पेसा एक्ट और जनजातीय गौरव

मध्यप्रदेश एक आदिवासी बाहुल्य राज्य है और इनके राजनैतिक समर्थन के बिना कोई भी राजनैतिक दल सत्ता का सपना संजो नहीं सकता । आज अर्थात 15 नवंबर भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को आज देश भर में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया गया।, इस अवसर में जनजातीय समाज को गौरवान्वित करने के लिए मध्य प्रदेश में आज से पेसा एक्ट लागू किया गया. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज शहडोल में जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर नियमावली का विमोचन कर पेसा एक्ट लागू किया. महामहिम आज शहडोल में जनजातीय गौरव दिवस समारोह में शामिल हुईं.यह एक्ट मध्य प्रदेश में आदिवासियों को जल जंगल जमीन पर हक दिलाने के लिए लागू किया गया . राज्यों के राज्यपालों को पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत वनवासी संरक्षण के अनुकूल शासन करने के लिए विशेष अधिकार दिए गए हैं, जिसे पेसा कानून कहा जाता है, पेसा कानून को लागू हुए 26 साल हो चुके हैं, जिसने आदिवासी समुदायों के बीच स्वशासन की परंपरा की अनुमति दी थी, लेकिन इसे कारगर ढंग से लागू न करा पाने के कारण आदिवासी अंचलों में गतिरोध भी है कि ढाई दशक बाद भी टूट नहीं पा रहा है. आदिवासी क्षेत्र में हिंसा को रोकना उस क्षेत्र में पिछड़ेपन पर काबू पाने के लिए एक पूर्वापेक्षा है और आदिवासियों के पिछड़ेपन को दूर करने और उन्हें उचित विकास का मौका देने के लिए आदिवासी स्वशासन पर विचार करना अनिवार्य है.आदिवासी स्वशासन के विचार के बिना आदिवासी विकास का विचार पूरा नहीं हो सकता है. पेसा अधिनियम का वास्तविक क्रियान्वयन उस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, मध्यप्रदेश यह कानून लागू करने वाला सातवां राज्य बन गया है। इससे पहले छह राज्यों (हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र) ने पेसा कानून बनाए हैं। पेसा एक्ट का संबंध मध्यप्रदेश से ही ज्यादा रहा है। मध्यप्रदेश के झाबुआ से सांसद रहे दिलीप सिंह भूरिया की अध्यक्षता में बना गई समिति की अनुशंसा पर यह कानून बनाया गया था। 24 दिसंबर 1996 को पेसा कानून देश में लागू हुआ था। मप्र में 89 जनजातीय ब्लॉक्स में यह पेसा कानून लागू होने वाला है। यहां जो ग्राम सभा बनेगी उसमें स्थानीय समुदाय की सहभागिता रहेगी।यह जमीन, जंगल, जल, खदानें भगवान ने सबके लिए बनाई है। यह हम सबकी है। पेसा कानून के तहत हमने जो नियम बनाए हैं, उसमें जल, जंगल और जमीन का अधिकार आपको दिया जा रहा है। हर साल गांव की जमीन, उसका नक्शा, वनक्षेत्र का नक्शा, खसरे की नकल, पटवारी को या बीट गार्ड को गांव में लाकर ग्रामसभा को दिखानी होगी। ताकि जमीनों में हेर-फेर न हो। नामों में गलती है तो यह ग्रामसभा को उसे ठीक कराने का अधिकार होगा। किसी भी प्रोजेक्ट, बांध या किसी काम के लिए हमारे गांव की जमीन ली जाती है, लेकिन अब ग्राम सभा की अनुमति के बिना ऐसा नहीं हो सकेगा। पेसा कानून के जरिये ग्राम सभाओं को और अधिक अधिकार मिले हैं। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि गांव में कुछ एजेंट आते हैं। काम के लिए ले जाने की बात करते हैं। बाद में हमारे बेटे-बेटियां दिक्कत में फंस जाती हैं। पेसा के नियम आपको अधिकार दे रहे हैं कि हमारे गांव से कोई बेटा-बेटी जाएगा तो पहले ग्राम सभा को बताना होगा। ले जाने वाला कौन है, कहां ले जा रह है, यह भी बताना होगा। ये नया क़ानून ज़मीन , जल और जंगल का अधिकार आपको देगा. अब हर साल ज़मीनका खसरा, बीट गार्ड और पटवारी को गांव में लाकर दिखाना होगा. ताकि ज़मीन का हेर फेर और कोई गडबड़ी न हो सके. अगर कोई गड़बड़ी पाई जाती है तो ग्राम सभा को अधिकार होगा की वो इसे सुधार सके. अब बांध बनाने और किसी भी काम के लिए बिना ग्राम सभा की सहमति के किसी की ज़मीन नहीं ली जाएगी.मध्य प्रदेश सरकार लगातार आदिवासियों को रिझाने की कोशिश कर रही है. इसी को लेकर पेसा एक्ट लागू करने की कवायद लंबे समय से की जा रही थी.हालांकि,इस मामले को लेकर राज्य सरकार के विभागों में ही कुछ मतभेद है,जिनका निराकरण अभी किया जाना है.मप्र में पेसा एक्ट का लागु होना देर सबेर ही सही या यह कहे की अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटरों को लुभाने के सीएम शिवराज सिंह चौहान पेसा एक्ट के रूप में बड़ा दांव ही सही लेकिन यह कदम आदिवासी समूहों को हिंसक प्रतिरोध का सहारा लेने से बचाने का एक सराहनीय कदम हो सकता है, जरुरी है इस अधिनियम के  कठोर कार्यान्वयन की।  

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