लल्लूराम घर से विषय लेकर चलते हैं। और कोई भी अगर उन्हें रास्ते में मिल जाए तो उन्हें बताते हैं कि "आज का विषय यह है।" सुनो तुम क्या हो, हम तो विद्वान को तिनके के बराबर तौलते हैं। विद्वान किसी विषय पर घण्टे भर बोलते है हम तो बिना विषय के दिन भर बोलते हैं। जहां जरूरत ना हो हम वहां भी बोलते हैं, अपने आदतन रूढ़िवादी टांग को अड़ाते ही हैं, हम ऐसे ही हैं क्योंकि हम लल्लूराम हैं। बकौल दुष्यंत कुमार के कि
"मस्लहत-आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम
तू न समझेगा सियासत तू अभी नादान है"
अथश्री लल्लू पुराण कथा-2 समाप्त:
क्रमशः