबी सड़क पर किसी प्रकार का ध्यान नहीं जा रहा है।


कीचड़ होगा तो ही कमल खिलेगा -
वर्तमान में जिले के योजनाकार कुछ इसी मुगालते में पार्टी को उपचुनाव में जीत के दिवास्वप्न दिखा रहे हैं। लेकिन हकीकत में 'कीचड़' के दिन लद चुके हैं और उनके इरादे अब फलीभूत नहीं होंगे। बरबसपुर पंचायत के सीतापुर गांव के ग्रामीणों ने रविवार को सड़क की मांग को लेकर बैठक की। ग्रामीणों ने कहा कि गांव जिला मुख्यालय से महज 01 किलोमीटर की दूरी पर बसा है। बावजूद आज तक आजादी के गांव को एक अच्छी सड़क भी नसीब नहीं हो सकी है। ग्रामीणों ने कहा कि हम लोगों को एकजुट होकर अपने हक के लिए आवाज उठाने की जरूरत है, साथ ही फैसला लिया गया कि यदि हमें सड़क नहीं मिली तो हम वोट भी नहीं करेंगे। इस बार किसी भी जनप्रतिनिधि को अपने क्षेत्र में वोट मांगने नहीं देंगे। गांव के बुद्धिजीवी, किसान, मजदूर, युवा के साथ बात करके उन्हें अपने जनप्रतिनिधियों से चुनाव के पूर्व सड़क बनाने की मांग की। सड़क की मांग को लेकर स्थानीय ग्रामीण बहुत जल्द लोकतांत्रिक तरीके से धरना प्रदर्शन की शुरुआत करेंगे। अपने आक्रामक रुख को जारी रखते हुए ग्रामीणों ने प्रिंटेड बैनर लेकर गांव की सड़कों पर पैदल मार्च किया और जिले के सोये हुए अंधे और बहरे प्रशासन को जगाने का प्रयास किया


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