2000 के नोट चलाने अथवा प्रचलन से बाहर करने के लिए देश से माफी अथवा नीतिगत त्रुटि को स्वीकारा नहीं जाना चाहिए?


स्वच्छ मुद्रा नीति (क्लीन नोट पॉलिसी) के तहत भारतीय रिजर्व बैंक ने 19 मई को एक अधिसूचना जारी कर पूर्व में 10 नवम्बर 2016 को भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 की धारा 24(1) के अंतर्गत जारी 2000 मूल्याँक के नोट को बाजार से "संचलन से वापस" लेने की घोषणा की। साथ ही उक्त मुद्रा को तत्काल अवैध घोषित न करते हुए अर्थात 2000 मूल्य वर्ग के नोट को *वैध मुद्रा* (लीगल टेंडर) जारी रखते हुए 30 सितंबर के बाद उसके ट्रांजेक्शन को बाजार में प्रतिबंधित कर दिया, जिसे आम भाषा में ‘‘नोटबंदी द्वितीय’’ कहा/ठहराया जा रहा है। प्रश्न आरबीआई की उक्त कार्रवाई क्या विमुद्रीकरण/ नोटबंदी है? जैसे कि 8.11.2016 का प्रधानमंत्री ने घोषणा कर की थी। उत्तर उसका यही है कि तकनीकी रूप से न तो यह कदम विमुद्रीकरण है और न ही नोट बंदी। वस्तुतः विमुद्रीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा विमुद्रीकृत किए गए नोटों को किसी भी प्रकार के लेनदेन के लिए वैध मुद्रा के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। अर्थात किसी करेंसी यूनिट के लीगल टेंडर के दर्जे को छीन लेना विमुद्रीकरणहै। जबकि ‘‘क्लीन नोट पॉलिसी’’ में 4-5 साल के बाद नोट के खराब हो जाने के कारण उसे क्रमशः प्रचलन से बाहर कर दिया जाता है, परंतु वह मूल्यांक *वैध* रहता है।

          अबकी बार "नोटबंदी भाग दो" की घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा नहीं की गई, जैसा कि पिछली बार प्रधानमंत्री ने स्वयं मीडिया के माध्यम से देश को संबोधित करते हुए नोटबंदी की घोषणा की थी। आम जनता के लिए *अचानक* लेकिन आर्थिक क्षेत्रों के जानकार लोगों के लिए नवंबर 2016 में आई नोट बंदी की योजना के समय ही बाजार में नकदी उपलब्ध कराने की उद्देश्य से 2000 के नोट छापने की नीति लागू की गई थी। तब ही यह स्पष्ट था कि धीरे-धीरे उद्देश्य पूरा होते होते इसे बंद कर दिया जाएगा। इसी नीति के तहत आरबीआई द्वारा 2018 से 2000 के नोट छापना बंद कर दिया गया था। इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए भारतीय रिजर्व बैंक की दृष्टि में रू. 2000 के अंकन का नोट जारी करने का उद्देश्य पूरा होने से अंतिम कड़ी के रूप में उक्त अधिसूचना जारी हुई है। यद्यपि आरबीआई के सूत्रों के अनुसार बड़े नोटों को काले धन के रूप में इकट्ठा करने की जानकारी आने के बाद ही यह कदम उठाया गया है। आंकड़ों की नजर से भारतीय रिजर्व बैंक की इस नीति को आगे इस तरह से समझिए।

      8 नवंबर 2016 को देश में हुई नोटबंदी के समय चलन में मौजूद 15.50 लाख करोड़ बेकार हो गए, जो बाजार में चलन कुल नगदी का 89% था। चूंकि बाजार की नगदी की आवश्यकता की आपूर्ति में छोटे नोट छापने में लंबा समय लग जाता, इसलिए 2000 के हाई डिनॉमिनेशन (मूल्य वर्ग) के नए नोट लाने की नीति अपनाई जा कर वर्ष 16-17 में 2000 रुपए के 6.30 लाख करोड़ के नोट छाप कर डाले गए। आरबीआई के अनुसार मार्च 2017 में ही 89% 2000 के नोट जारी कर दिए गए थे, जिस कारण से 5-6वर्ष की आयु पूर्ण हो जाने के कारण स्वच्छ मुद्रा नीति के तहत उक्त मुद्रा बाजार से प्रचलन के बाहर किए जाने की परिधि में आती थी। वर्ष 2016  में की गई नोट बंदी के बाद बाजार में नकदी घटने की उम्मीद थी, परंतु वह घटने के बजाय बढ़ गई। नोटबंदी के समय चलन में नकदी 17.7 लाख करोड़ थी, जो एक समय दोगुनी से ज्यादा होकर 36 लाख करोड़ तक हो गई। यानी "मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की"। इस कारण से आरबीआई द्वारा 2000 के नोट छापने बंद किये जाने से 31 मार्च 2018 को इन नोटों की अधिकतम मात्रा 6.73 लाख करोड़ रुपए रह गई थी, जो बाजार में मुद्रा के कुल संचलन का 37.3 थी। यह पुनः घटकर 31 मार्च 2023 को घटकर मात्र 3.60 लाख करोड़ रह गई जो कुल मुद्रा संचलन का मात्र 10.8 है। इस प्रकार बाजार में आज लगभग 3.62 लाख करोड़ रूपये 2000 के नोट है, को ही हटाया गया है। इसके लिए अब नए मूल्य के नोट छापने की आवश्यकता इसलिए नहीं है, क्योंकि अन्य मूल्यांक के नोट आवश्यकता के अनुरूप पर्याप्त संख्या में बाजार में उपलब्ध हैं। अतः जनता को कोई असुविधा नहीं होगी। इस कार्रवाई का यह एक पक्ष आरबीआई व उसके पीछे खड़ी सरकार का है।

      अब सिक्के के दूसरे पहलु सरकार के दावे व ‘‘नोटबंदी भाग-1’’ के समय किए गए दावों व उनकी प्राप्ति (उपलब्धि) का परीक्षण कर ले तभी हम नोटबंदी भाग-2 के निर्णय पर सही निष्कर्ष पर पहुंच पायेगें। सरकार का यह कहना है कि अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में बड़े नोटों का प्रचलन नहीं है। भारत भी वही मौद्रिक नीति अपना रहा हैं। प्रश्न यह है कि फिर प्रथम बार नवम्बर 2016 में 2000 रू. के उच्च मूल्यांकन के नये नोट जारी ही क्यों किये गये? जब तब भी यह दूसरे देशों में नहीं था। रू. 500 व 1000 की नोटबंदी के समय यह तर्क दिया था कि इसेसे "काला धन" व "टेरर फंडिंग" पर लगाम कसेगी। तब तो उससे भी ज्यादा मूल्यांक रू. 2000 के नोट जारी करते समय क्या सरकार इस तथ्य से अवगत नहीं थी कि काला धन के संचयन के लिए बड़े मूल्याँक 2000 के नोट ज्यादा सुविधाजनक होंगे? सरकार के पक्ष दोनों का यह कथन की आम गरीब जनता के पास 2000 के नोट कहां होते हैं। तो क्या सरकार तत्समय अमीरों के लिए ₹2000 के नोट लाई थी?क्या आरबीआई का रू. 2000 के नोट जारी करने के संबंध में दिया यह स्पष्टीकरण उचित व मान्य है कि बाजार में रूपये की तरलता के लिए छोटे नोटों के अवैध हो जाने से बची वैध नोटों की मुद्रा के बाजार की आवश्यकतानुसार जरूरत की पूर्ति में काफी समय छापने में लगेगा? इसलिए 2000 रू. के नये नोट छापने की नीति बनाई गई। क्या उक्त नीति जो आज 2000 के नोट को प्रचलन से बाहर करते समय बताई जा रही है, जारी करते समय बताई गई थी क्या? या "आगे देखी जाएगी" सोचकर "नाव पानी में उतार दी" थी। तकनीकी रूप से जब नोटबंदी और बाजार से नोट को प्रचलन से बाहर करना अलग-अलग क्रिया एवं प्रक्रिया है, तब फिर आज की कार्रवाई के औचित्य को सही ठहराने के लिए पूर्व की नोटबंदी का हवाला क्यों दिया जा रहा है? क्या पूर्व नोटबंदी का "पत्थर घिसते घिसते महादेव बन चुका है"? फिर क्या एक ‘कमी’ की पूर्ति के लिए दूसरी ‘‘बड़ी गल्ती’’ कर कमी की पूर्ति कर उसे सुधारा जा सकता हैं? दूसरा आरबीआई ने जो स्थिति 2000 रू. के नोट के संबंध में अपने स्पष्टीकरण में बतलाई है, कमोबेश वही स्थिति 500 रू. के नोट के मामले में भी हैं। तब क्या 500 मूल्यांकन के नोट फिर से बंद किये जाने वाले है? क्या आरबीआई खुद को "हरफनमौला हरफन अधूरा" साबित करने में लगा हुआ है? प्रथम नोटबंदी के घोषित लक्ष्य भ्रष्टाचार, काला धन, टेरर फंडिंग, आतंकवाद, नक्सलवाद को रोकना,नकली नोट आर्थिक स्थिति को तीव्रगति देना डिजिटल ट्रांजैक्शन को बढ़ावा देना थी। डिजिटल ट्रांजिशन को छोड़कर बाकी किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति कुछ सीमा तक ही हो पाई। तब क्या उक्त कमियों की पूर्ति के लिए आरबीआई द्वारा यह अधिसूचना जारी की गई है जिसके परिणाम भी क्या *वही ढाक के तीन पात* तो नहीं होंगे?

      एक दूसरी महत्वपूर्ण बात आरबीआई व सरकार, भाजपा का यह दावा है कि 2000 के नोट पिछली योजना के समान तुरंत (चार घंटे बाद) अमुद्रिक (अवैध) नहीं किये गये है, बल्कि वह आज भी एक वैध मुद्रा है, जो कि 30 सितंबर तक बाजार में प्रचलन में वैध रहेगीं। उक्त बात अंशत: शब्दशः कागज पर बिल्कुल सही है। पिछले बार भी 30 दिसंबर तक अवैध घोषित मुद्रा को बदलने का समय दिया गया था जिस प्रकार अभी 30 सितंबर तक। हां अभी की कार्रवाई में मुद्रा को तुरंत अवैध घोषित नहीं किया गया है, परन्तु व्यवहार में क्या 1 प्रतिशत भी यह सही है? 30 सितंबर के बाद भी क्या वह वैध मुद्रा होकर प्रचलन में होगी? यदि नहीं तो फिर यह मुद्रा वैध है, इस दावे का "यथार्थ" मतलब क्या है? या मकसद सिर्फ जनता को गुमराह करना है? सूक्ति है कि "संशयात्मक विनश्यति'। जब एक नागरिक को यह मालूम है कि 2000 के नोट 1 अक्टूबर से कागज की रद्दी हो जाएंगे, तब वह आज किसी भी ट्रांजैक्शन में 2000 का नोट लेकर बैंक के चक्कर क्यों लगायेगा। भुगतान करने वाला तो कानूनन जोर (दबाव) कर सकता है, परन्तु भुगतान प्राप्त करने वाला व्यवहारिक रूप से उसे हर हाल में अस्वीकार ही करेगा। इस प्रकार ऐसा व्यक्ति कानून की नजर में भी अकारण ही अपराधी हो जाएगा क्योंकि लीगल टेंडर को अस्वीकार करना भारतीय दंड संहिता की धारा 124A के अंतर्गत एक अपराध है। मतलब यह की "पठ्ठों की जान गई, पहलवान का दांव ठहरा"। याद कीजिए! जब कभी बीच-बीच में किसी भी नोट के अमुद्रीकरण की अफवाह फैलती या फैला दी जाती रही, तब जनता सतर्क होकर उन मूल्यांकन के नोटों को स्वीकार करने में हिचकती है। खतरे की आशंका से बचने का सबसे सुरक्षित तरीका भी यही है कि खतरे से दूर रहो। इस प्रकार शब्दों के भ्रमजाल से भ्रम पैदा कर धरातल पर मौजूद वास्तविक स्थिति को बदला नहीं जा सकता है।

      ‘‘नकली नोटों’’ को बाजार से हटाने के लिए भी ‘‘विमुद्रीकरण’’ की नीति लाई जाती है, जैसा कि पिछली नोटबंदी में प्रचलित समस्त 500 के नोटों का विमुद्रीकरण कर 500 के नोटों की नई सीरीज जारी की गई थी। परन्तु क्या उससे नकली नोटों का छपना बंद हो गया? नवंबर 2016 की नोटबंदी से लेकर आज की गई स्वच्छ मुद्रा नीति के बीच देश के विभिन्न भागों में कई बार 2000 व 500 के नकली नोट जब्त कियेे गये है। कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में भी 375 करोड़ से उपर की नगदी (नोट) जब्त किये गये थे पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में 4.05 गुना ज्यादा थी। यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस योजना का एक उद्देश्य आगामी होने वाले विधानसभा व लोकसभा के चुनाव में कालेधन के उपयोग को रोकना भी हो सकता है। तथापि इसका प्रभाव सत्ताधारी दल की बजाए विपक्ष पर ज्यादा पड़ने की संभावनाएं है। शायद यह बात समझ कर ही पूरा विपक्ष इस मामले में एकमत होकर आक्रमण आलोचना कर इस नीति के विरुद्ध खड़ा हो गया है।

      रिजर्व बैंक द्वारा वर्ष 1999 में लागू की गई स्वच्छ मुद्रा नीति (क्लीन नोट पॉलिसी) का एक कारण  4-5 साल बाजार में चले नोटों को खराब हो जाने से उन्हें बाजार से हटाना भी होता है। इसका उद्देश्य ग्राहकों को अच्छी गुणवक्ता वाले करंसी नोट देना है। यदि इस कारण से भी 2000 के नोट वापस लिये जा रहे हो तो शेष मूल्यांक के खराब हो रहे नोटों को वापिस लेने के लिए आरबीआई ने क्या कदम उठाये हैं? साथ ही इस नीति के तहत उसी मूल्यांकन के नये सीरीज के नोट जारी किये जाते हैं। क्या भविष्य में भी स्वच्छ मुद्रा नीति के तहत रू. 2000 के बाजार से वापिस लेने के बावजूद वैध होने के कारण भविष्य में पुनः नई सीरीज का 2000 के नोट जारी किये जायेगें?

      किसी भी सरकार की सबसे बड़ी *साख* उसका "पाक दामन और पारदर्शिता" *होना* ही नहीं बल्कि *दिखना* भी चाहिए। मतलब *एक्शन* के साथ वही *परसेप्शन* का होना भी आवश्यक है। बार-बार कम समय के अंतराल में इस तरह नोटबंदी किये जाने से सरकार, आरबीआई व बैंकों की साख पर भी उंगली उठती है खासकर जब ऐसी कार्रवाइयों से इच्छित *वांछित* परिणाम न निकले हो। कहीं इन कारवाइयों में रिजर्व बैंक की उपलब्धि "भूसा ज्यादा, आटा कम" की तो नहीं रही है? ऐसी कार्रवाईयो से भारत जैसे देश में जहां ग्रामीण इलाकों में जहां आज भी लगभग 40-45% जनता अशिक्षित है, का सरकार व उन बैंकों के प्रति जहां *जन धन योजना* के अंतर्गत ग्रामीण जनता ने प्रधानमंत्री के आव्हान पर खाता खोलें, के प्रति विश्वास को कहीं न कहीं चोट व धक्का नहीं लगता है? कहीं ऐसा तो नहीं हो जाएगा जब *करेंसी की साख* के प्रति विश्वास की बजाय *अविश्वास* की खाई इतनी बढ़ जाए कि नागरिकों का एक बड़ा वर्ग वैध करेंसी की बजाएं सोने को करेंसी मानकर ट्रांजेक्शन करने लगे और संचय करने लगे तो? क्योंकि अंतंतः करेंसी तो साख पर ही चलती है। यदि करेंसी की साख का बेड़ा गर्क हो जाए तो अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क होने में देर नहीं लगेगी? अतः सरकार को आर्थिक नीतियों के मामले में बहुत सोच समझकर और राजनीतिक नफा नुकसान को परे रखकर सिर्फ और सिर्फ देश हित में निर्णय लेना चाहिए और यदि संभव हो तो निर्णय के पूर्व जनता को भी विश्वास में लेना चाहिए।

Comments
Popular posts
विश्व पर्यावरण दिवस पर उद्योग ने तालाब गहरीकरण वृक्षारोपण एवं प्राकृतिक जल स्रोतों किया संचयन।
Image
अनूपपुर थर्मल एनर्जी की पर्यावरणीय लोक सुनवाई सफलता पूर्वक संपन्न, मिला सामुदायिक समर्थन
Image
विजय के शिखर पर ठहराव और भारत की वैश्विक छवि
Image
सार्वजनिक विवाह सम्मेलन में भगवा पार्टी ने की जल व्यवस्था, जनसेवा का दिया संदेश
Image
मजदूरों के सम्मान में भगवा पार्टी मैदान में — मंडीदीप के सफाई कर्मियों को न्याय दिलाने का संकल्प
Image