रात्रिकालीन कर्फ्यू क्या ‘‘कोरोना’’ ‘‘केवल’’ ‘‘निशाचर’’ ही है?

राजीव खण्डेलवाल:-   


देश में कोरोना (कोविड़-19) संक्रमितों की संख्या फिर तेजी से बढ़ने लगी है। वैसे तो यह संख्या पहले से ही बढ़ रही थी। लेकिन तत्समय बिहार व देश में हो रहे उपचुनावों के मद्देनजर इस पर सरकार व मीडिया का ध्यान कम ही जा सकता था। संक्रमितों की बढ़ती संख्या को देखते हुए पहले अहमदाबाद और अब मध्य प्रदेश में 5 शहरों व राजस्थान के 8 जिलों में दिन में चल रही अबाध गतिविधियों पर अन्य कोई अतिरिक्त प्रतिबंध लगाए बिना, रात्रिकालीन कर्फ्यू लागू कर दिया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का कथन है कि जब तक हालात नहीं सुधारते हैं, तब तक रात्रि में कर्फ्यू जारी रहेगा? या कोविड-19 के वायरस ‘‘निशाचर‘‘ हैं जो दिन में ‘सोते‘ हैं और रात्रि में ‘जग कर घूम-घूम कर‘ लोगों को संक्रमित करते हैं। वैसे ‘मानव’ जो रात्रि में नींद में चलता है वह ‘रोगी’ माना जाता है। लेकिन कोरोना रात्रि में स्वयं रोगी न होकर स्वस्थ्य होकर (सरकार की नजर में) दूसरो को संक्रमित कर रोगी बनाता है। इसलिए रात्रि मे कर्फ्यू लगा कर ‘‘उनके मूवमेंट‘‘ पर रोक लगाकर ‘‘संक्रमण‘‘ को रोकने का प्रयास किया है। इस प्रकार सरकार अपने कर्तव्य व उत्तरदायित्व को पूरा हुआ मानकर अपनी पीठ स्वयं ही थपथपा रही है। अब तक यह सब को पूर्णतः स्पष्ट हो चुका है कि कोरोना वायरस (कोविड-19) का संक्रमण रोकने के लिए फेस मास, सैनिटाइजेशन, बार-बार हैंड वॉशिंग, और 6 फुट की दूरी बनाए रखना, इन सब सावधानियों का कड़ाई से पालन करके ही कोरोना वायरस के संक्रमण को पूर्णतः लगभग रोका जा सकता है। तब रात्रि में कर्फ्यू लगा कर कोविड-19 के उक्त सावधानी के नियमों का कितना पालन हो पाएगा? इसकी कल्पना आप स्वयं कर सकते हैं। रात्रि में इन कोविड़ सावधानियों का न तो पूर्ण रूप से पालन हो सकता है और न ही दिन में खासकर उस स्थिति में जब हम यह लगातार देख रहे हैं कि, खुले आम बेशर्मी के साथ या असावधानीवश अधिकांश लोग उक्त नियमों का लगातार उल्लंघन कर रहे हैं। दिन की तुलना में रात्री में उन सावधानियों के पालन की उतनी आवश्यकता भी नहीं है। सरकार के किसी ‘सर्वे’ में यदि यह तथ्य संज्ञान में आया है कि कोविड-19 की सावधानियों के पालन का उल्लंघन रात्रि की तुलना में दिन में बहुत कम हो रहा है, तब बात दूसरी है जिस तथ्य से जनता को भी अवगत कराया जाना चाहिये। वैसे यदि सरकार ‘‘परिवार नियोजन‘‘ की दृष्टि से उक्त सावधानियां जिसमें 6 फुट की दूरी शामिल है, का पालन करवाने के लिए रात्रिकालीन कर्फ्यू लगा रही है, तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए! क्योंकि निश्चित रूप से इससे परिवार को ‘‘नियोजित‘‘ करने में सफलता मिलेगी! फिर चाहे कर्फ्यू सफल हो या असफल होवे! क्योंकि असफल होने पर आदमी के ‘‘भगवान को प्यारा हो जाने की स्थिति में भी तो वह परिवार को नियोजित(संख्याकम) करने में अप्रत्यक्ष रूप से सहायक ही होगा? अतः उक्त नियमों का पालन करवाने के लिए रात्रि कालीन कर्फ्यू कैसे प्रभावशाली हो सकता है? जिस कारण से दिन में भी नियमों का कड़ाई से पालन हो जाए। कम से कम यह बात मेरे भेजे में तो नहीं घुस रही है। यदि आपके दिमाग में आ रही है, तो कृपया मुझे बताइए ताकि मैं अपने दिमाग को दुरुस्त तो कर सकूं।इस पूरे कोरोना काल के दौरान हमने प्रायः यही देखा है कि चाहे केंद्रीय सरकार हो या राज्य सरकारें, ‘‘समझ बूझ’’ के साथ ‘समय‘ पर, ‘‘समयानुकूल’’, ‘समयबद्ध‘ निर्णय ‘समय‘ को देखते हुए नहीं लिया गए, जिसका भुगतान आप हम सब को करना पड़ रहा है। इसके लिए वे सब गैर जिम्मेदाराना नागरिक भी उतने ही जिम्मेदार हैं। जब हम ‘‘अपने व गैरों‘‘ में अंतर मानते हैं, रखते हैं ,अपने किसी परिचित को गले लगाते हैं और ‘‘गैरों‘‘ को दूर रखते हैं तो, कृपया आप भी इस ‘गैर‘ शब्द को ‘‘गैर जिम्मेदाराना‘‘ से हटा कर "जिम्मेदार" क्यों नहीं बन जाते हैं? जिम्मेदार हो जाइए? विश्वास मानिए, कोरोना वायरस का संक्रमण निश्चित रूप से रुक जाएगा।


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