तिरुपति प्रसादम मामला सनातनियों के साथ विश्वासघात : परमधर्म संसद श्रीधर शर्मा_
अमरकंटक/ तिरुपति प्रसादम मामले में शहडोल परम धर्म सांसद श्रीधर ने घोर आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा है कि तिरुपति प्रसादम मामला देश के करोड़ों सनातनियों के साथ विश्वासघात व उनकी आस्था पर कुठाराघात है और धर्म गुरुओं ने इस विषय पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए धर्म रक्षा के लिए सनातन धर्म की धार्मिक पद्धति पर दखल दिए जाने पर कठोर आपत्ति जताई है। शहडोल परम धर्म सांसद श्रीधर शर्मा ने मीडिया से मुखातिब होते हुए जानकारी देते हुए कहा कि तिरुपति प्रसादम मामले में ज्योतिष पीठाधीश्वर अनंत विभूषित स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी ने आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा है कि धर्मनिरपेक्ष सरकार यदि सनातन धर्म के धार्मिक पद्धति पर दखल देती है और यह इसी प्रकार से चलता रहा तो इस प्रकार की स्थितियां निरन्तर पैदा होती रहेंगी। स्वामी जी ने समस्त सनातनियो को आश्वस्त किया है कि जिन लोगों को ऐसा लगता है कि उन्होंने प्रसाद के माध्यम से गलत अभक्ष चीज का भक्षण किया है तो उनको घबराने की आवश्यकता नहीं है। यदि किसी को उसकी इच्छा के विरूद्ध धोखे से या बलपूर्वक अभक्ष चीजों का सेवन करा दिया जाए तो तो वह सेवन नहीं करने के बराबर ही होता है और इसके बाद भी यदि किसी को इसकी ग्लानि है तो वह पंचगव्य का सेवन कर स्वयं को शुद्ध करे। स्वामी जी ने चारो पीठों के शकराचार्यो से बात करने की बात कही है कि इस मामले में सभी धर्माचार्यों से चर्चा की जाएगी और सरकार की नीतियों पर तंज कसते हुए स्वामी जी ने कहा कि सरकार को यदि सनातन धर्म और संस्कृति पर दखल देना ही है तो वित्तीय मामलों पर दखल रहे, हमें कोई आपत्ति नहीं है लेकिन धार्मिक मामलों में सरकार की दखल बंद होनी चाहिए। जब धर्मनिरपेक्षता का हवाला देकर वहां किसी की भर्ती की जाती है तो वह नौकरी करने वाला व्यक्ति अपनी विचारधारा के साथ वहां आता है और सनातन की रक्षा और नियमों का पालन करेगा या नहीं, ऐसा आवश्यक नहीं है और इस पर स्वामी जी ने कठोर वचनों के साथ विरोध जताया और सरकार से अपील की है कि इस पूरे मामले की जांच कर दोषियों पर कठोर से कठोर कार्यवाही की जानी चाहिए, जिससे कि भविष्य में इस प्रकार की घटना की पुनरावृत्ति न हो।
_धर्म के रक्षार्थ धर्म गुरूओं और समस्त पीठों के शंकराचार्यों को करनी होगी अगुवाई और उठाने होंगे जनकल्याणकारी ठोस कदम_
जब जब यह संसार सत्य की ओर से मुख फेरकर असत्य की दिशा में अग्रसर हुआ है, तब ऋषि मुनियों ने धर्म की विजय पताका फहराने हेतु शंखनाद किया है और आज इस संसार सागर को असत्य से बचाने के लिए पुनः ऐसे प्रयासों की आवश्यकता आन पड़ी है। आज हमारे देश में राजनीतिक दलों और संगठनों ने किस प्रकार से सनातन धर्म को हथियार बनाकर अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रहे हैं और सनातन संस्कृति पर आघात पर आघात किए जा रहे हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। इस संसार सागर में सत्य को सदैव अपनी सत्यता का प्रमाण देने की आवश्यकता महसूस हुई और असत्य बरसाती नाले की भांति सीना चौड़ा कर समाज में असत्यता को स्थापित करने का प्रयास करते हुए अट्टहास करते नज़र आया लेकिन अंत में दुर्गति का शिकार हुआ और सत्य की विजय हुई। वर्तमान में सनातन धर्म का सामाजिक ह्रास देखने को मिल रहा है और इसके पीछे अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सोंची समझी साजिश है। धर्म रक्षा के इस यज्ञ में सनातनी धर्म गुरुओं और समस्त पीठों के शंकराचार्यों का आह्वान करते हुए कहा कि असत्य विजय प्राप्त करने के लिए आदि काल का अनुसरण करते हुए इस संसार के कल्याणार्थ चार पीठों के शंकराचार्यों को धर्म गुरुओं को धर्म संस्थापकों के रुप में मोर्चा खोलना होगा और सनातन धर्म और संस्कृति को देश में ही नहीं अपितु समूचे संसार में स्थापित करने के लिए प्रयास करने होंगे। सतयुग से लेकर त्रेता और द्वापर तक ऋषि मुनियों ने इस धरा को बुराइयों से बचाने के लिए अताताइयों के अत्याचार भी सहे और उनके सर्वनाश की नींव रखने का कार्य करते हुए धर्म की स्थापना और धर्म ध्वज फहराने की भी नींव स्थापित की और आज कलयुग में भी उस ऋषि परंपरा उसी तेजस्विता के साथ प्रारंभ किए जाने की आवश्यकता है, जिससे कि इस जगत में अधर्म को हराकर धर्म के स्थापना की जड़ें मजबूत की जा सकें। कभी किसी बॉलीवुड अभिनेता और अभिनेत्रियों के माध्यम से, कई फिल्मों के माध्यम से, तो कभी धर्म के नाम पर अपनी दुकान चलाने वालों को माध्यम बनाकर सनातन संस्कृति पर आघात करने के प्रयास किए गए, लेकिन सत्य को हराना मुश्किल है और अंत में सत्य की ही विजय होनी है लेकिन इसके लिए हमारे धर्म गुरुओं को कमान संभाल कर धर्म स्थापना की ओर अग्रसर होना चाहिए। वर्तमान राजनीतिक परिवेश में सनातन धर्म का मूल वर्ण व्यवस्था पर प्रहार किया जाना आज एक फैशन हो गया है, धर्म शास्त्रों पर पुनर्विचारण का वक्तव्य सनातन धर्म पर प्रहार है। इनका विरोध करना आवश्यक है। हिन्दू समाज केवल आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित पीठों के आचार्यों से अपेक्षा कर रही है। हिन्दूओं द्वारा निर्मित प्राचीन मठ मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण हो चुका है। केवल प्राचीन धरोहर के रूप में ही कई देवालयों का उपयोग किया जा रहा है। धार्मिक मौलिकता सरकार ने समाप्त कर दिया है। मंदिरों में पुजारियों की नियुक्तियां सरकार द्वारा शास्त्रों के परंपरा के विपरीत किया जा रहा है। विदेशों में बसे हुए हिन्दुओं, उनके मंदिरों और स्थानों पर आक्रमण हो रहा है, इन सब बिंदुओं पर विचार किया जाना आवश्यक है। अधर्म के विरुद्ध आवाज बुलंद कर धर्म स्थापना के लिए समूचा हिंदू अपने धर्म आचार्यों की बाट जोह रहा है और इस पर जल्द ही शुरुआत किए जाने की आवश्यकता है, जिससे कि संसार का कल्याण हो सके।