पेगासस : पत्रकारों, जजों मंत्रियों आदि की जासूसी लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए अत्यंत खतरनाक , जांच ज़रूरी..

पेगासस एक स्पाईवेयर सॉफ्टवेयर है. यानी इससे किसी की जासूसी की जा सकती है. इसे इजरायल की एक कंपनी एनएसओ ग्रुप   ने तैयार किया है. ये कंपनी साइबर वेपन्स बनाने के लिए जानी जाती है. यह सॉफ्टवेयर व्हाट्सऐप समेत कई अन्य मोबाइल की जानकारियां हासिल करने के मदद करता है. साथ ही जिस मोबाइल को हैक करके जानकारियां हासिल की जाती हैं, उस मोबाइल यूजर को इसके बारे में पता भी नहीं चलता है.

पेगासस जैसे स्पाइवेयर का प्रयोग सरकार किस तरह से अपने हितों के लिए कर सकती है, इसका खुलासा 18 जुलाई को हुआ. एक भारतीय ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल ने अपने रिपोर्ट में दावा किया कि कम से कम 40 भारतीय पत्रकारों की जासूसी के लिए इजरायली स्पाइवेयर पेगासस का प्रयोग किया गया है. इजराइली कंपनी एनएसओ के स्पाईवेयर पेगासस के माध्यम से अनेक राजनेताओं, पत्रकारों और जजों की जासूसी किये जाने का पर्दाफाश हुआ है जो चिंतनीय है। ऐसा समझा जाता है कि यह जासूसी विभिन्न देशों की सरकारों के इशारे पर अपने-अपने देशों में उन व्यक्तियों की हुई है, जो सरकार के विरोध के लिए जाने जाते हैं। जिन लोगों की जासूसी की गई है उनमें भारत के 40 से अधिक लोग शामिल हैं। 10 देशों के 16 विभिन्न मीडिया संस्थानों के सैकड़ों पत्रकारों द्वारा यह मामला सामने आया है। फ्रांस की संस्था फॉरबिडन स्टोरी का और एमनेस्टी इंटरनेशनल के साथ मिलकर जुटाई गई जानकारी में बताया गया है कि इजराइली जासूसी नेटवर्क का इस्तेमाल भारत में भी किया गया है। प्रसिद्ध प्रकाशन वाशिंगटन पोस्ट और दी गार्जियन के मुताबिक 40 भारतीय पत्रकारों, 3 प्रमुख प्रतिपक्षी नेताओं, 2 मंत्रियों और एक जज की जासूसी होने की पुख्ता जानकारी है। भारत के संदर्भ में बात करें तो आश्चर्य की बात यह है कि जिन लोगों की जासूसी की गई, उनमें अनेक सरकार के विरोधी तो हैं ही, सत्ता के नजदीकी लोग भी इस सूची में शामिल हैं। फिलहाल तो केन्द्र सरकार ने इस बात से इंकार किया है कि उसके द्वारा किसी की जासूसी की जा रही है। केन्द्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और केन्द्रीय महिला व बाल विकास मंत्री स्मृति की भी जासूसी की गई है। उल्लेखनीय है कि सॉफ्टवेयर पेगासस यूजर की अनुमति के बिना उनके फोन का डाटा प्राप्त कर सकता है। वैसे इस मामले में खुद इस कंपनी ने किसी तरह के गैरकानूनी हैकिंग से इंकार किया है लेकिन शक अब भी बना हुआ है।  बतलाया तो यह भी जाता है कि करीब 300 लोगों के टैप किये गये फोन कॉल कई तरह के राज खोल सकते हैं। इस जासूसी की वास्तविकता तो जब भी सामने आये लेकिन प्रथम दृष्टया इसमें काफी सच्चाई नजर आती है। बताया जा रहा है कि देश के कई महत्वपूर्ण मीडिया संस्थानों के पत्रकारों की जासूसी की गई है, जिनमें द वायर के सिद्धार्थ वरदराजन और हिन्दुस्तान टाईम्स के शिशिर गुप्ता शामिल हैं। ये दोनों ही पत्रकार अपने मोदी विरोधी लेखों और रिपोर्ट्स के लिए जाने जाते हैं। इसके अलावा भी अनेक अखबारनवीस इस सूची में शामिल बतलाये गये हैं। अगर पत्रकारों, जजों आदि की जासूसी की जाती है तो यह लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए अत्यंत खतरनाक है। मंत्रियों की जासूसी तो सीधे-सीधे किसी भी देश की स्वतंत्रता, संप्रभुता और कानून-व्यवस्था के लिए भी एक बड़ा खतरा है।  पत्रकार और उनके मीडिया हाऊस अपने-अपने देशों में सरकार विरोधी रवैये के लिए जाने जाते हैं। इसलिए सहज ही यह आभास होता है कि जासूसी का आरोप सच हो सकता है। यह भी आशंका जताई जा रही है कि इन देशों की ही सरकारों द्वारा इस कंपनी की सेवाएं ली गई होंगी। इस धारणा के पीछे यह भी आधार है कि जिन लोगों पर नजर रखी गई उनमें मजदूर यूनियनों के नेता, एनजीओ संचालक, धार्मिक नेता, उद्योगपति आदि भी शामिल हैं। यह देखी जाने वाली बात है कि क्या गडकरी और स्मृति के फोन भी टैप किये गये हैं। अगर इसमें सच्चाई है तो यह कहीं अधिक गंभीर मसला बन जाता है क्योंकि विभिन्न कामों के चलते देश की बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील जानकारी भी लीक हो सकती है। अगर यह जासूसी भारत सरकार के इशारे पर हुई है तो इससे बुरी बात कुछ भी नहीं हो सकती क्योंकि माना यह जाता है कि मंत्री वे ही लोग होते हैं जो प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के विश्वासपात्र होते हैं। अपने ही मंत्रिमंडल के सदस्यों की जासूसी संपूर्ण सरकार में संदेह और भ्रम की स्थिति पैदा करेगी। इसलिए यह बहुत ही आवश्यक हो गया है कि सरकार स्वयं इस सिलसिले में जांच करे और देश के पत्रकारों, राजनेताओं, जजों या किसी को भी किसी अन्य देशों के ऐसे जासूसी उपकरणों की जद में जाने से बचाये।चूंकि ये सॉफ्टवेयर कंपनियां केवल पैसों के लिए काम करती हैं, आश्चर्य नहीं होगा अगर वे इस जासूसी से प्राप्त जानकारी को असामाजिक तत्वों, आतंकवादियों, विभाजनकारी संगठनों आदि को बेच दें। अगर ऐसी जासूसी द्वारा सरकारें विपक्ष की आवाजों को मौन करने की मंशा रखती हैं तो यह जनतंत्र के लिए खतरनाक होगा। इस परिप्रेक्ष्य में इस पूरे मामले की सघन जांच आवश्यक है।
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