‘लोकतंत्र के मंदिर’’ में ‘‘अर्द्धसत्य’’ कथन कर ‘‘न्याय मंदिर’’ व ‘‘जनता के मंदिर’’ को झूठला दिया गया?
जब सरकार संसद में यह झूठ कथन प्रस्तुत करने के लिये मजबूर व बाध्य थी। तब भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा द्वारा इस संबंध में ली गई प्रेसवार्ता में इस तथ्य को बताना चाहिए था कि पार्टी उक्त आंकड़ों को सही नहीं मानती है और यह स्पष्टीकरण सदन मंे क्यों नहीं दिया गया? राज्यों में केन्द्रीय दल भेजकर उच्च स्तरीय जांच कराने का आश्वासन भापजा ने क्यों नहीं दिया? इस देश की यह पहचान ही बन चुकी है कि दुर्घटना घटी जांच समिति बनी। ‘‘किन्ही भी राज्य सरकारों ने केंद्र को काउंटर (प्रत्याक्रमण) करते हुये यह नहीं कहा है कि उनकी राज्य में ऑक्सीजन की कमी से मौत हुई है, जिसके आंकड़े रिपोर्ट में भेजे गये है। ’’तब राज्य सरकारों व विपक्षी पाटियों को इस मुद्दे पर केंद्र को घेरने आरोप या प्रश्न चिन्ह लगाने का कोई नैतिक या तथ्यात्मक आधार नहीं रह जाता है।
राजीव खंडेलवाल:-                      
     केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री डां. भारती प्रवीण पवार ने संसद (राज्यसभा) के सदन में लिखित उत्तर में यह कथन किया है कि ‘‘स्वास्थ्य’’ राज्य का विषय हैं, और किसी भी राज्य ने कोविड-19 के संक्रमण काल के दौरान ऑक्सीजन की कमी से कोई मृत्यु की रिपोर्ट नहीं की है। ऐसा लगता है की इस कथन को सुन, पढ़ व देखकर देश में उन परिवारों में जहां उनके सदस्य इस दौरान कोरोना से संक्रमित होने के कारण असमय ही कॉल के गाल में समा गये हैं, को गहरा सदमा पहुंचना लाज़िमी है। ‘‘क्षतें क्षार प्रक्षेपः’’ अर्थात ‘‘जले पर नमक छिड़कने के समान’’ है इस सदमे के कारण हो सकता है कि उनके परिवारों में किसी की मृत्यु कहीं हृदयगति (आक्सीजन की कमी के कारण) रूक जाने से न हो गई हो? 
संसद में सरकार का यह बयान मीडिया के लिए छानबीन का विषय हो सकता है, और अवश्य होना भी चाहिए। क्योंकि कुछ दिनो पूर्व ही ऑक्सीजन की कमीं से हो रही मौत से मीडिया की सुर्खिया लाल-पीली हो रही थी। स्वास्थ्य राज्य मंत्री का उक्त कथन आॅक्सीजन के कारण हुई मृत्यु की मीडिया की कई रिपोर्टो को एक दम झुठला रहा है और उसे सफेद झूठ ठहरा रहा है। उक्त कथन वास्तव में देशवासियों के लिए न केवल सिर्फ उन पिछले डेढ़ साल से कोविड-19 से संक्रमित लोगों के लिए एक झटका है, बल्कि उन लोगों के लिए भी जो दर्शक होकर (संसद में भी ‘‘दर्शक दीर्घा’’ है) अपने सामने कोविड़-19 के भुगतयमान लोगों को देख रहे और उनकी मौत पर दुखी है। इस संपूर्ण दौर में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, डॉक्टर्स, स्वास्थ्य कर्मियों व न्यायालय सहित अन्य तंत्रांे को नागरिकों ने देखा है कि कोरोना काल की दूसरी लहर में किस प्रकार ऑक्सीजन की कमी से मृत्यु हुई हैं। इस संबंध में एक ‘स्वतंत्र समूह’ के दस्तावेज के आंकड़े 630 से ज्यादा लोगों की मृत्यु बताते है। कहते है कि ‘‘एक तस्वीर हज़ार शब्दों से ज्यादा प्रमाणिक होती है’’। यहां तो हजार तस्वीरें हैं, उन्हे कैसे झुठलाया जा सकता है। इसी प्रकार कोविड़-19 से अन्य मरने वालो की संख्या के आंकड़े व वास्तविकता में भी भारी अन्तर हैं, जिस पर पक्ष-विपक्ष के बीच तू-तू मैं-मैं होती रहती है। 
केंद्र सरकार के उक्त कथन को पूरा झूठ न कहकर ‘‘अर्धसत्य’’ ठहराना ज्यादा उचित होगा। संसद के पटल पर राज्यों से संबंधित जानकारी रखने के लिये केंद्रीय सरकार का कार्य सिर्फ अमूमन आंकडों को कम्पाईल (संकलन) कर प्रस्तुत करना ही होता है। यह सदन की मान्य निर्धारित प्रक्रिया है। मतलब सदन के पटल पर रखी गई राज्य की विषय वस्तु से संबंधित दस्तावेजों की प्रामाणिकता व सत्यता की जवाबदेही केंद्र की न होकर राज्यों की होती है। यहाँ तक तो बात सच व ठीक प्रतीत होती दिखती है। परन्तु शून्य का मतलब यहाँ पर वास्तव में आंकड़े के तथ्य के साथ भी बुद्धि का शून्य होना भी दर्शित करता है। 
आपदा अधिनियम के चलते कोविड़-19 महामारी से निपटने के लिये पूरे देश में पूर्ण प्रबंधन व निर्णय-निर्देश केंद्र सरकार द्वारा ही दिये जाते रहे है, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुये केन्द्रीय सरकार का गैर जिम्मेदाराना व असंवेदनशील व्यवहार परिलक्षित होता है। केंद्र द्वारा राज्यों के झूठ के आंकड़े अर्थात शून्य के आंकड़े को जांचे बिना वास्तविकता से आंखे मुंदते हुये सदन जो लोकतंत्र का मंदिर कहलाता है, के पटल पर जैसा का तैसा रख दिया। जबकि यह तथ्य सरकार की स्वयं की जानकारी में है कि देश के विभिन्न राज्यों में ऑक्सीजन की कमी के कारण मौतें हुई है। न्यायालयों ने भी कई बार यह कहते हुये कि आप आंखे बंद कर सकते है हम नहीं, (दिल्ली उच्च न्यायालय) सरकारों को फटकारा है। इलाहबाद उच्च न्यायालय ने ऑक्सीजन की कमी के कारण मौतों को जनसंहार कहा। उच्चतम न्यायालय ने इस पर ‘एम्स’ के निर्देशक की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी। 
जब एकत्रित जानकारी झूठ का पुलिंदा हो जाए, जिसे सरकार स्वयं मंत्री व पार्टी भी झूठ मानती हो व न्यायालय भी झूठा ठहरा चुका है, तब सरकार ने इस स्पष्टीकरण के साथ उक्त जानकारी सदन के पटल पर क्यों नहीं रखी कि वह राज्यों को तुरंत आवश्यक निर्देश देगी की इसकी त्वरित जांच कर सही वस्तु स्थिति रिपोर्ट की जाए। तभी सदन के माध्यम से जनता को सही स्थिति से रूबरू कराया जा सकेगा, और तकनीकि प्रक्रियात्मक बंधन के कारण सदन में पूर्व में प्रस्तुत किए आंकड़े सही हो सकेंगे। इस एक प्रश्न व उत्तर ने इस तथ्य को पुनः सिद्ध कर दिया कि राजनीति के इस ‘‘हमाम में सब नंगे’’ हैं।
देश में विभिन्न पार्टियों की सरकारें हैं। केंद्र सहित अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। उनके लिये तो कहा जा सकता है कि ‘‘बर्ड्स आॅफ द सेम फी़दर फ्लाॅक टुगेदर’’ किसी भी राज्य सरकार (भाजपा सहित) ने यह स्वीकार नहीं किया है कि ऑक्सीजन की कमी से किसी भी नागरिक की मृत्यु हुई है। जबकि कोविड़-19 की दूसरी लहर की मीडिया रिपोर्ट तथा न्यायपालिका की टिप्पणियां व समस्त पार्टियों के वक्ताओं, प्रवक्ताओं के आरोप-प्रत्यारोप से निकले गए बयानों से यह स्पष्ट हो जाता है कि देश में 630 से ज्यादा मौतें ऑक्सीजन की कमी से ही हुई है। ऐसा लगता है कि पहली बार भाजपा का समस्त विपक्षी राजनैतिक पार्टियों के साथ एकमतता, सहयोग, गठजोड़ व ‘कूट संधि’ है, जिसके परिणाम स्वरूप ही राज्यों को आड़े हाथ लिये बिना, शून्य का आंकडा को सदन के पटल पर परोसा गया। यह साफ निष्कर्ष इसलिये निकलता है कि किन्ही भी राज्य सरकारों ने केंद्र को काउंटर (प्रत्याक्रमण) करते हुये यह नहीं कहा है कि उनके राज्य में ऑक्सीजन की कमी से मौत हुई है, जिसके आंकड़े रिपोर्ट में भेजे गये है। तब राज्य सरकारों व विपक्षी पाटियों को इस मुद्दे पर केंद्र को घेरने आरोप या प्रश्न चिन्ह लगाने का कोई नैतिक या तथ्यात्मक आधार नहीं रह जाता है। लेकिन ‘‘साझे की हंडिया तो चैराहो पर फूटती ही थी’’। राज्यों के उक्त जवाब से कंेद्र सरकार को भी अपनी चूक, असफलता, असावधानी को ढ़कने के लिये आॅक्सीजन मिल गई। फलतः सरकार ने फा़यदा मिलते देख आवश्यक स्पष्टीकरण दिये बिना व तथ्यों में छेड़छाड़ किये बिना जैसी की तैसी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी। वस्तुतः यह रिपोर्ट ‘‘विष कुंभम् पयो मुखम्’’ अर्थात विष से भरे हुए उस घड़े के समान है जिसके मुंह पर ऊपरी सतह दूध की हो। वैसे एक महत्वपूर्ण उल्लेखनीय बात यहां पर यह भी है कि अस्पतालों के रिकॉर्ड में डॉक्टरों ने मृत्यु के कारणों मैं ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई ही का उल्लेख किया है क्या? इसके अभाव में कोई भी सरकार अधिकृत रूप से ऑक्सीजन से हुई मौत के आंकड़ों का उल्लेख नहीं कर सकती है।इस बिंदु पर समस्त पक्षों ने आश्चर्यजनक रूप से कोई प्रश्न नहीं उठाया है। यह तथ्यात्मक सत्य ही अपने आप में सब जवाब समेटे हुए हैं?
जब सरकार संसद में यह झूठा कथन प्रस्तुत करने के लिये मजबूर व बाध्य थी। तब भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा द्वारा इस संबंध में ली गई प्रेस वार्ता में इस तथ्य को बताना चाहिए था कि पार्टी मृत्यु के उक्त आंकड़ों को सही नहीं मानती जो झूठे है और ऐसा स्पष्टीकरण सदन में क्यों नहीं दिया गया? इसका जवाब शायद उनके पास नहीं था। राज्यों में केन्द्रीय दल भेजकर उच्च स्तरीय जांच कराने का आश्वासन भाजपा ने क्यों नहीं दिया? इस देश की यह पहचान बन चुकी है कि दुर्घटना घटी जांच समिति बनी। और जांच समिति का परिणाम आते आते स्मरण शक्ति काफी कमजोर हो जाती है। ‘‘वाह!, हेड्स आई विन एंड टेल्स यू लूज़’’ यानि ‘‘चित भी मेरी और पट भी मेरी’’ संबित पात्रा को यह भी स्पष्ट करना चाहिए था कि आक्सीजन भेजने के संबंध में राज्यों को जो गाइडलाइंस जारी की गई थी, उसमें विशिष्ट रूप से ऑक्सीजन की कमी से मौत के आंकड़े विशिष्ट रूप से पृथक से मांगे गये थे अथवा नहीं? अन्यथा राज्य मौत के कुल आंकड़े का और विश्लेषण क्यों करेगें? ख़ासकर ऑक्सीजन की कमी से हुई मौत के आंकड़े बावत। उल्लेखनीय तथ्य यहां पर यह है कि इस महामारी की दूसरी लहर के दौर में ऑक्सीजन की खपत पहली लहर की तुलना 3095 मींट्रिक टन से बढ़कर 9000 मींट्रिक टन हो गई। ऑक्सीजन की भारी किल्लत व मारामारी के कारण विदेशों से ऑक्सीजन आयात की गई। देश में स्पेशल ‘‘ऑक्सीजन एक्सप्रेस’’ ट्रेन चलाई गई। प्रधानमंत्री ने देश के समस्त जिले, मुख्यालयों (726) में आॅक्सीजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट लगाने की घोषणा की। उक्त समस्त कार्यवाही आखिर ऑक्सीजन की भयावह स्थिति व तदनुसार हो रही मृत्यु को देखते हुये ही तो की गई थी? 
शायद जनता के (र्दु) भाग्य में यह भुगतयमान लिखा था। उन परिवारों की सोचनीय स्थिति के बाबत सोचिए, जो असमय ईश्वर को प्यारे हो गए। शासन की नीतियों व तंत्रों की असफलता ‘‘तुच्छ राजनीति’’ के चलते ऐसे गैर जिम्मेदारा बयानों से सरकारों की यह बेशर्मी खुलेरूप में प्रदर्शित होती है। शायद सरकार इस सत्य को नहीं मानती है, कि शरीर भले ही नश्वर हो, लेकिन आत्मा अमर है। अन्यथा ऐसा बेहूदा झूठा सिद्ध आंकड़ा सदन में परोसकर सदन की ओर टकटकी नज़र से देख रही उन मृतात्मा के घावों पर और नमक क्यों छिड़कती? क्या यही संवेदनशीलता है? घटित आपदा, दुर्घटनाओं की सत्यता को स्वीकार करके ही भविष्य में उन्हे रोकने के सफल प्रयास किये जा सकते हैं।