राजीव खंडेलवाल:-
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वितीय कार्यकाल के लगभग 2 साल का समय व्यतीत हो जाने के पश्चात बहुप्रतिक्षित मंत्रिमंडल का जम्बों विस्तार व ऐतिहासिक बदलाव व परिवर्तन आखिरकार हो ही गया। यद्यपि "परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है" किन्तु विभिन्न राज्यों के चुनावों व ख़ासकर कोविड-19 के पहले व दूसरे दौर की स्थिति के चलते न केवल मंत्रिमंडल विस्तार में देरी हुई, बल्कि इन्हीं पस्थितियों ने मंत्रिमंडल विस्तार को अन्तिम रूप से कार्यरूप में परिणित करने में भी मजबूर किया। अर्थात साध्य (उद्देश्य) व साधन (कारण) एक ही हो गये। मंत्रिमंडल के विस्तार व समय से यह साफ झलकता है कि "काले खलु समारब्धा: फलम् बध्नन्ति नीतय:"। आइए एक तीर से कई निशाने कैसे साधे गये, इसका अध्ययन कर लिया जाएः-
1. स्वाधीन भारत के इतिहास में शायद अभी तक का यह सबसे बड़ा एवं अभूतपूर्व मंत्रिमंडल-विस्तार व परिवर्तन है। जहाँ कुल 43 मंत्रियों ने शपथ ली, व 12 मंत्रियों से इस्तीफे लिये गये, 36 नए मंत्री बनाए गए, 7 राज्यमंत्री को पदोन्न्त कर केबीनेट मंत्री बनाया गया। इस प्रकार अब मंत्रिमंडल की कुल सदस्य संख्या 77 हो गयी है, जिसमें 28 राज्यमंत्री हैं। 4 मंत्री संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार अभी भी और बनाये जा सकते है।
2. मंत्रिमंडल की लगभग पूरी काया कल्प बदलकर सिर्फ तात्कालिक लाभ के लिये नहीं, बल्कि दीर्घकालीन योजना के तहत अर्थात वर्ष 2022, 23 व 24 में होने वाले राज्यों के चुनावों व देश के आम चुनाव में उतरने की नीति को अभी से ही इस मंत्रिमंडल के विस्तार में ध्यान में रखा गया है। "टुमारो नेवर कम्स" की नीति का पालन करते हुए तीन साल का इंतज़ार करने की बजाय आज ही सरकार का स्वरूप काफी हद तक जरूरत के अनुरूप बदल दिया गया है।
3. इस मंत्रिमंडल विस्तार में 24 प्रदेशों को प्रतिनिधित्व दिया गया हैं। इससे ज्यादा प्रतिनिधित्व 26 प्रदेशों का वर्ष 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव के मंत्रिमंडल में हुआ था।
4. इस मंत्रिमंडल विस्तार के द्वारा आगामी 5 प्रदेशों में खासकर उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनावों को साधने की मंशा भी पहली नज़र में स्पष्ट रूप से झलकती हैं।
5. 24 प्रदेश को ही नहीं, बल्कि विभिन्न प्रदेशों के विभिन्न अंचलों को भी राजनैतिक दृष्टि से प्रतिनिधित्व देने का अधिकतम पूर्ण प्रयास किया गया। अर्थात् अवध, पूर्वांचल, बृज, बुन्देलखण्ड, चम्बल आदि।
6. एनडीए के नाराज साथियों (पार्टियों) जैसे "अपना दल" को भी "साधा गया" जो मोदी (प्रथम) 1.0 मंत्रिमंडल में शामिल था। दूसरे कार्यकाल (2.0) के मंत्रिमंडल में जेडीयू के मंत्रिमंडल में प्रवेश से इंकार (सिर्फ एक मंत्री को बनाने के कारण) का कड़ा जवाब सिर्फ एक मंत्री को ही शामिल कर दिया गया।
7. "अटका बनिया देय उधार" की तर्ज़ पर पहली बार 5 अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व दिया गया, जिसमें एक मुस्लिम, एक क्रिश्चन, दो बौद्व व एक सिक्ख शामिल हैं।
8. सिर्फ विभिन्न प्रदेशों, क्षेत्रों को ही नहीं साधा गया, बल्कि विभिन्न जातियों को भी सफलता पूर्वक साधने का प्रयास किया गया। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछडा वर्ग, पिछड़ी जातियों में भी अति पिछड़ी विभिन्न जातियों को विस्तारित प्रतिनिधित्व दिया गया। जो इसके पूर्व इस सीमा तक कभी नहीं हुआ। इस प्रकार "हाथी के पांव में सबके पांव के लिये जगह" रखी गयी है।
9. "तेजसाम् हि न वय: समीक्ष्यते" अर्थात योग्य की उम्र नहीं देखी जाती, इस उक्ति को चरितार्थ करते हुए उम्र की दृष्टि से भी यह अभी तक सबसे युवा मंत्रिमंडल है, जिसकी औसत आयु 60 वर्ष से घटाकर 58 वर्ष हो गई हैं।
10. कुल 11 महिलाओं (9 राज्य मंत्रियों सहित) को भी प्रतिनिधित्व दिया गया, जो पहले किसी भी कांग्रेसी मंत्रिमंडल में नहीं दिया गया था। ( यद्यपि अटल बिहारी बाजपेई की सरकार में 11 महिलाएं अवश्य शामिल थी।)
11. शिक्षा के हिसाब से भी यह अभी तक का सबसे पढ़ा-लिखा मंत्रिमंडल है, जिसमें , 6 डाॅक्टर्स,5 इंजीनियर्स,1 सीए , 13 वकील, 5 पीएचडी, 3 एमबीए, स्नातक 6 पूर्व नौकर शाह व पूर्व राजनायिक शामिल हैं।
12. यह बात भी स्पष्ट हैं कि इस मंत्रिमंडल में शायद एक भी आरोपी अपराधी राजनीतिज्ञ को शामिल नहीं किया गया हैं। (राजनीतिक आंदोलनों में भाग लेने के कारण अपराध पंजीयत किये जाने वाले मामलों को छोड़कर)।
13. ‘‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’’ का आकर्षक नारा देने वाले प्रधानमंत्री ने इस विस्तार के द्वारा अपने उक्त नारे को सही ठहराया हैं। वही उनके विपक्षी प्रधानमन्त्री पर एक देश एक भाषा एक संस्कृति की बात करने वाली भाजपा पर राजनैतिक दृष्टि से उसमें जातिवाद व क्षेत्रवाद को साधने की राजनीति करने का आरोप लगा सकते हैं।
14. कहते हैं कि "आशा बड़ी मायावी होती है" शायद इसी उक्ति को ध्यान में रखते हुए मंत्रिमंडल के 4 पद रिक्त रखकर राजनैतिक कौशल व चार्तुय दिखाते हुये ज्यादा राजनैतिक महत्वकांक्षी व्यक्तियों की राजनैतिक हुंकार को भविष्य में साधने के प्रयास करने के भी संकेत दिये गए है।
15. इस विस्तार से देश का सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण प्रदेश जहां अगले वर्ष चुनाव होने वाले हैं, और जहां से होकर ही केंद्र की सत्ता तक पहुंचा जा सकता है, ऐसा माना जाता है, वह उत्तर प्रदेश "उत्तम" बन गया वहीं बुद्ध के अष्टांगयोग के मध्यमा प्रतिपद का अनुसरण करते हुए मेरा मध्य प्रदेश "मध्य" में ही रह गया।
16. यह विस्तार की प्रक्रिया एक दम से एक साथ न किया जाकर धीरे धीरे की गयी। अर्थात् पूरे मंत्रिमंडल के परिवर्तन की राजनैतिक क़वायद की भूमिका से लेकर धरातल में उतारने तक को बहुत अच्छे तरीके से धीरे-धीरे बूंद टपकाने के समान (एक साथ पूरा ग्लास उलट समान नहीं) किया गया। जरा दिमाग पर जोर डालिये। 12 मंत्रियों के इस्तीफे एक साथ न आकर एक-एक करके गुजरते-गुजरते समय के गुजरने के साथ-साथ आते गये।
17. इस विस्तार का एक संदेश यह भी है कि प्रभावी दल बदलूओं को भी पुरस्कृत किया गया है। (जैसे ज्योति रादित्य सिंधिया)। अर्थात् भविष्य में मजबूत "लाभदायक दल बदल' की संभावनाएं को पद के आर्कषण के द्वारा बरकरार "जिंदा" रखा गया है। "क्योंकि सत्ता के भूखे बाग़ी ही सत्ता परिवर्तन में क्रांतिकारी भूमिका निभाते हैं"।
18. "हनुमान" (चिराग पासवान) की जगह "विभीषण" (पशुपति नाथ पारस) को देकर नरेन्द्र मोदी ने ‘राम’ का नया रूप दिखाया है। क्योंंकि ‘‘राम’’ ने तो हनुमान के साथ-साथ विभीषण की सहायता से रावण का वध किया था। शायद वर्तमान में उनके सामने उपस्थित रावण उतना सक्षम नहीं है, जिसके लिये हनुमान की भी आवश्यकता हो। यह भी हो सकता है कि वर्तमान हनुमान अपने को पूर्ण रूप से राम भक्त सिद्ध नहीं कर पाये हो। और पारस की "पारसमणि" के द्वारा, बिना ‘हनुमान’ के ही उद्देश्य पूर्ण हो गया।
19. इस राजनैतिक सर्जिकल स्ट्राइक (नरेन्द्र मोदी का सर्जिकल स्ट्राइक शब्द से बहुत प्रेम है) के द्वारा यह संदेश पूरी तरह से सफलता पूर्वक दिया गया कि "उल्लेखनीय प्रर्दशन" (कार्य) करने वाले मंत्रियों को पुरस्कृत किया जाकर पदोन्नत किया गया और उन्हे अच्छे विभागों से "नवाजा" भी गया। विपरीत इसके (बैंक के एनपीए के समान) अक्षम, अकर्मण्य, "हरफ़न मौला हरफ़न अधूरा" वाले मंत्रियों को हटा दिया गया।
20. उम्रदराज़ी के कारण मंत्रिमंडल से रिटायर कर (थावरचंद गहलोत को) राज्यपाल के रूप में रिहैब्लिटेट
(पुर्नवास) कर दिया, जहाँ सामान्यतः ऐसे ही वरिष्ठ राजनैतिज्ञों को "चयनित" किया जाता है।
21.'सादगी पर अकर्मण्यता' (आफिस न जाना) भारी पड़ी, शायद प्रताप सारंगी को इसी कारण से मंत्री पद से हटाया गया।
22. "इस्तेमाल करो व फेंको" की राजनीति का भी कुछ संकेत इस परिवर्तन में दिखता है। पश्चिम-बंगाल के देवश्री व बाबूल सुप्रीयों का हटाया जाना शायद इसी नीति का परिचायक है।
23. वर्ष 2014 में पहली बार मंत्रिमंडल गठित करते समय नरेन्द्र मोदी ने जो नारा "मिनिमम गवर्नमेंट मैक्जिमम गवर्नेंस" का दिया था, वह जरूर तकनीकी रूप से इस बड़े विस्तार से ध्वस्त होता हुआ दिखता है। मनमोहन सिंह पर तंज कसते हुए "हार्वर्ड बनाम हार्डवर्क" कहने वाले नरेन्द्र मोदी को अपने मंत्रिमंडल में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़े दो मंत्रियों ज्योतिरादित्य सिंधिया व राजीव चंद्रशेखर को शामिल करना पड़ गया। निषाद पार्टी को भी नरेन्द्र मोदी समायोजित नहीं कर पाये।
24. अन्त में, जितनी हाइलाईट्स, हेडलाईंस इस मंत्रिमंडल विस्तार को मिली जो पूर्व में शायद कभी नहीं मिली और यही प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के कार्य करने की विशिष्ट शैली भी हैं। "जो होम करते हाथ नहीं जलने देती"।