चुनाव आ गया है इसलिए मिस्टर लल्लूराम के माथे पर शिकन ना आने पाए" -राजकमल पांडे 'आजाद'


   किसी भ्रष्ट और बेईमान आदमी को इमानदार कहना उतना ही दुस्साहस का कार्य है, जितना किसी ईमानदार आदमी को बेईमान कहना। दर्पण कभी झूठ नहीं बोलता, और जिस आईने में चेहरा साफ प्रतिबिंबित ना हो उसे कचरे में फेंक देना चाहिए। आईना ऐसा हो कि उसमें हम अपने चेहरे की झाइयां और खरोंच, पके हुए बाल आसानी से देख सकें। हमारी खूबसूरती और कुरूपता को स्पष्ट दिखाने का काम आईना बखूबी करता है। आईने के इस गुण को छीनना बहुत मुश्किल है। लेकिन जिस आईने का पारा ही झड़ चुका हूं उसमें रूपवान कुरूप दिखने लगता है और कुरूप-रूपवान।अनूपपुर में एक अजीब तरह की हलचल है। एक ऐसा हलचल की किसी रिवाल्वर में साइलेंसर लगाकर चला दिया जाए और उसमें आवाज न हो। लोगों में फुसफुसाहट है। खुसुर-फुसुर करके आपसी संवाद की जरूरत को पूरा कर लेते हैं। दबे पांव एक दूजे के घर जाते हैं, और दबे पांव वापस आ जाते हैं। नजरों से बात होती है, और उसकी अभिव्यक्ति खून के साथ दिल में बड़ी तेजी से उतर जाती है। मीडिया परेशान है कि आखिर ऐसा क्या हो गया है कि लोग दादासाहेब फालके की अनबोलता फिल्म के पात्र बन गए हैं। वह जमाने लद गये जब फिराक गोरखपुरी ने लिखा था कि

"जिंदगी सोज हो-साज ना होने पाये

दिल तो टूटे मगर आवाज ना होने पाए"

लेकिन इस लोकतंत्र में अभिव्यक्ति का सबको अधिकार है और इस अधिकार पर आरक्षण नहीं है। लोकतंत्र और राजतंत्र में इतना ही अंतर है। फिर भी लोग खामोश हैं। जैसे कोई गंभीर घटना घट गई हो और उसे बताने में लोग परहेज करते हो। बशर्ते मिस्टर लल्लूराम को यह भ्रम है कि शहर उनका गुलाम है, उसके आदेश के बगैर शहर में पत्ता नही हिल सकता। वो चाहते हैं कि सुबह-शाम लोग उनके घर के दरबार में माथा टेकने जाएं, हाज़िरी लगाएं, जी हुजूर, जी हुजूर करके अपनी रीढ़ झुकाएं तो मिस्टर लल्लूराम की अध्यक्षी वाली तड़पती आत्मा को सुकून आए। चार चमचे जिनका कोई सामाजिक इमेज नही उन्हें अपने साथ रख कर शहर की भोली-भाली जनता को हड़काओ, पत्रकारों को डराओ, गरीबों की जमीन जायजात लूटो और लूटवाओ, लड़ाई, दंगा, मारपीट करवाओ और जो भी संभव हो सके करो। क्योंकि सत्ता तुम्हारी है, सरकार तुम्हारी है, गुंडे तुम्हारे हैं, तो इसी के बलबूते ख़ुद अध्यक्ष बनो व वार्डो पर असामाजिक तत्वों को पार्षद बनाने की अनुशंसा करो। जनाब यही ओछी मानसिकता लेकर 30 साल अनूपपुर नगर की जनता का विकास, सुख और समृद्धि डकार गए। और अब चाहते हो कि आपके कहने पर आपको व अपके प्रत्याशी को लोग वोट दें। ताकि आप पद-प्रतिष्ठा पाकर नगर में आतंक मचाओ यह किसी भी तरह से सम्भव नही है। मंदिरों की नारियल-सुपारी तक में राजनीति करने वाले, यज्ञ-हवन-पूजा का पैसा डकार जाने वाले, अनूपपुर का नगर का भविष्य तय करेंगे। अनपढ़ों और कुपढ़ो के इस महायुद्ध में जीत किसकी होगी यह वक्त तय करेगा। लेकिन अपने लम्पट और लफ़ाडियों समर्थकों को अपने खूँटे से बांधकर रखिए ताकि नगर की जनता सुख-शांति से रह सके। और फिर तो वही बात है कि "जिसके पास कोई काम-धाम नही है, वह लल्लू के गुण गाए।"

क्रमशः

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