अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष---------
स्व सहायता समूह की सभी बहनों को समर्पित
सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े हुए परिवारों के सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण हेतु महिला स्व सहायता समूह एक सशक्त माध्यम बन चुके हैं। स्व सहायता समूह 10 या 15 महिलाओं को मिलाकर किसी भीड़ का प्रतीक नहीं है, बल्कि समाज के गरीब एवं पिछड़े हुए तबके में हो रहे सकारात्मक बदलावों का एक प्रतीक बन चुका है। लगन, अनुशासन और कठिन मेहनत व स्व की अनुभूति का प्रतीक है स्व सहायता समूह।घर की चार दीवारी के बाहर निकलकर अपने और अपने परिवार के लिए कुछ अच्छा करने, महिलाओं के आत्म सम्मान, स्वभिमान और आत्म विश्वास का नाम है स्व सहायता समूह।
मध्यप्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन अनूपपुर अंतर्गत स्व सहायता समूहों के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं में न सिर्फ नेतृत्व एवं निर्णय क्षमता का विकास हुआ है बल्कि सालों साल से स्थापित सामाजिक कुप्रथाओं, मिथकों को दूर कर एक नए समाज के निर्माण में अपनी सकारात्मक भूमिका का निर्वहन कर रही है समूह की दीदियां।जिले में 78021 ग्रामीण परिवार 6937 स्व सहायता समूहों से जुड़ चुके हैं। इसी तरह 553 ग्राम संगठनों एवं 14 संकुल स्तरीय संगठनों के अंतर्गत जिले की महिला शक्ति अपनी एक नई पहचान बनाने के कदम बढा चुकी हैं।
आत्मनिर्भरता का दूसरा नाम है महिला स्व सहायता समूह। आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश की दिशा में स्व सहायता समूह अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का भी निर्वहन कर रहे हैं। कुछ सालों पहले अपनी हर एक जरूरतों के लिए परिवार के पुरुष सदस्यों के ऊपर निर्भर रहने वाली महिलाएं अब स्वयं आत्मनिर्भर होकर अपने पति और परिवार के आर्थिक सहयोग हेतु आगे आकर मिसाल कायम कर रही हैं। पुष्पराजगढ़ विकासखंड की सरस्वती की आजीविका एक्सप्रेस हो या बरबसपुर की सीमा की आजीविका कैंटीन, लीलाटोला की पद्मावती की किराना दुकान हो या बैंक सखी के रूप में अपने दायित्यों का निर्वहन करती रेखा द्विवेदी, आत्मनिर्भर शमा खान हों या अपने समूह से ऋण लेकर पति के ऑटो की किश्त चुकाने वाली राधा मिश्रा, माननीय मुख्यमंत्री महोदय के साथ आत्मविश्वास के साथ संवाद करने वाली ग्राम सिवनी की उषा राठौर हों या कनईटोला की हेमलता, कृषि सखी के रूप में प्रदेश के बाहर जैविक कृषि के गुर सिखाने वाली चंपा सिंह हों या रानी केवट, सीतापुर की सुनीता राठोर हों या केल्हौरी की सीमा पटेल , आजीविका गतिविधियों से अपनी आजीविका सुदृढ करने वाली नीतू रजक हो या द्रोपदी साहू, कोरोना काल में अपने सामाजिक दायित्वों को पूरा कर मास्क बनाकर आम आदमी तक पहुंचाने वाली अंजनी जयसवाल हों या सविता नापित , समूहों के दस्तावेजीकरण हेतु अपना योगदान दे रही विमला मानिकपुरी हों या भानमती या सुहागवती, विभिन्न उद्यमों को अपनाकर आत्मनिर्भर कृष्णा बाई हों या शोभा साहू, ऐसे न जाने कितने नाम हैं हो अब दूसरों के लिए एक उदाहरण बन चुके हैं, जिन्होंने अपनी लगन व मेहनत से न सिर्फ अपना नाम रोशन किया है बल्कि आत्मनिर्भरता की मिसाल कायम कर दूसरों के लिए आदर्श बन चुकी हैं।नि:संदेह यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि महिला स्व सहायता समूहों ने एक आंदोलन के रूप में समाज के पिछड़े व वंचित वर्ग को समाज में न सिर्फ सम्मानजनक स्थान दिलाया है बल्कि आर्थिक आत्मरनिर्भरता व स्वाभिमान के साथ जीने की एक नई राह भी दिखायी है। स्व सहायता समूहों से जुड़कर समाज को एक नई सकारात्ममक सोच व दिशा दिखाने वाली समस्त बहनों को शत् शत् नमन।