अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस क्या अब भी आप अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई देने के लिए तैयार हैं.?

अरविंद द्विवेदी:-

"यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्र देवता"

अर्थात जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं।

हमारा देश भारत अपनी संस्कृतियों के लिए जाना जाता है जहाँ महिलाओं को दुर्गा और काली का रुप माना जाता है। आजाद भारत के आधी सदी से अधिक के सफर में महिलाओं के प्रति हमारे नजरिए में बदलाव तो आए हैं किन्तु यह अत्यन्त धीमे और प्रतीकात्मक अधिक हैं। महिलाओं ने दुनियाभर में अपना परचम लहराया है लेकिन आज भी लोग कहते हैं - "तुम लड़की हो, कर क्या सकती हो"। अंग्रेजों से लड़कर दुनिया को आजादी दिलवाने के लिए महिलाओं ने भी प्रयास किया है लेकिन आज भी गर्भ में बेटी होने पर लोग उसे मार देते हैं। भारत को कई क्षेत्रों में मेडल दिलवाने के लिए महिलाओं का नाम आगे है लेकिन फिर भी लोग कहते हैं रात को अकेली बाहर मत जाना, आखिर क्यों.? लड़कियों से ही इतने सवाल क्यों.? लड़कियों पर ही रोक-टोक क्यों.? लडकियां ही बुरी नजरों का शिकार क्यों.? ऐसे बहुत से सवाल हैं जो लड़कियों के मन में उठते हैं।

आखिर.! किस बात की शुभकामनाएं -

08 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है और इस दिन महिलाओं का सम्मान होगा। लेकिन अगर आप लड़कियों को उस लायक ही नहीं समझते तो आप उन्हें अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई नहीं दे सकते हैं, इसका आपको कोई हक नहीं है। दुनियाभर में महिलाएं हर दिन अपराध का शिकार हो रहीं हैं और आप कह रहे हैं ''अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं''। महिलाओं के साथ होने वाले बढ़ते अपराध की शुभकामनाएं, या फिर हर दिन गर्भ में मरने वाली बच्चियों को शुभकामनाएं.? आखिर किस बात की शुभकामनाएं देता है समाज, समझ ही नहीं आता।

आखिर.! सरकार क्या कर रही है -

आपको याद है निर्भया केस, निर्भया को करीब 8 सालों बाद इन्साफ मिला था उनके परिवार और उनकी वकील के चलते यह सब संभव हो पाया। वरना आज निर्भया संग दिल दहला देने वाल कृत्य कर उसे मौत देने वाले आरोपी बाहर घूम रहे होते। खैर क्या कहा जाए क्योंकि आज भी एक आरोपी बाहर ही है, आखिर सरकार क्या कर रही है ये सवाल केवल हमारे या आपके मन में नहीं बल्कि ना जाने कितनी ही लड़कियों और लोगों के मन में होगा। लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, सब राजनीति करने में लगे हुए हैं। कोई लड़की मर रही है, उसके साथ दुष्कर्म हो रहा है किसी को कोई मतलब नहीं। सरकार चाहे तो इसके लिए कड़े कानून बना सकती है और ऐसे कानून भी जिससे यह अपराध एकदम से खत्म ही हो जाए, लेकिन नहीं।

आखिर.! कैसे संभव है नारी सशक्तिकरण -

आज जब हम विश्व पटल पर बड़ी-बड़ी महिलाओं को राष्ट्राध्यक्ष या बड़े कारोबारियों की लिस्ट में अव्वल पाते हैं तो हमें लगता है कि हो गया भैया "नारी सशक्तिकरण"। लेकिन  मुठ्ठी भर महिलाओं के उत्थान करने से पूरे नारी समाज का तो कल्याण नहीं हो सकता ना। आज अगर सच में महिलाओं का सशक्तिकरण हुआ होता तो दिल्ली गैंगरेप के बाद जनता को सड़कों पर ना उतरना पड़ता.! गोपाल कांडा जैसे नर पिशाचों के पंजों तले किसी गीतिका जैसी फूल के अरमान ना कुचलते.! गर देश और इस संसार में महिलाओं को जीने और सम्मान से रहने का समान अवसर प्रदान होता तो कन्या भ्रूण हत्या एक वैश्विक समस्या नहीं बनती.!

आखिर.! महिला दिवस मनाने से क्या होगा -

टीवी और फैशन शो में उन्मुक्त महिलाओं को देख जो लोग महिला सशक्तिकरण के गुणगान करते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि अगर ऐसा होता तो शायद अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की जरूरत ही ना होती। हम अंतरराष्ट्रीय बाघ या विश्व शेर दिवस आदि मनाते हैं, क्यूंकि सृष्टि की यह अनमोल कृतियां अब गुमनामी के कगार पर हैं। लेकिन महिलाओं की आबादी तो विश्व की संपूर्ण आबादी के लगभग आधी है। ऐसे में अगर हमें विश्व महिला दिवस मनाना पड़ रहा है तो यह एक गंभीर समस्या है। हमें यह समझना चाहिए कि मात्र एक दिन महिला दिवस के नाम करने से महिला समाज का कल्याण नहीं होगा.! आप एक रैली में तो महिला उत्थान के नारे लगाएं और वहीं घर जाकर अपनी बेटी को छोटी स्कर्ट पहनने पर डांटें और बीवी को खाने में नमक कम होने पर मारें तो यह कतई महिला समाज के प्रति एक उदारवादी सोच का नतीजा नहीं है। इसके लिए हमें नारी के विषय और उसकी जरूरत को समझना होगा।

आखिर.! कब खत्म होगी हर माँ-बाप की चिंता -

महिलाएँ और बेटियाँ घर से लेकर कार्यस्थल और सड़क पर असुरक्षित हैं। हर मां-बाप की सबसे बड़ी चिंता उसकी बेटी है, क्योंकि बेटी बचाओ, बेटी बढ़ाओ का नारा शर्मिंदा हो रहा है। अब यह प्रमाणित हो गया है कि कानून के भय से किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। समाज में जब तक हर व्यक्ति का नैतिक विकास नहीं होगा, इस तरह की घटनाओं को रोकना सम्भव नहीं दिखता। सरकारों को स्कूलों में नैतिक शिक्षा और सामाजिक सम्बंधी विषयों पर अधिक जोर देना चाहिए, तभी हम देश की युवा पीढ़ी को सहेज पाएंगे। अगर वक्त रहते हम नहीं चेते तो यह समस्या नासूर बन जाएगी। बेटियों को हरहाल में बचाना होगा, उन्हें सुरक्षित महौल देना होगा, तभी समाज सुरक्षित रह पाएगा।

आखिर.! कब मिलेगा बेटियों को सुरक्षित माहौल -

बेटियों के खिलाफ होने वाली हिंसा को रोकने के लिये पुलिस-प्रशासन को संवेदनशील व जवाबदेह बनाने की जरूरत है। जब देश में हेलमेट न लगाने, सीट बेल्ट न बांधने पर चालान काटने के लिए हर चैराहे पर पुलिसकर्मी तैनात रह सकता है तो यह पुलिसकर्मी महिलाओं-बेटियों की सुरक्षा में क्यों नहीं खड़े हो सकते। चालान काटने के लिए पूरा पुलिस सिस्टम अलग से काम कर सकता है तो बेटियों की सुरक्षा में इस तरह का सिस्टम क्यों नहीं काम करता। अतएव पुलिस-प्रशासन को भी बेटियों, महिलाओं के प्रति जवाबदेह होना पड़ेगा, पुलिस को समझना होगा कि समाज को अपराधमुक्त बनाना है तो महिलाओं, बेटियों को सुरक्षित माहौल देना होगा।

"बेटी बचाओ - बेटी बढ़ाओ" का नारा शर्मिंदा हो रहा -

हमारे समाज की नैतिकता गिर गई है, सामाजिक मापदंडों का पतन हो चला है। तकनीकी और शैक्षिक रुप से जितने हम मजबूत और सभ्य हो रहे हैं, सामाजिक नैतिकता उतनी ही नीचे गिर रही है। बदलते दौर में सामाजिक सम्बन्ध की कोई परिभाषा नहीं बची है जो लांछित न हुईं हो। 21 वीं सदी में इसरो जैसा संगठन दुनिया का सबसे बड़ा अंतरिक्ष केंद्र बन गया है लेकिन हमारी बेटियों की आबरू सरेआम सड़क पर लुट रही है। हम आधुनिक सोच का डंका पीट प्रगतिवादी होने का खोखला दम्भ भर रहे हैं, सामाजिक मनोवृत्ति में ऋणात्मक गिरावट दर्ज की जा रही है। समाज में असुरक्षा की भावना घर कर गई है, बेटियों की सुरक्षा को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है।

क्या रामराज्य की कल्पना महज़ दिखावे तक सीमित -

कानून की दृष्टि में महिलाओं को कम नहीं आंका जाता, मगर पुरुष प्रधान समाज में आज भी महिलाओं पर अत्याचार बढ़ रहे हैं। इस मानसिकता को हर हाल में बदलना होगा, तभी स्वच्छ समाज निर्माण होगा। रामराज्य की कल्पना साकार करने के लिए कानून के भय के साथ ही युवा वर्ग को शिक्षा से संस्कारित किये जाने की भी आवश्यकता है, तभी ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रुकेगी। सख्त कानून के साथ-साथ जब तक लोगों में नैतिकता की भावना का प्रचार-प्रसार नहीं होगा तब तक शायद ऐसी घिनौनी घटनाओं पर रोक लगना मुश्किल है।

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