हारी हुई सीटों पर बीजेपी का बड़ा चुनावी दांव


एमपी में चुनाव की घोषणा को अभी तीन महीने शेष हैं, प्रत्याशियों का ऐलान कई बार नामांकन भरने की तारीख तक हुआ करता था. सोशल मीडिया पर आज बीजेपी के 39 प्रत्याशियों की सूची जब प्रसारित हुई तब पहली नजर में तो ऐसा लगा यह कोई राजनीतिक चाल तो नहीं है. फिर स्पष्ट हुआ कि बीजेपी ने हारी हुई सीटों पर अपने प्रत्याशियों का ऐलान कर नया दांव चला है.

कांग्रेस पिछले 4 महीने से यह बयान दे रही थी कि हारी हुई सीटों पर उनके प्रत्याशियों का ऐलान काफी पहले कर दिया जाएगा. बीजेपी इस मामले में कांग्रेस को मात देते हुए यह संदेश पहुंचाने में सफल हुई है कि बीजेपी का राष्ट्रीय नेतृत्व मध्य प्रदेश के चुनाव को बहुत गंभीरता से ले रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में केंद्रीय चुनाव समिति की दिल्ली में बैठक हुई, तब किसी को इस रणनीति का आभास नहीं था कि बीजेपी प्रत्याशियों का ऐलान कर सकती है. चुनावी रणनीति परसेप्शन और राजनीतिक संकेतों पर चलती है. एमपी के चुनावी संकेत इस सूची ने साफ कर दिये हैं.

सबसे पहले ये संकेत दिया गया है कि भाजपा नेतृत्व चुनाव जीतने के लिए पूरी तरह से गंभीर है. प्रत्याशियों के चयन में केवल जिताऊ क्षमता ही एकमात्र आधार है यही इस सूची से संकेत मिल रहा है. ऐसा बताया जा रहा है इन प्रत्याशियों के चयन में केंद्रीय नेतृत्व के सर्वे के आधार पर सबसे उपयुक्त प्रत्याशी का चयन किया गया है.

प्रत्याशियों की सूची ने इन चर्चाओं को भी विराम दे दिया है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हुए सभी विधायकों एवं उपचुनाव में हारे विधायकों को चुनाव के टिकट मिलने की गारंटी है. इसी सूची में कुछ ऐसे प्रत्याशी घोषित किए गए हैं जो सिंधिया के साथ आए पूर्व विधायक की सीटें हैं. इससे भी है स्पष्ट हुआ है कि बीजेपी चुनाव में जीतने की क्षमता को ही एकमात्र आधार बनाएगी. इस सूची में यह भी पता लग रहा है कि कुछ पूर्व विधायकों के परिवार के लोगों को भी प्रत्याशी बनाया गया है. पार्टी राज्य में चुनाव में जीत को ही अपना पैमाना रख रही है इसके लिए परिवार के लोगों को भी टिकट देने से परहेज नहीं किया जाएगा.

भोपाल में मध्य सीट से ध्रुवनारायण सिंह को प्रत्याशी बनाया गया है. पिछले चुनाव में इस सीट पर हार को प्रत्याशी चयन में चूक को ही कारण माना जाता है. ध्रुवनारायण सिंह इस सीट से विधायक रहे हैं बाद में उन्हें पार्टी द्वारा टिकट नहीं दिया गया. इस बार उनको इस सीट से प्रत्याशी बनाया जाना इस क्षेत्र के चुनावी परिदृश्य को रोमांचक कर सकेगा. 

इसी प्रकार उत्तर विधानसभा सीट से आलोक शर्मा को प्रत्याशी घोषित किया गया है. इस सीट से कांग्रेस के आरिफ अकील विधायक हैं. उनका स्वास्थ्य खराब होने के कारण उन्होंने अपने बेटे को राजनीतिक वारिस के रूप में घोषित किया है. आरिफ अकील की राजनीतिक इच्छा सामने आने के बाद उनके घर में ही टकराव सामने आ गया है. 

वहीं प्रदेश के अनुपपुर जिले के पुष्पराजगढ़ विधानसभा सीट से पुष्पराजगढ़  जनपद के पूर्व जनपद अध्यक्ष  पूर्व जिला पंचायत सदस्य  हीरा सिंह श्याम को प्रत्याशी घोषित किया है 

 2018 में चुनावी मात खाने के बाद बीजेपी कांग्रेस में फूट के कारण सरकार बनाने में सफल हो गई थी लेकिन कांग्रेस अतिआत्मविश्वास में ऐसा मानकर चल रही है कि इस बार फिर जनादेश उनके पक्ष में ही जाएगा. कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व और राज्य नेतृत्व के बीच में चुनावी रणनीतियों को लेकर मतभेद समय-समय पर दिखाई पड़ते हैं. 

कांग्रेस ने राज्य में मुख्यमंत्री का चेहरा अभी तक किसी को घोषित नहीं किया है लेकिन राज्य इकाई कमलनाथ को भावी और अवश्यंभावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रचारित करने में कोई कमी नहीं छोड़ रही है. आदिवासी नेता की ओर से कांग्रेस में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग भी उठाई गई है. कांग्रेस हिंदुत्व और सेक्युलर विचारधारा के बीच अपनी चुनावी नैया को पार लगाने के लिए मतिभ्रम की स्थिति में दिखाई पड़ती है. कमलनाथ जहां चुनावी वैतरणी पार करने के लिए हिंदुत्व का सहारा ले रहे हैं, वहीं कांग्रेस में हिंदुत्व की चुनावी रणनीति के खिलाफ भी आवाजें सुनाई पड़ रही हैं. 

मुस्लिम मतदाताओं को कांग्रेस का ही वोट बैंक मध्य प्रदेश में माना जाता है. हिंदुत्व की चुनावी राजनीति के कारण मुस्लिम और सेक्युलरवादी मतदाताओं के सामने संशय की स्थिति पैदा हो सकती है. आम आदमी पार्टी और ओवैसी की पार्टी भी चुनावों में ताकत के साथ उतरने की कोशिश कर सकती है. ऐसी स्थिति में मुस्लिम मतदाताओं का विभाजन बड़ा उलटफेर कर सकता है.

बीजेपी की सूची के राजनीतिक संकेत साफ़ हैं कि पार्टी एमपी के चुनाव में कोई गफ़लत नहीं करना चाहती. केंद्रीय नेतृत्व जीत को लेकर कोई भी कमी नहीं छोड़ना चाहता. बीजेपी के चुनाव की जीत के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और रणनीतियों को अंतिम रूप देने की शुरुआत, कांग्रेस पर रणनीतिक दबाव बढ़ाने का पर्याप्त कारण बनेंगे. विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी चयन हमेशा जीत हार का महत्वपूर्ण कारण बनता है. 


पिछले चुनाव में बीजेपी के पिछड़ने का कारण प्रत्याशियों के चयन में चूक को ही माना जाता है. बीजेपी ने इन चुनावों में प्रत्याशी चयन की शुरुआत करके यह बता दिया है कि इस बार प्रत्याशियों के चयन में पार्टी कोई चूक नहीं करेगी. जो भी पार्टी प्रत्याशी चयन और चुनावी प्रचार अभियान को एकजुटता के साथ संचालित करने में सफल होगी वहीं पार्टी प्रदेश में अगली सरकार बनाने का दावा कर सकेंगी. इसमें तो बीजेपी अभी तो एक कदम आगे निकलती हुई दिखाई पड़ रही है.

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