कोरोना संक्रमण के बीच लापरवाही के हमाम में सभी नंगे

 कोरोना संकट में परेशान लोगों को अहसास कराएं कि -- मैं हूं ना

( मनोज कुमार द्विवेदी-- अनूपपुर,मप्र)

आखिर चूक कहां हुई ? जब 2020 की कोरोना लहर में भारत के लोगों ने समझ, धैर्य ,संयम तथा परंपरागत तरीकों का दामन थामे रख कर नैया पार लगा ली थी , उसके बावजूद 2021 में कोरोना के दूसरे आक्रमण से भारत कैसे लडखडा गया ? 

चीनी कोरोना वायरस को किसी आतंकी हमले की तरह यदि हमने लिया होता तो हम सतर्क रहते। हमने मास्क, डिस्टेंशिंग का महत्व भुला दिया। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी , तमाम विषय विशेषज्ञों ने समय - समय पर हमें चेताने की भरसक कोशिश की कि कोरोना का संकट अभी टला नहीं है। मास्क लगाए रहें, डिस्टेंशिंग के नियमों का पालन करें तथा हाथ धोते रहें। 

औरों की तरह हमने भी इसे हवा में उडा दिया। लाकडाउन का अनुभव इतिहास सा बन गया...बाजार, माल, ट्रेनें, फ्लाइट्स सब फुल दिखने लगे। पर्यटन स्थलों में चहल पहल बढ गयी। स्कूल - कालेज खोले जाने लगे। राजनैतिक दल चुनाव - चुनाव खेलने लगे। कहने का आशय यह कि कोरोना संक्रमण के आसन्न खतरे के बीच लापरवाही के हमाम में सभी नंगे हो गये। 

    आज कोरोना के बदलते स्वरुप ने भारत जैसी बडी आबादी वाले देश को हलाकान कर रखा है। राज्यों और केन्द्र की सरकार अस्पतालों में सिर्फ कोरोना मरीजों की सांस संभालने मे पूरी ताकत झोंक रही है। इस बार एक दिन में मरीजों की संख्या रिकार्ड साढे तीन लाख से ऊपर जा रही है। कोरोना से मरने वालों की वास्तविक संख्या किसी को नहीं पता। इसमे सरकार और मीडिया/ विपक्ष के दावे अलग - अलग हैं। 

कोविड -2 के दौरान भारत की पत्रकारिता का विद्रूप चेहरा देखने को मिल रहा है , जिसमें एक वर्ग श्मशान में जलती चिताओं, अस्पतालों में चीख- चित्कार, आंसुऒं के सैलाब में , लाशों में टीआरपी तलाशता दिख रहा है , तो एक वर्ग ऐसा भी है जो निस्पृह भाव से दवाओं, आक्सीजन, बेड की उपलब्धता / आभाव,  बडी संख्या में ठीक होकर घर जाते मरीजों , चिकित्सकों, नर्सों, पुलिस अधिकारियों की कर्तव्यपरायणता, 15-18 घंटे मरीजों की सेवा करते लोगों पर पत्रकारिता को फोकस किये हुए है। सोशल मीडिया जनप्रतिनिधियो की अकर्मण्यता, उनके निकम्मेपन, चुनावों पर चुटकुलों , पाजिटिव- निगेटिव खबरों की होड से भरे पडे हैं । 

आक्सीजन की कमी और इसके चलते दम तोडते लोगों को देखना , इस सदी की सबसे बड़ी विभिषिका मानी जाएगी।‌ देश में पहली बार अस्पतालों में आईसीयू, वेंटिलेटर, आक्सीजन की उपलब्धता पर राष्ट्र व्यापी चिंता / चिंतन हो रहा है। देश की राजधानी दिल्ली की तो मानों सांसे उखड गयी हैं। यहाँ के ख्यातिलब्ध अस्पतालों में कोविड मरीजों के सैलाब से अव्यवस्था / अराजकता की सिलाई उधड सी गयी है। नाराज न्याय पालिका को कोरोना को सूनामी बता कर दखल देना पडा। ना केवल दखल बल्कि केन्द्र ,राज्य सरकारों, निर्वाचन आयोग को कडी फटकार लगानी पडी। 

  कोरोना की दूसरी लहर के चपेट में आम जनता कॆ साथ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, मीडिया के लोग आ चुके हैं। सांसद , विधायक, मंत्री घरों में कैद हैं। अब दशा इतनी खराब है कि जनता की सुध लेने वाला कोई नहीं है । मई में कोरोना की तीसरी लहर  की आशंका मीडिया में बिखरी पडी है। ऐसे में *कोरोना कब, किसे, कहां  जकड़ ले कहना मुश्किल है। यद्यपि वैक्सीनेशन पर सरकार ने खासा फोकस किया हुआ है। वैक्सीन लगने  के बाद  अब उतना खतरा नहीं होता है, जितना बगैर टीका लगवाएं...इस लिये सभी लोगों को  वैक्सीन जरुर लगवाना होगा ।

 कोरोना की दूसरी/तीसरी लहर बहुत ही घातक बतलाई जा रही है। Double Mutant Covid  के बाद Triple Mutation वाले Covid Virus बेहद खतरनाक बतलाए जा रहे हैं। जब मरीजों की संख्या बेहिसाब बढ रही हो तो बेवजह या किसी के बहकावे / उकसावे में आकर किसी को भी घर से बाहर नहीं निकलना चाहिये।* 

यह जरुरी है कि जो अधिकारी / डाक्टर्स/ स्वास्थ्य कर्मचारी, पुलिस, पत्रकार कार्य कर रहे हैं , उन्हे हतोत्साहित करके ...उनका मनोबल ना गिरायें ।

लोग धैर्य ना खोएं , अफवाहों में ना आएं। यह जरुर समझ लें कि कोरोना वैश्विक आपदा है । इससे पहले किसी को भी कोरोना,पीपीई, मास्क, रेमडेशिविर, कोरोनिल जैसे शब्दों की जानकारी नहीं थी। कोविड की पहली लहर में आक्सीजन का महत्व तक हम नहीं समझ सके। जब दूसरी लहर आई तो मरीज, अस्पताल,सरकारों की सांस फूलने लगी* । अब कुछ समय में आक्सीजन, इंजेक्शन, वैक्सीन सभी कुछ व्यवस्थित हो जाएगा। इसके बावजूद बड़ा नुकसान हो चुका है। हमने अपने आसपास के  बहुत से परिचितों, परिजनों, मित्रों को खो दिया है। यह अभी तक इस शताब्दी की सबसे बड़ी आपदा है। इससे कोई भी अछूता नहीं है।

हमें यह ध्यान रखना होगा कि 

एक दूसरे से दूर रह कर भी हम एक दूसरे की ताकत बन सकते हैं। भावनात्मक रुप से जुड़े रहें, मित्रों से बात करते रहें। जो लोग आपको चाहते--मानते हैं , उन्हे संबल जरुर प्रदान करें। कमजोर, गरीब,असहाय वर्ग को यह जरुर कहें, उन्हे अहसास कराएं  कि  मै हूँ ना। 

सबसे अंत में ...लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह कि संकटकाल में ही आपके आचरण,व्यवहार,शिक्षा, संस्कार की परीक्षा होती है । इतनी बड़ी आपदा में ईश्वर सभी की परीक्षा ले रहा है। ईश्वर के प्रति शरणागति, मानवीय संवेदना, सहयोग,सेवा भाव को बनाए रखना ही भारत का संस्कार है।

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