जन-प्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(3) एवं मानहानि की धारा 499! एक विश्लेषण!
मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी एच एच वर्मा ने राहुल गांधी को धारा 499 के अंतर्गत ‘‘अवमानना’’ का दोषी पाया जाकर धारा 500 के अंतर्गत 2 साल की प्रावधित अधिकतम सजा का ऐतिहासिक फैसला दिया। तदोपरान्त लोकसभा सचिवालय द्वारा इस दोष सिद्धि आदेश से उत्पन्न कार्रवाई मात्र 24 घंटे के भीतर की जाकर राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता से अयोग्यता की जारी अधिसूचना से पूरे देश में खलबली सी मच गई है। ऐसा नहीं है की यह पहली बार हुआ है, जब किसी संसद सदस्य या विधायक को कोई अपराध में 2 वर्ष या अधिक सजा होने पर उनकी सदस्यता समाप्त की गई हो। विपरीत इसके इस लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, के अंतर्गत अभी तक 32 लोकसभा या विधानसभा सदस्यों को सदस्यता से अयोग्य ठहराया जा कर उनके स्थान रिक्त घोषित किए जा चुके हैं। बावजूद इस स्वीकृत तथ्य के अयोग्यता के इस आदेश से देशव्यापी राजनीतिक हलचल पैदा हो रही है, तो उसके दो ही कारण है।
प्रथम राहुल गांधी का व्यक्तित्व देश के विपक्ष के सबसे बड़े नेता होने से और गांधी परिवार की चार पीढ़ी मोतीलाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक जिन्होंने देश में शासन किया या एक छत्र नेतृत्व किया है, उस पीढ़ी के वर्तमान में सबसे महत्वपूर्ण सदस्य है। यानी कि ‘‘धुली धुलाई भेड़ कीचड़ में गिर पड़ी है’’। दूसरा महत्वपूर्ण कारण देश की संसदीय इतिहास में पहली बार अवमानना के मामले में 2 साल की सजा सुनाई जाने पर सदस्य को ‘अयोग्य’ घोषित किया गया।
पूर्व के इस तरह के समस्त अयोग्यता के मामलों में अधिकांशतः भारतीय दंड संहिता के गंभीर आपराधिक मामले अथवा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के अधीन 2 वर्ष या उससे अधिक की सजा होने के कारण सदस्यता समाप्त की गई थी। इसलिए राहुल गांधी का प्रकरण निश्चित रूप से पिछले 32 प्रकरणों से बिल्कुल भिन्न है। जहां सामान्यतया क्षतिपूर्ति (मुआवजा) के लिए सिविल कार्रवाई न कर कानून के अंतर्गत तकनीकी रूप से आपराधिक कार्रवाई की गई। ‘अपराध’ व सजा दोनों जगह (अन्य 32 मामलों में) हुई है। परन्तु ‘अपराध’-‘अपराध’ में बड़ा अंतर है। ‘‘सब धान बाइस पसेरी नहीं होते’’। एक अपराध वास्तविक रूप से ‘‘गंभीर अपराध’’ की श्रेणी में आता है, जिसकी परिकल्पना अनुच्छेद 108 एवं धारा 8 (3) लोक जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में की गई है। अवमानना के मामले में ‘अपराध’ की वह नोशनल वैल्यू (काल्पनिक मूल्य) नहीं होती है, जो धारा 8(3) में दिये गये ‘अपराध’ की है। क्या आप हत्या, हत्या का प्रयास, बलात्कार, जालसाजी, डकैती, दंगा, तस्करी, आय से अधिक सम्पत्ति आदि गंभीर ‘अपराधों’ को मानहानि अर्थात महज ‘‘हाकिम की अगाड़ी’’ की सजा पाए गए अपराधी की ही श्रेणी में रखा जा सकता हैं क्या? यह ठीक उसी प्रकार की स्थिति हैं, जब राजनीतिक पार्टी के नेताओं को जन आंदोलन करने के कारण विभिन्न आपराधिक धाराओं के मुकदमे झेलने होते हैं, जो अन्य सामान्य रूप से घटित अपराधों से भिन्न होते हैं। यद्यपि धाराएं वे ही होती है परंतु यह भिन्नता समस्त राजनीतिक दल मानते है, करते हैं। क्योंकि ‘‘काजल की कोठरी’’ में घुसने पर एक न एक दाग तो लगभग सभी को लगता ही है।
आइए पहले हम देखते है धारा 499 है क्या। वस्तुतः इस धारा में सिविल व आपराधिक (क्रिमिनल) दोनों तरह की कार्रवाई हो सकती हैं, परन्तु प्रस्तुत प्रकरण में सिविल कार्रवाई न की जाकर आपराधिक कार्रवाई की गई। धारा 499 के अंतर्गत मानहानि के लिए अपमानजनक बयान हेतु शिकायतकर्ता को संदर्भित किया जाना चाहिए। साथ ही इस धारा में दिये गये अपवाद में लोक सेवक (प्रधानमंत्री एक लोक सेवक है) का सार्वजनिक आचरण के संबंध में ‘‘दुराशय की भावना से रहित’’ किया गया कथन अवमानना की परिभाषा में नहीं आता है। इस स्थिति को देखते हुए प्रथम दृष्या सीजेएम का निर्णय गलत दिखता सा है। निर्णय की विस्तृत विवेचना अगले लेख में की जायेगी। आइये अब धारा 8 (3) जिसके अंतर्गत लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता की अयोग्यता की अधिसूचना जारी की है, वस्तुतः वह क्या है, इसका अध्ययन कर ले। धारा 8(3) निम्नानुसार हैः-
3) एक व्यक्ति को किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है और कम से कम दो साल के कारावास की सजा सुनाई गई है, उप-धारा (1) या उप-धारा (2) में निर्दिष्ट किसी भी अपराध के अलावा, इस तरह की सजा की तारीख से अयोग्य होगा और अपनी रिहाई के बाद छह साल की एक और अवधि के लिए अयोग्य बना रहेगा।,
परन्तु उपधारा (4) में कार्रवाई करने की 3 महीने की निर्धारित समय सीमा को ‘‘थाॅमस लिली विरुद्ध भारत संघ’’ के मामले में उच्चतम न्यायालय ने असंवैधानिक ठहरा कर निरस्त कर दिया है।
कानूनी प्रावधान यही है कि जिस क्षण 2 वर्ष की सजा सुनाई जाती है, उसी क्षण स्वयमेव सदस्यता समाप्त हो जाती है, यदि उसी क्षण दोष सिद्धि के आदेश को स्टे (स्थगित) न किये गया हो तो। परन्तु यहां भी एक कानूनी ‘कमी’ (लैकूना) है, जैसे हमारे समस्त कानूनों में प्रायः होती है। सजा होने के बावजूद सदस्य की सदस्यता तब तक समाप्त नहीं होगी, जब तक स्पीकर का सचिवालय इसकी अधिसूचना जारी न कर देें। अब यह मत कहियेगा की सजा होने पर अयोग्यता की कार्रवाई कर अधिसूचना जारी करने की कोई समय सीमा (लिमिटेशन) नहीं है। निश्चित रूप से कानूनी स्थिति यही है। परन्तु फिर प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि न्यायाधीश को निष्पक्ष होने ही नहीं चाहिए बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए, क्योंकि ‘‘पगड़ी दोनों हाथों से ही सम्हाली जाती है’’। उत्तर प्रदेश के स्पीकर ने आजम खां के मामले में तुरंत-फुरंत अयोग्यता की कार्रवाई कर दी। परन्तु आजम खां के पूर्व विक्रम सैनी विधायक के विरूद्ध अयोग्यता की लंबित कार्यवाही तब जाकर पूर्ण की जब आजम खां का मामला उच्चतम न्यायालय के संज्ञान में लाए जाने पर न्यायालय द्वारा फटकार लगाई गई। राजनैतिक सुविधा का सिद्धांत इसी को ही कहते है। जहां पर वर्तमान स्थिति में सत्ता के पक्ष में विवेकाधिकार व विशेषाधिकार न होने के बावजूद ‘कुर्सी’ अपने विवेक का उपयोग सत्ता पक्ष में बैठे लोगों के हित में वैसा ही कर रही हैं, जैसा कि ‘‘समरथ को नहिं दोष गुसाईं’’। इस स्थिति पर न्यायालय का भी कोई प्रभावी नियंत्रण नहीं है, जिसकी आज नितांत आवश्यकता है।
याद कीजिए वर्ष 1980 में आंतरिक टूट के कारण जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद हुए आम चुनाव में इंदिरा गांधी ने दमदार वापसी की थी और वर्ष 1977 के आम चुनाव में पार्टी 154 सीटों के विरुद्ध 363 पर बड़ी जीत दर्ज की। बड़ा प्रश्न यह है कि लगभग वैसी ही समान वर्तमान में बनती परिस्थिति के दिखने के कारण, क्या राहुल गांधी भी वैसा ही इतिहास दोहरा पायेगंे? इस बात की बडी चर्चा राजनीतिक हल्के में है। परन्तु यह चर्चा करते समय इस बात को ध्यान में रखना होगा कि इंदिरा गांधी व राहुल गांधी के व्यक्तित्व में जमीन आसमान का अंतर है। दूसरे तत्समय इंदिरा गांधी इसलिए वापसी कर पाई थी कि उनका व्यक्तित्व उनके विपक्षियों से कहीं ज्यादा नहीं तो बराबरी का तो था (उनका व पार्टी की स्थिति) परन्तु आज न तो राहुल का व्यक्तित्व और न ही पार्टी की स्थिति कैसी है। जनता पार्टी की आंधी चलने के बावजूद 154 सीटों पर रहकर 363 सीट पाने की तुलना में 45 सीटों की स्थिति से बहुमत प्राप्त करने की आवश्यकता वर्तमान आज की स्थिति में संभव होता दिखता नहीं है। हां इस लक्ष्य के कितने निकट पहुंच सकते है इस पर जरूर राजनीतिक चर्चा अवश्य चलेगी।