अनूपपुर। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाशमणि त्रिपाठी के खिलाफ बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, रिश्वतखोरी और जनजातीय समाज की पहचान को नुकसान पहुंचाने के आरोपों पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने संज्ञान लेते हुए मुख्य सचिव को कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। कुलपति द्वारा एक्ट के विपरीत कार्यपरिषद का फर्जी गठन, कार्यपरिषद की शक्तियों का दुरुपयोग कर फर्जी नियुक्तियां करने, फर्जी टेंडर जारी करने और विश्वविद्यालय के अधिनियम का उल्लंघन कर जनजातीय समाज को नुकसान किया गया है। कार्य परिषद में उच्च शिक्षा विभाग के बिना अनुमति अपने करीबी लोगों को फर्जी तरीके से परिषद का सदस्य बनाया गया। भारतीय जनता पार्टी के जिला मीडिया प्रभारी, श्री राजेश सिंह ने कुलपति के खिलाफ लिखित शिकायत दर्ज कराते हुए कार्रवाई की मांग की थी।
फर्जी कार्यकारी परिषद बनाकर एक्ट का खुलेआम उल्लंघन
राजेश सिंह ने बताया की जाँच में अधिनियम की धारा 24(1) और 24(2) के अनुसार, कार्यपरिषद में अनुसूचित जनजाति के पर्याप्त सदस्य होने चाहिए, लेकिन कुलपति ने जानबूझकर परिषद में अपने करीबियों को शामिल किया और जनजातीय सदस्यों को बाहर कर दिया। परिषद की बैठक के मिनट्स बिना सदस्यों के हस्ताक्षर के फर्जी तरीके से तैयार किए गए। यह गंभीर अपराध न केवल विश्वविद्यालय अधिनियम का उल्लंघन है, बल्कि जनजातीय समाज के हितों को ठेस पहुंचाने का षड्यंत्र भी है। कुलपति पर जनजातीय समाज के हितों को हानि पहुंचाने और उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। भाजपा ने आरोप लगाया कि कुलपति ने विश्वविद्यालय को अपनी निजी संपत्ति मानते हुए कार्य किया और जनजातीय समाज को धोखा दिया। शिकायत में कहा गया है कि कुलपति ने जनजातीय समाज के खिलाफ षड्यंत्र करते हुए उनके अधिकारों और हितों पर चोट की है।
फर्जी परीक्षा प्रणाली से हजारों युवाओं का भविष्य खतरे में
राजेश सिंह ने बताया की शिकायत में जिन बिन्दुओं की जाँच होनी है उसमें गैर-शिक्षण पदों की भर्ती के लिए निजी संस्थानों से फर्जी तरीके से परीक्षा आयोजित करने की जिम्मेदारी एक निजी संस्था को सौंपी गई, जो कुलपति के पुराने परिचित हैं। परीक्षा के प्रश्नपत्र पहले ही कुछ उम्मीदवारों को लीक कर दिए गए थे, जिनसे वित्तीय लाभ लिया गया। इसके अलावा, उत्तर पुस्तिकाओं पर नंबरिंग नहीं थी, जिससे उनके बदले जाने की संभावना बनी रही। कुलपति पर आरोप है कि उन्होंने फर्जी नियुक्तियों और टेंडरों के माध्यम से भ्रष्टाचार किया। शिकायत के अनुसार, कुलपति ने कार्यकारी परिषद की शक्तियों का दुरुपयोग कर अपने चहेतों को आर्थिक लाभ पहुंचाया। विश्वविद्यालय की संपत्ति और संसाधनों का उपयोग निजी हितों के लिए किया गया।
फर्जी मिनट्स बनाने में कुलपति और कुलसचिव को महारथ
राजेश सिंह ने बताया की कार्य परिषद की बैठकों के मिनट्स फर्जी तरीके से तैयार किए गए, जिन पर सदस्यों के हस्ताक्षर तक नहीं हैं। कुलपति और रजिस्ट्रार ने मिलकर फर्जी मिनट्स पर हस्ताक्षर किए और इस कूटरचित दस्तावेज को शासकीय कार्यों में उपयोग किया। विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर आज भी पारदर्शिता का अभाव है। 17 सालों में परिषद की बैठक के मिनट्स ऑनलाइन उपलब्ध नहीं हैं, जो भ्रष्टाचार के स्पष्ट संकेत हैं। यह मामला सिर्फ एक विश्वविद्यालय के भ्रष्टाचार तक सीमित नहीं है, बल्कि जनजातीय समाज के हितों और उनके अधिकारों के साथ विश्वासघात का गंभीर मुद्दा है। कुलपति की इन गतिविधियों से न केवल युवाओं का भविष्य खतरे में है, बल्कि यह देश की शिक्षा व्यवस्था और पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े करता है।