पहले गुजरात के राजकोट टीआरपी गेमिंग जोन और फिर दिल्ली के विवेक विहार के एक बेबी केयर सेंटर की घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है , दोनों घटनाओं में 16 बच्चों सहित 35 लोगों ने अपनी जिंदगी गंवाई है.दोनों हादसों में एक ही समनता देखने को मिली सुरक्षा के इंतजाम साथ ही सरकारी सिस्टम की अनदेखी। यह कोई पहली घटना नहीं है आमतौर यह देखने में आता है की जब कोई घटना घटित हो जाती है तब सरकार जगती है, प्रशासन कार्यवाही करता है ,गिरफ्तारियां होती है , जांच कमेटियों के गठन होता है ,निलंबन, मुआवजे, का दौर चलता है फिर समय बीतने के साथ सब भूल जाते है। कोई यह आश्वस्त नहीं करता की इस तरह की घटनाये भविष्य में दोबारा घटित नहीं होंगी। लेकिन ऐसी कल्पना करना भी बेमानी है क्युकी पूरे सिस्टम को जंग लग चूका है ,आखिर जिम्मेदार आखिर घटनाओं के घटित होने का इंतज़ार क्यों करते है ,कार्यवाही किसी भी घटना के घटित होने से पहले क्यों नहीं की जाती ? आमतौर पर यह घटनाये तभी होती है, जब नियमों का पालन नहीं किया जाता। या तो इमारत अनधिकृत तरीके से बनाई गई होती है या फिर उसमें सुरक्षा के पर्याप्त उपाय नहीं किए जाते या फिर सुरक्षात्मक उपायों की निगरानी नहीं होने के कारण वे वक्त पर काम नहीं करते। मुश्किलें तब और ज्यादा बढ़ जाती हैं, जब इस तरह की इमारतें घनी आबादी वाले क्षेत्रों में होती हैं। तब ऐसी आगजनी कहीं अधिक जानलेवा साबित होती है। स्पष्ट है, आगजनी के लिए काफी हद तक नियोजन और प्रबंधन की व्यवस्था में खामी उत्तरदायी है। अगर प्रबंधन की नियमित व्यवस्था हो, लाइसेंस आदि ससमय लेने के प्रयास हों, स्थानीय प्रशासन द्वारा निगरानी की उचित व्यवस्था हो, तो इस तरह की घटनाएं काफी रोकी जा सकती हैं।पेंच यह है कि योजना बनाने का दायित्व किसी अन्य एजेंसी पर होता है और उसे लागू करने का दायित्व किसी अन्य एजेंसी का। उसके प्रबंधन की जिम्मेदारी तीसरी एजेंसी संभालती है। देश में हादसे ओर उसके बाद प्रशासन की कार्यवाही एक परंपरा की तरह चलती रहती है ,जो बदलने का नाम नहीं ले रही है। प्रशासन जितनी जल्दबाजी शोक संवेदना व्यक्त करने ,जाँच कमेटी बनाने ,और मुआवजा वितरण की घोषणा करने में दिखाती है अगर उतनी मुश्तैदी सुरक्षा प्रवंधन पर दिखाए तो हो सकता है कीआने वाले समय में हादसों की संख्या में कमी आ सकती है, लेकिन यह सोचने का विषय है।
आखिर हादसे के बाद ही सिस्टम की आँखे क्यों खुलती है ?
विनोद विंधेश्वरी प्रसाद पाण्डेय: