अनूपपुर फ्लाईओवर ब्रिज, एक महाकाव्य निर्माण


अनूपपुर जिले का रेलवे फ्लाईओवर ब्रिज अब कोई आम पुल नहीं रहा, बल्कि यह एक ऐतिहासिक धरोहर बनता जा रहा है। यह पुल नहीं, बल्कि अधूरे सपनों का स्मारक है, जो नौ वर्षों से जनता को आश्वासनों के पुल से गुजार रहा है। इसे बनाने का काम 2016 में घोषित हुआ था, लेकिन तब से लेकर अब तक इसकी हालत देखकर ऐसा लगता है कि इसे बनाने का ठेका कछुओं की फैक्ट्री को दिया गया है, जो अपनी धीमी चाल से इसे ऐतिहासिक बना रहे हैं।पांच बार भूमि पूजन हो चुका है। पाँच बार! यानी अगर फ्लाईओवर न बनता, तो भी वहाँ भूमि पूजन का रिकॉर्ड कायम हो जाता। हर बार नए नेता आते हैं, नारियल फोड़ते हैं, फीता काटते हैं, फोटो खिंचवाते हैं और फिर आश्वासन की चादर ओढ़ाकर चलते बनते हैं। यह ब्रिज नहीं, बल्कि "राजनीतिक पर्यटन स्थल" बन चुका है, जहाँ नेता आते हैं, झूठे वादों की माला चढ़ाते हैं, और जनता को आश्वासन रूपी ‘प्रसाद’ देकर चले जाते हैं।इस ब्रिज के दोनों ओर महत्वपूर्ण सरकारी संस्थान हैं, लेकिन जनता को 6 किलोमीटर का अतिरिक्त चक्कर लगाना पड़ता है। प्रशासन इसे समस्या नहीं, बल्कि एक सरकारी ‘फिटनेस प्रोग्राम’ मान चुका है। पुल नहीं बना? कोई बात नहीं! जनता को मुफ्त में रोज़ 6 किलोमीटर दौड़ने का अवसर मिल रहा है। इससे स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा और सरकार की फिटनेस योजना भी सफल कहलाएगी!इस ब्रिज के निर्माण की गति देखकर ऐसा लगता है जैसे इसे भारतीय रेलवे की सबसे धीमी ट्रेन से भी धीमे बनाया जा रहा हो। मजदूरों को शायद ठेकेदार ने कह रखा है, जल्दी मत करना, वरना सरकार को नया बहाना ढूंढना पड़ेगा!आखिर यह ठेका देने की परंपरा जो बनी रहनी चाहिए।अब तो इस ब्रिज के जल्दी बनने की उम्मीद छोड़ दीजिए। यह एक धार्मिक स्थल बनता जा रहा है। जनता रोज़ प्रार्थना करती है कि "हे भगवान, इस अधूरे ब्रिज को पूरा करा दो!" अगर ऐसे ही चलता रहा, तो जल्द ही वहाँ "फ्लाईओवर माता मंदिर" की स्थापना हो जाएगी और नेता हर चुनाव में वहाँ मत्था टेकने आया करेंगे।जनता को एक सुझाव दिया जा सकता है कि इस ब्रिज को अधूरा ही रहने दिया जाए और इसे विश्व का सबसे धीमी गति से बनने वाला पुल घोषित कर दिया जाए। इससे पर्यटन बढ़ेगा, लोग दूर-दूर से इसे देखने आएंगे और सरकार को इससे भी कुछ कमाई हो जाएगी।

अगली बार चुनावी घोषणापत्र में यह वादा किया जाना चाहिए (हमारी सरकार आई, तो इस पुल को कभी पूरा नहीं होने देंगे, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इसे देखकर प्रशासनिक लापरवाही की सीख ले सकें!)

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