सरसंघचालक के विचार का वैज्ञानिक प्रमाणन के लिए अमरकंटक केन्द्रीय विवि से जारी पीएचडी शोध पर होगा अंतर्राष्ट्रीय मंथन


अनुपपुर। केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोध छात्र, अभाविप विश्वविद्यालय खंड के पूर्व अध्यक्ष तथा स्वावलंबी भारत अभियान के शहडोल जिला युवा आयाम प्रमुख चिन्मय पांडे अपने पीएचडी कार्य में प.पू. सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत के विचार पर शोध कर रहे है। पीएचडी का टॉपिक ओम है जिसमे हम सबके पूर्वज समान है, डीएनए मैपिंग के आधार पर हजारों साल पहले के अखंड भारत काबुल के पश्चिम से छिंदविन नदी की पूर्व तक और चीन की तरफ की ढलान से श्रीलंका के दक्षिण तक जो मानव समूह के लोंगों का डीएनए समान है। हमारे पूर्वजों ने ही हमें सब सिखाया है. सबकी अपनी-अपनी पूजा-पद्धती है, मान्यताएं हैं. सबकी अपनी-अपनी भाषा है और विविधता में एकता वाले ये सभी लोग हिंदु ही है इसका वैज्ञानिक प्रमाणन करने रिसर्च किया जा रहा है। चिन्मय पांडे के शोध निदेशक आचार्य (डॉ) विकास सिंह है।

दस्तावेजी प्रमाण साबित करते है की भारत के सभी लोग हिंदू ही है

चिन्मय पांडे का फरवरी 2021 में पीएचडी का पंजीयन हुआ है तथा 21 पीढ़ी तक के पूर्वजों की वंशावली का दस्तावेज यह साबित करते है की भारत में रहने वाले सभी पूजा पद्धति के लोग हिंदू ही है। यह जानकारी वैज्ञानिक एवं दस्तावेज प्रमाण के साथ बताया जाना अत्यंत अनिवार्य हो गया है, विदेशी आक्रांताओं द्वारा भारत के पूर्वजों पर किए गए घोर प्रताड़ना, अपहरण, बलात्कार, जबरन धर्मांतरण जैसे अत्याचारों की वजह से भारत के कुछ लोग धर्मांतरित हुए। शोध के प्रमाणन से भारत के लोंगों को अपने पूर्वजों पर हुए अत्याचार के कारण हुए धर्मांतरण को ध्यान में लाया जा सकेंगा। 

विकसित भारत के लिए भारतीयों को हिंदु होने का जानना आधारभूत अनिवार्यता

शोध विद्वान चिन्मय पांडे ने बताया की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से एनालाइज करते हुए वैज्ञानिक एवं दस्तावेज आधारित प्रमाणन से यह साबित किया जा सकेगा की अखंड भारत में रहने वाले लोग सामान पूर्वजों के वंशज है तथा उनके डीएनए में समानता भी है। सातवीं शताब्दी की शुरुआत से पहले भारत भूटान, भारत, मालदीव, म्यान्मार, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश लंका और तिब्बत में हिंदू, बौद्ध, जैन धर्म के लोग ही निवास करते थे। तब भारत की आबादी में एक भी मुसलमान नहीं था। 

*पंच परिवर्तन तथा ‘स्व’ के जागरण को शोधकार्य में शामिल किया गया है*

भारत के लोंगों के पूर्वजों में स्व जागृत था विदेशी आक्रान्ताओं के कालखंड में इसका दमन किया गया है ऐसे में विकसित भारत के लिए 140 करोड़ भारतीयों में ‘स्व’ की पहचान की आवश्यकता भारत के लिए जरुरी है तथा स्वधर्म, स्वदेशी और स्वराज की ‘स्व’त्रयी में निहित समस्त समाज की सहभागिता तथा स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के अवसर पर राष्ट्र के स्वत्व का जागरण के लिये पाँच सूत्रीय कार्य सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी जीवन शैली, नागरिक कर्तव्य शिष्टाचार पर अमृतकाल में भारत के वैश्विक नेतृत्व पर निरंतर मजबूती के लिए देश की एकता और अखंडता अभेद्य और अपराजेय होने जैसे विषय शोध में कनेक्ट किया गया है। श्रेष्ठ भारत का निर्माण ‘स्व’ के आधार पर ही किया जा सकता है। ‘स्व’ को जाग्रत करने के लिए भारत के संदर्भ में चलने वाले विमर्श को बदलना पड़ेगा। 

*अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक, साधु संत, अकादमिक एवं प्रबुद्ध जनों के साथ होगा अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी

शोध विद्वान चिन्मय पांडे ने आगे बताया की अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के माध्यम से भारत में रहने वाले 140 करोड़ भारतीयों के साथ-साथ अखंड भारत के लोग हिंदू ही है तथा उनके पूर्वजों की वंशावली में हिंदू होने की दस्तावेजी प्रमाणन है तथा डीएनए में एक समानता होने के कारण डीएनए भारत मूल के सभी लोग एक समान देखते हैं, इस पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोध पत्र आमंत्रित कर साधु-संत, अधिवक्ता, समाजसेवी, अकादमी विद्वान सभी से शोध पत्र लेकर प्रकाशित किया जाएगा। जिसमें इस बात की वैज्ञानिक प्रमाणिकता तथा दस्तावेजी प्रमाणिकता को इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस प्रोसीडिंग्स के रूप में प्रकाशित किया जाएगा, जिससे भारत के रहने वाले 140 करोड़ भारतीय यह जान सके कि उनके पूर्वज हिंदू ही थे। इसके लिए गया, प्रयागराज, कोणार्क, हरिद्वार सहित जहां-जहां भारत के विभिन्न स्थानों पर पूर्वजों के पिंडदान की प्रक्रिया होती थी वहां पर वंशावली के दस्तावेज सुरक्षित है, ऐसे समस्त वंशावली लेखक को एवं पंडों को भी आमंत्रित किया जाएगा। इस कार्यक्रम के माध्यम से हो रहे शोध को वैज्ञानिक तथा दस्तावेजी प्रमाण की ताकत प्राप्त होगी। चिन्मय पांडे ने बताया कि पीएचडी का शोधग्रंथ हिंदी में लिखा जाएगा, जिसमें विभिन्न प्रकार के दस्तावेजी प्रमाणन एवं वैज्ञानिक साक्ष्य को सम्मिलित किया जाएगा कि भारत के रहने वाले सभी के डीएनए में एक समानता है तथा समान पूर्वजों के वंशज हैं अलग-अलग पूजा पद्धति के सभी लोंगों के पूर्वज हिंदू ही हैं।



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